शिक्षा के मंदिर असुरक्षित, जर्जर भवनों और सूखे पड़े, पेड़ों से खतरे में बच्चों का भविष्य, पढ़िये पूरी खबर

Himachal Pradesh News: हिमाचल प्रदेश, जो अपनी प्राकृतिक सुंदरता और शांत वातावरण के लिए लोगो के बीच में जाना जाता है, इन दिनों एक गंभीर समस्या से जूझ रहा है। राज्य के सरकारी स्कूलों की स्थिति बदहाल है, जहां जर्जर भवन और परिसर में खड़े सूखे पेड़ न केवल शिक्षा व्यवस्था की पोल खोल रहे हैं, बल्कि बच्चों की सुरक्षा के लिए भी गंभीर खतरा बन गए हैं। कांगड़ा, चंबा, कुल्लू और ऊना जैसे जिलों से ऐसी खबरें सामने आ रही हैं, जो शिक्षा के मंदिरों की बदहाली को उजागर करती हैं।

जर्जर भवनों में पढ़ाई, खतरे में नौनिहाल
कांगड़ा जिले के पालमपुर, घुग्गर और घाड़ के सरकारी स्कूलों में भवनों की स्थिति अत्यंत दयनीय है। छतों से प्लास्टर गिर रहे है, खिड़कियों के शीशे टूटे हुए हैं, और दीवारों में सीलन के कारण दरारें साफ दिखाई देती हैं। राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक पाठशाला घुग्गर, जो 1938 में स्थापित हुआ था, में सिर्फ़ 289 बच्चे पढ़ते हैं, लेकिन स्कूल का भवन किसी भी समय ढह सकता है। शौचालयों के दरवाजे टूटे हैं और पानी की आपूर्ति अनियमित है। स्थानीय स्कूल प्रबंधन समिति की अध्यक्ष चांद रानी ने बताया, “बच्चों के बैठने के लिए बेंच और डेस्क भी पुराने और क्षतिग्रस्त हैं।”

इसी तरह, चंबा के लामू सीनियर सेकेंडरी स्कूल में जर्जर भवन की मौजूदगी बच्चों की जान के लिए खतरा बनी हुई है। हाल ही में क्षेत्र के विधायक डा. जनक राज ने स्कूल का दौरा किया और भवन की स्थिति देखकर चिंता जताई। उन्होंने कहा, “यह भवन कभी भी गिर सकता है। बच्चों की सुरक्षा के लिए इसे तुरंत हटाने की जरूरत है।” विधायक ने इस मामले को प्रशासन के समक्ष उठाने का आश्वासन दिया है।

सूखे पेड़ों का खतरा
जर्जर भवनों के साथ-साथ स्कूल परिसरों में खड़े सूखे पेड़ भी हादसों को न्योता दे रहे हैं। कांगड़ा के कई स्कूलों में सूखे पेड़ों को हटाने की मांग लंबे समय से की जा रही है, लेकिन प्रशासन की उदासीनता के कारण यह समस्या जस की तस बनी हुई है। हाल ही में एक स्थानीय अभिभावक ने बताया, “बच्चे खेलते समय इन पेड़ों के पास जाते हैं, और किसी भी समय पेड़ गिरने से बड़ा हादसा हो सकता है।”

प्रशासन की लापरवाही, बच्चों का भविष्य खतरे में
हिमाचल प्रदेश में शिक्षा व्यवस्था को बेहतर बनाने के दावे तो खूब किए जाते हैं, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही बयान करती है। जवाली में कृषि मंत्री चंद्र कुमार के क्षेत्र में भी स्कूलों की स्थिति बदहाल है। यहां तक कि पीएमश्री विद्यालयों की छतें भी रिस रही हैं। कुल्लू में एक स्कूल भवन तो मलबे में दब गया, जिससे उसका अस्तित्व ही मिट गया है। ऊना के लाल सिंगी में सरकारी स्कूल गंदे नाले के मुहाने पर स्थित है, जो बच्चों के स्वास्थ्य के लिए खतरा है।

हाल ही में राजस्थान के झालावाड़ में एक जर्जर स्कूल भवन की छत गिरने से सात बच्चों की मौत की घटना ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया था। हिमाचल में भी ऐसी घटनाओं की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता। फिर भी, प्रशासन और सरकार की ओर से ठोस कदम उठाने में देरी हो रही है।

नागरिकों और अभिभावकों का रोष
स्थानीय लोग और अभिभावक इस स्थिति से बेहद नाराज हैं। सोशल मीडिया पर भी इस मुद्दे को लेकर आक्रोश देखा जा सकता है। एक एक्स पोस्ट में यूजर ने लिखा, “जर्जर स्कूल भवनों में बच्चों की जान खतरे में है, लेकिन प्रशासन की लापरवाही बरकरार है।” अभिभावकों का कहना है कि सरकार को स्कूलों के रखरखाव के लिए पर्याप्त बजट और त्वरित कार्रवाई की जरूरत है।

आवश्यक कदम और समाधान
शिक्षा के मंदिरों को सुरक्षित बनाने के लिए सरकार को तत्काल कदम उठाने होंगे। विशेषज्ञों का सुझाव है कि स्कूल भवनों की नियमित जांच और मरम्मत के लिए एक समर्पित समिति बनाई जाए। साथ ही, सूखे पेड़ों को हटाने और नए भवनों के निर्माण के लिए बजट आवंटन में तेजी लानी होगी। स्थानीय समुदाय की भागीदारी और स्कूल प्रबंधन समितियों को और अधिक जिम्मेदारी दी जानी चाहिए।

निष्कर्ष
हिमाचल प्रदेश में शिक्षा के मंदिरों की यह बदहाली न केवल बच्चों की सुरक्षा के लिए खतरा है, बल्कि राज्य की शिक्षा व्यवस्था पर भी सवाल उठा रही है। सरकार और प्रशासन को चाहिए कि वे इस गंभीर मुद्दे पर तुरंत ध्यान दें और बच्चों के सुरक्षित भविष्य को सुनिश्चित करें। अगर समय रहते कदम नहीं उठाए गए, तो जर्जर भवनों और सूखे पेड़ों की चपेट में आने वाला अगला हादसा किसी भी समय हो सकता है।

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