रेल मंत्रालय के अनुसार, इस साल सितंबर से नवंबर तक कुल 4718 स्पेशल ट्रेन ट्रिप्स चलाए जा रहे हैं, जिनमें से करीब 12,000 ट्रेनें बिहार की ओर जाने वाली हैं। रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने बताया कि दिवाली और छठ पूजा के दौरान बिहार जाने वाली ट्रेनों की संख्या में भारी बढ़ोतरी की गई है, ताकि लाखों यात्रियों को सुविधा मिल सके। नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर होल्डिंग एरिया बनाए गए हैं, जहां 7,000 से ज्यादा यात्री एक साथ इंतजार कर सकते हैं। इसके अलावा, 15 प्रमुख स्टेशनों जैसे दिल्ली, मुंबई और सूरत पर प्लेटफॉर्म टिकट की बिक्री 28 अक्टूबर तक निलंबित कर दी गई है, ताकि भीड़ को नियंत्रित किया जा सके।
सोशल मीडिया पर वायरल हो रही तस्वीरें और वीडियो इस समस्या की गहराई दिखाती हैं। पूर्णिया कोर्ट स्टेशन पर रातभर इंतजार करने वाली भीड़, सूरत के उधना स्टेशन पर 14,000 से ज्यादा यात्रियों का एक दिन में रवाना होना, और दिल्ली स्टेशन पर ट्रेनों में चढ़ने की जद्दोजहद – ये सब बिहार से बाहर रोजगार की तलाश में जाने वाले लाखों लोगों की कहानी बयान करते हैं। एक यूजर ने एक्स पर पोस्ट किया, “दिवाली और छठ पर रेलवे स्टेशन की ये भीड़ सिर्फ यात्रियों की नहीं, मजबूरियों, उम्मीदों और अधूरे वादों की भी भीड़ है।” यह पोस्ट बिहार चुनाव 2025 के संदर्भ में भी वायरल हो रही है, जहां राजनीतिक पार्टियां रोजगार के वादे कर रही हैं, लेकिन हकीकत में प्रवासन जारी है।
बिहार में रोजगार की कमी एक पुरानी समस्या है। राज्य से लाखों लोग पंजाब, गुजरात, दिल्ली और अन्य राज्यों में काम करने जाते हैं, लेकिन त्योहारों पर घर लौटते हैं। पटना जंक्शन जैसी जगहों पर दैनिक लाखों यात्री आते-जाते हैं, लेकिन राज्य की औसत आय और बुनियादी ढांचे में कमी इस समस्या को बढ़ाती रही है।
विशेषज्ञों का कहना है कि अगर बिहार में ही रोजगार के अवसर पैदा किए जाएं, तो यह भीड़ कम हो सकती है। वर्तमान में, राज्य के प्रमुख स्टेशनों जैसे पटना, भागलपुर और मुजफ्फरपुर से उत्पन्न होने वाली आय भी इस बात की गवाही देती है कि यातायात मुख्य रूप से प्रवास पर निर्भर है।
रेलवे ने यात्रियों से अपील की है कि वे सुरक्षा नियमों का पालन करें और भीड़ में धक्का-मुक्की से बचें। हालांकि, यह स्थिति हर साल दोहराई जाती है, जो राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी को दर्शाती है। बिहार चात्र संसद जैसे संगठनों ने इसे “जुमलों से चलने वाली सोच” करार दिया है, और मांग की है कि राज्य में रोजगार सृजन पर ध्यान दिया जाए।
इस त्योहारी मौसम में जबकि लोग घर लौटकर खुशियां मनाना चाहते हैं, यह भीड़ एक सवाल छोड़ जाती है – कब तक बिहार के सपने दूसरे राज्यों में पलेंगे?

