Himachal Pradesh News: हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले में एक सरकारी स्कूल के प्रिंसिपल को अंग्रेजी वर्तनी की भारी भूल के कारण शर्मिंदगी का सामना करना पड़ा। 25 सितंबर को जारी किए गए 7,616 रुपये के चेक को बैंक ने अस्वीकार कर दिया, क्योंकि चेक पर लिखी राशि के शब्दों में इतनी गंभीर गलतियां थीं कि वह पढ़ने में हास्यास्पद लग रही थीं। यह घटना सोशल मीडिया पर वायरल हो गई है, जहां लोग इसे शिक्षा व्यवस्था पर कटाक्ष कर रहे हैं।
घटना सरमौर जिले के रोनहाट स्थित गवर्नमेंट सीनियर सेकेंडरी स्कूल की है। स्कूल प्रिंसिपल ने मिड-डे मील वर्कर अतेर सिंह के नाम 7,616 रुपये का चेक जारी किया था। चेक पर अंकों में राशि सही लिखी गई थी, लेकिन शब्दों में वर्णन ऐसी गलतियों से भरा था कि बैंक कर्मचारियों के होश उड़ गए। ‘सेवन थाउजैंड सिक्स हंड्रेड सिक्सटीन’ (Seven Thousand Six Hundred Sixteen) की जगह लिखा गया ‘सेवन थर्सडे सिक्स हारेंदर सिक्स्टी’ (Saven Thursday Six Harendra Sixty)। यहां ‘सेवन’ को ‘सेवन’ लिखा गया, ‘थाउजैंड’ बदलकर ‘थर्सडे’ हो गया, ‘हंड्रेड’ ‘हारेंदर’ बन गया और ‘सिक्सटीन’ को ‘सिक्स्टी’ कर दिया।
सूत्रों के अनुसार, चेक वास्तव में प्रिंसिपल ने नहीं लिखा था, बल्कि एक शिक्षक ने भरा था। व्यस्तता के कारण प्रिंसिपल ने केवल अंकों की जांच की और हस्ताक्षर कर दिए, बिना शब्दों पर ध्यान दिए। बैंक ने चेक लौटा दिया, जिसके बाद यह फोटो बैंक के व्हाट्सएप ग्रुप में लीक हो गई और सोशल मीडिया पर फैल गई।
यह मामला सोशल मीडिया पर बहस का विषय बन गया है। कई यूजर्स ने इसे हास्य के साथ साझा किया, तो कुछ ने शिक्षा विभाग की लापरवाही पर सवाल उठाए। एक ट्वीट में लिखा गया, “हिमाचल सरकार शिक्षकों को विदेश भेज रही है, लेकिन स्कूल में ही अंग्रेजी सिखाने की जरूरत है!” वहीं, एक अन्य यूजर ने कहा, “शिक्षा का स्तर देखिए, चेक बाउंस हो गया क्योंकि प्रिंसिपल को स्पेलिंग नहीं आती।” वायरल पोस्ट्स में हजारों लाइक्स और शेयर हो चुके हैं।
शिक्षा विभाग ने इस घटना पर कोई आधिकारिक बयान जारी नहीं किया है, लेकिन स्थानीय स्तर पर जांच की बात कही जा रही है। हिमाचल प्रदेश स्टेट कोऑपरेटिव बैंक ने भी गोपनीयता भंग के लिए माफी मांगी है। यह घटना न केवल प्रिंसिपल के लिए शर्मनाक है, बल्कि पूरे शिक्षा तंत्र के लिए एक सबक भी। विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसे मामलों से प्रशासनिक सतर्कता बढ़ाने की जरूरत है, खासकर जब स्कूल जैसे संस्थान खुद भाषा की बुनियादी गलतियां कर रहे हों।
यह वाकया शिक्षा में गुणवत्ता सुधार की मांग को और तेज कर रहा है, जहां सरकारी प्रयासों के बावजूद बुनियादी कौशल में कमी दिख रही है।
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