Gurugram News: मिलेनियम सिटी बना कचरे का ठेर, ध्यान दे सैनी सरकार, सड़कों पर गंदगी, बदबू से हलकान पूरा शहर

Gurugram News: जिसे भारत का हाई-टेक और कॉरपोरेट हब माना जाता है, इन दिनों कचरे के ढेर और बदबू की समस्या से जूझता नज़र आ रहा है। शहर की सड़कों और मोहल्लों में कचरे के ढेर लगे हैं, जिनकी दुर्गंध न केवल ध्यान खींच रही है, बल्कि इसे नजरअंदाज करना भी मुश्किल हो गया है। आखिर क्यों यह आधुनिक शहर कचरा संकट का सामना कर रहा है?

कचरा संग्रहण व्यवस्था चरमराई
गुरुग्राम में कचरा संकट का मुख्य कारण प्रवासी मजदूरों का पलायन है। पुलिस द्वारा सत्यापन अभियान के तहत की गई छापेमारी और हिरासत की कार्रवाइयों के डर से कई मजदूर, जो कचरा संग्रहण और सफाई का काम करते थे, शहर छोड़कर चले गए हैं। इनमें से ज्यादातर बंगाली भाषी मजदूर थे, जो घर-घर से कचरा इकट्ठा करने और सफाई जैसे महत्वपूर्ण कार्यों में लगे थे। 13 से 21 जुलाई के बीच लगभग 100 लोग, जिनमें ज्यादातर घरेलू सहायक या कचरा संग्रहक थे, हिरासत में लिए गए। इस वजह से कचरा संग्रहण की प्रक्रिया ठप हो गई है, और सड़कों पर कचरे के ढेर लग गए हैं।

प्रणालीगत खामियों का नतीजा
विशेषज्ञों और कार्यकर्ताओं का मानना है कि यह संकट अचानक नहीं आया, बल्कि यह वर्षों की उपेक्षा और प्रणालीगत खामियों का परिणाम का भुगतान कर रहा पूरा शहर है। सिटीजन्स फॉर क्लीन एयर की संस्थापक रुचिका सेठी टक्कर ने कहा, “गुरुग्राम की कचरा प्रबंधन सेवाएं पूरी तरह विफल हो चुकी हैं। नगर निगम ने 2016 के ठोस कचरा प्रबंधन नियमों (SWM Rules) का पालन नहीं किया और अनौपचारिक मजदूरों को व्यवस्थित करने में असफल रहा।” कचरा प्रबंधन विशेषज्ञ कुसुम शर्मा ने भी कहा कि अगर नगर निगम ने सूखे कचरे के लिए केंद्र बनाए होते, स्रोत पर कचरे का पृथक्करण लागू किया होता और अनौपचारिक मजदूरों को एकीकृत किया होता, तो यह स्थिति टाली जा सकती थी।

बांधवारी लैंडफिल की बदहाली
गुरुग्राम और फरीदाबाद से प्रतिदिन 1,600 टन से अधिक मिश्रित कचरा बांधवारी लैंडफिल में डंप किया जाता है। इस लैंडफिल को न केवल कचरे को संग्रहित करने, बल्कि उसका उपचार करने के लिए बनाया गया था। हालांकि, 2013 में लगी आग के बाद से उपचार सुविधा क्षतिग्रस्त हो गई, और आज भी केवल 200-250 टन कचरे का ही उपचार हो पाता है। बाकी कचरा बिना पृथक्करण के डंप किया जा रहा है, जिससे पर्यावरण और स्वास्थ्य पर गंभीर खतरा पैदा हो रहा है। यह लैंडफिल अरावली रेंज के पर्यावरण संवेदनशील क्षेत्र में स्थित है, जो मिट्टी, पानी और हवा को प्रदूषित कर रहा है।

स्थानीय लोगों का गुस्सा
शहर के निवासियों में इस स्थिति को लेकर भारी नाराजगी है। सेक्टर 55 की निवासी स्वेता अरोड़ा ने इसे “कूड़ाग्राम” कहकर पुकारा, जबकि फ्रेंच प्रवासी मैथिल्डे आर और जेट एयरवेज के पूर्व सीईओ संजीव कपूर ने सोशल मीडिया पर कचरे की तस्वीरें साझा कर स्थानीय प्रशासन की आलोचना की। निवासियों का कहना है कि कचरा संग्रहण की अनियमितता और अवैध डंपिंग ने उनके जीवन को प्रभावित किया है। कई जगहों पर कचरे के ढेर सड़कों तक फैल गए हैं, जिससे यातायात और स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं बढ़ रही हैं।

नगर निगम की प्रतिक्रिया
नगर निगम आयुक्त प्रदीप दहिया ने स्वीकार किया कि प्रवासी मजदूरों के पलायन से कचरा संग्रहण प्रभावित हुआ है। उन्होंने कहा, “हम वरिष्ठ अधिकारियों और मुख्यमंत्री के साथ मिलकर वैकल्पिक समाधान खोज रहे हैं।” इसके अलावा, नगर निगम ने 402 करोड़ रुपये की लागत से चार जोनों में चार नई एजेंसियों के लिए निविदा को अंतिम मंजूरी दे दी है, जो जीपीएस ट्रकों के साथ कचरा संग्रहण करेगी। हालांकि, निवासियों और कार्यकर्ताओं का कहना है कि जब तक दीर्घकालिक और संरचनात्मक सुधार नहीं होंगे, यह संकट बार-बार उभरेगा।

विशेषज्ञों का मानना है कि गुरुग्राम को इस संकट से उबरने के लिए कचरे का स्रोत पर पृथक्करण, विकेन्द्रीकृत कचरा प्रबंधन केंद्र, और अनौपचारिक मजदूरों को व्यवस्थित करने की जरूरत है। साहस जैसे संगठन, जो इकोग्राम जैसे टिकाऊ समाधान लागू कर रहे हैं, इसे एक मॉडल के रूप में देखा जा रहा है। निवासियों से अपील की जा रही है कि वे कचरा प्रबंधन में सक्रिय भूमिका निभाएं और प्रशासन से जवाबदेही की मांग करें।

गुरुग्राम, जो कभी अपनी चमक-दमक के लिए जाना जाता था, आज कचरे के ढेर में दब रहा है। अगर समय रहते कदम नहीं उठाए गए, तो यह “मिलेनियम सिटी” सचमुच “कूड़ाग्राम” बनने की कगार पर खड़ी नजर आएगी।

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