बीबीसी के मोदी डॉक्यूमेंट्री मामले में हाईकोर्ट ने लगाई एनजीओ को फटकार, मिला आखिरी मौका

India: The Modi Question’, BBC News: बीबीसी की विवादास्पद डॉक्यूमेंट्री ‘इंडिया: द मोदी क्वेश्चन’ के खिलाफ दायर 10,000 करोड़ रुपये के मानहानि मुकदमे में दिल्ली हाईकोर्ट ने गुजरात स्थित एनजीओ ‘जस्टिस ऑन ट्रायल’ को लगातार स्थगन की मांग करने पर कड़ी फटकार लगाई है। कोर्ट ने एनजीओ को एक आखिरी और अंतिम मौका देते हुए मामले की सुनवाई अप्रैल 2026 में तय कर दी है।

जस्टिस यामिनी जैन की बेंच ने कहा, “हम देख रहे हैं कि पिछले कई सुनवाइयों में लगातार स्थगन लिए जा रहे हैं। वादी को दावा की बनाए रखने योग्यता पर बहस करने का आखिरी मौका दिया जाता है।”

यह मामला जनवरी 2023 में बीबीसी द्वारा प्रसारित दो-भाग वाली डॉक्यूमेंट्री से जुड़ा है, जो 2002 के गुजरात दंगों के दौरान तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की भूमिका पर सवाल उठाती है। एनजीओ ‘जस्टिस ऑन ट्रायल’ ने दावा किया है कि यह डॉक्यूमेंट्री भारत की प्रतिष्ठा, न्यायपालिका और प्रधानमंत्री मोदी पर कीचड़ उछालने वाली है। संगठन ने बीबीसी (यूके) और बीबीसी (इंडिया) के खिलाफ 10,000 करोड़ रुपये के हर्जाने की मांग की है। कोर्ट वर्तमान में एनजीओ की ‘निर्धन व्यक्ति’ (इंडिजेंट पर्सन) के रूप में मुकदमा दायर करने की अर्जी पर विचार कर रहा है, जिसमें कोर्ट फीस माफ करने की मांग की गई है।

मामले का इतिहास: लंबी कानूनी जंग
यह मुकदमा मई 2023 में गुजरात-आधारित एनजीओ द्वारा दायर किया गया था। वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे ने तत्कालीन सुनवाई में कहा था कि डॉक्यूमेंट्री न केवल प्रधानमंत्री मोदी बल्कि पूरे भारतीय न्यायिक तंत्र और आपराधिक न्याय प्रणाली पर झूठे आरोप लगाती है। एनजीओ का आरोप है कि बीबीसी ने “प्रेरित व्यक्तियों के आरोपों को अटल तथ्य के रूप में पैकेज किया” है, जिससे देश की छवि धूमिल हुई।

दिल्ली हाईकोर्ट ने मई 2023 में ही बीबीसी को नोटिस जारी किया था और मामला सितंबर में टाला गया। लेकिन मई 2024 में जस्टिस अनूप जयराम भांभनी ने खुद को मामले से अलग कर लिया, बिना कोई कारण बताए।उसके बाद मामला जस्टिस यामिनी जैन की बेंच के पास पहुंचा।

बीबीसी ने डॉक्यूमेंट्री को “उच्च संपादकीय मानकों के अनुरूप शोधपूर्ण” बताया है और कहा है कि यह 2002 दंगों से जुड़े कुछ पहलुओं की जांच करती है। विदेश मंत्रालय ने इसे “प्रचार सामग्री” करार दिया था, जबकि विपक्ष ने सच्चाई उजागर करने का हवाला दिया। सुप्रीम कोर्ट ने फरवरी 2023 में बीबीसी पर प्रतिबंध लगाने वाली याचिका को “पूरी तरह गलत” बताकर खारिज कर दिया था।

कोर्ट की नाराजगी: स्थगनों पर सवाल
सोमवार की सुनवाई में एनजीओ के वकील ने तर्क दिया कि वे वरिष्ठ वकील नियुक्त करने की प्रक्रिया में हैं, इसलिए स्थगन जरूरी है। लेकिन कोर्ट ने साफ शब्दों में असंतोष जताया। बेंच ने कहा कि बार-बार स्थगन न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग है। “मामले की बनाए रखने योग्यता पर तर्क प्रस्तुत करने का अंतिम अवसर दिया जाता है,” कोर्ट ने आदेश में उल्लेख किया। एनजीओ को अप्रैल 2026 तक तैयारी करने का समय दिया गया है, वरना मामले पर प्रतिकूल आदेश हो सकता है।

सोशल मीडिया पर प्रतिक्रियाएं
एक्स (पूर्व ट्विटर) पर इस फैसले को लेकर वकीलों और पत्रकारों ने चर्चा शुरू कर दी है। बार एंड बेंच के आधिकारिक हैंडल ने खबर साझा करते हुए लिखा, “दिल्ली हाईकोर्ट ने एनजीओ को स्थगनों के लिए फटकार लगाई।” वकील अश्वनी दुबे ने इसे रीपोस्ट किया,जबकि कई यूजर्स ने इसे न्यायिक प्रक्रिया में देरी का उदाहरण बताया। यह मामला अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बनाम मानहानि के बीच संतुलन पर बहस को फिर से हवा दे रहा है।

एनजीओ के अगले कदम पर सभी की नजरें हैं। यदि वे अप्रैल तक तैयार नहीं हुए, तो बीबीसी के खिलाफ यह लंबा चला मुकदमा समाप्त हो सकता है।

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