पहाड़ों पर फूट रहा कहर, अब तक गई 330 लोगों की जान, यूपी के जिलों में सूखा
पहाड़ों में बढ़ता अनियंत्रित कंस्ट्रक्शन और घटता जंगल एरिया हिमालय की उम्र घटा रहा है। इसक चलते लगातार पहाड़ दरक रहे हैं। हिमाचल इसका उदाहरण है। यहां दो साल में भूस्खलन की घटनाएं 6 गुना बढ़ गई हैं। इस मानसून के 55 दिन में 113 बार भूस्खलन हुआ है। बारिश और लैंडस्लाइड से जुड़ी घटनाओं में 330 लोगों की मौत हो चुकी है। भूवैज्ञानिक विशेषज्ञ प्रो. वीरेंद्र सिंह धर के मुताबिक, चैड़ी सड़कों के लिए हिमाचल के पहाड़ों को सीधा काटा जा रहा है।
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इससे पहाड़ों की तलहटी की चट्टानें भी काटी जा रही हैं, जिससे जल निकासी की व्यवस्था खत्म हो गई है। इससे हिमाचल में ढलान वाले क्षेत्र लैंडस्लाइड के लिए संवेदनशील हो गए हैं। टनल में धमाके और हाइड्रो प्रोजेक्ट से भी लैंडस्लाइड की घटनाएं बढ़ रही हैं। वही, यूपी के 14 जिलों पर सूखे का खतरा मंडरा रहा है। इनमें बुंदेलखंड के 7, पूर्वी उप्र के 6 और तराई का एक जिला शामिल है। राज्य के 75 में से आधे जिलों में सामान्य से कम बारिश हुई है।हिमाचल में 17,120 लैंडस्लाइड संभावित क्षेत्र हिमाचल में लैंडस्लाइड संभावित क्षेत्र बढ़कर 17,120 हो गए हैं। इनमें भी 675 के किनारे इंसानी बस्तियां हैं। शिमला में कई सरकारी भवन भूस्खलन के खतरे की जद में हैं।
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हिमाचल में 68 सुरंगें बन रही हैं। इनमें 11 बन चुकी हैं, 27 निर्माणाधीन हैं और 30 विस्तृत परियोजना की रिपोर्ट तैयार हो रही हैं। इनमें कई प्रोजेक्ट केंद्र के हैं। इससे राज्य में भूस्खलन के जोखिम वाले क्षेत्र बढ़ेंगे। अवैज्ञानिक निर्माण- पहाड़ों को सीधा काटा, इसमें चट्टानों की नींव भी कट गईं। पानी रुक गया- ढलान खत्म होने से पानी बह नहीं रहा, सीधे पहाड़ों में बैठ रहा। उत्तराखंड में भी काफी नुकसान हो गया है।