कोर्ट ने चेतावनी दी कि अगर वकील के ज़रिए भेजे गए नोटिस को तलाक़ मान लिया गया और महिला दूसरी शादी कर लेती है, तो बाद में पति मुकर जाए तो उसे बहुविवाह (polyandry) का आरोपी बनाया जा सकता है। यह मामला पत्रकार बेनज़ीर हीना और अन्य महिलाओं की याचिकाओं पर चल रहा है।
तलाक़-ए-हसन क्या होता है?
सुन्नी हनफ़ी विधि में तलाक़-ए-हसन को “सबसे अच्छा” (Ahsan) के बाद दूसरा बेहतर तरीक़ा माना जाता है। इसमें पति तीन महीने के अंदर तीन अलग-अलग तुहर (मासिक धर्म के बाद की स्वच्छ अवस्था) में एक-एक बार “तलाक़” बोलता है।
• पहला और दूसरा तलाक़ बोलने के बाद भी रजू (वापसी) संभव है। अगर इस दौरान पति-पत्नी साथ रह लें तो तलाक़ रद्द हो जाता है।
• तीसरा तलाक़ बोलने के बाद निकाह ख़त्म हो जाता है और वह भी अपरिवर्तनीय (irrevocable) होता है।
• पूरी प्रक्रिया में कम से कम तीन मासिक चक्र या तीन चांद्र माह का अंतर होना ज़रूरी है। इसका मक़सद रुक-रुक कर सोचने और सुलह का मौक़ा देना है।
ट्रिपल तलाक (तीन तलाक) से अंतर
• ट्रिपल तलाक (तलाक़-ए-बिदअत): एक ही बार में तीन तलाक़ बोल दिए जाते हैं → तुरंत और अपरिवर्तनीय तलाक़। 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने इसे असंवैधानिक घोषित किया और 2019 में क़ानून बनाकर आपराधिक भी बना दिया।
• तलाक़-ए-हसन: तीन अलग-अलग महीनों में तीन बार → बीच में सुलह का मौक़ा → अपेक्षाकृत धीमी और सोची-समझी प्रक्रिया।
इसीलिए 2017 के फ़ैसले में तलाक़-ए-हसन और तलाक़-ए-अहसन पर कोई टिप्पणी नहीं की गई थी।
अब क्यों उठ रहे सवाल?
हाल के मामलों में पतियों ने खुद कुछ न बोलकर वकीलों से महीने-दर-महीने तलाक़ के नोटिस भिजवाए। बेनज़ीर हीना के केस में पति ने वकील के ज़रिए तीन नोटिस भिजवाए, फिर दूसरी शादी कर ली, जबकि तलाक़नामा पर उनके हस्ताक्षर ही नहीं थे।
सुप्रीम कोर्ट (जस्टिस सूर्य कांत, उज्ज्वल भुइयां और एनके सिंह की बेंच) ने पूछा:
• “क्या पति किसी और को अपनी बीवी को तलाक़ देने का अधिकार दे सकता है?”
• “यह नई-नई खोज कहाँ से आ रही है?”
• “ऐसे में पति बाद में मुकर जाए तो महिला की ज़िंदगी बर्बाद हो जाएगी।”
कोर्ट ने इसे मुस्लिम महिलाओं (ख़ासकर ग्रामीण और अनपढ़ महिलाओं) की गरिमा और सुरक्षा पर हमला बताया।
महिलाओं का पक्ष
याचिकाकर्ताओं का कहना है कि भले ही काग़ज़ पर तलाक़-ए-हसन में तीन महीने का समय हो, फिर भी यह पूरी तरह एकतरफ़ा और ग़ैर-न्यायिक है। पति चाहे तो सुलह कर सकता है, न चाहे तो तलाक़ दे देता है। महिला के पास सिर्फ़ ख़ुला (महर लौटाकर तलाक़ माँगना) है, जो सामाजिक दबाव में बहुत मुश्किल होता है।
आगे क्या?
26 नवंबर 2025 को सुप्रीम कोर्ट कई याचिकाओं पर विस्तृत सुनवाई करेगा। सवाल यह है कि क्या तलाक़-ए-हसन भी संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता), 15 (भेदभाव निषेध) और 21 (गरिमा के साथ जीवन) का उल्लंघन करता है?
कोर्ट ने फिलहाल साफ़ कर दिया है:
• वकील या तीसरे व्यक्ति के ज़रिए तलाक़ का नोटिस मान्य नहीं।
• पति को खुद हस्ताक्षर करना होगा।
• महिलाओं के बच्चे के भरण-पोषण और अधिकारों की तुरंत रक्षा के निर्देश दिए जाएँगे।
यह मामला एक बार फिर मुस्लिम पर्सनल लॉ में सुधार, महिलाओं के अधिकार और धर्म की स्वतंत्रता बनाम संवैधानिक मूल्यों के बीच संतुलन का बड़ा सवाल खड़ा कर रहा है।

