चिपियाना बुजुर्ग गांव प्रशासनिक उपेक्षा का शिकार, 25 हजार की आबादी के बावजूद बुनियादी सुविधाओं से वंचित

Greater Noida News: जिले की सीमा पर स्थित चिपियाना बुजुर्ग गांव प्रशासनिक उपेक्षा का जीता-जागता उदाहरण बन गया है। लगभग 25,000 की आबादी वाला यह क्षेत्र न तो किसी ग्राम पंचायत में शामिल है, न नगर निगम के दायरे में आता है और न ही ग्रेटर नोएडा अथॉरिटी के अधिकार क्षेत्र में। इस अनूठी स्थिति के चलते यह इलाका “नो-मैन्स लैंड” जैसा बन चुका है, जहां न कोई प्रतिनिधि है और न कोई प्रशासनिक जिम्मेदारी लेने वाला।
यहां न तो ग्राम प्रधान चुने जाते हैं और न ही कोई नगर पार्षद नियुक्त है। परिणामस्वरूप सड़कों की दुर्दशा, सीवर और जल निकासी की समस्या, पीने के पानी की किल्लत, कूड़ा प्रबंधन और स्ट्रीट लाइट जैसी बुनियादी सुविधाएं दशकों से अधूरी हैं। बारिश में गलियां तालाब बन जाती हैं और बिजली के खंभों पर लाइटें गायब हैं।
स्थानीय निवासी बताते हैं कि क्षेत्र में न तो कोई सरकारी अस्पताल है और न ही उच्च माध्यमिक विद्यालय। एक मात्र प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र है, लेकिन वह भी अक्सर बंद रहता है। यही नहीं, यहां मौजूद दो प्राचीन तालाब और प्रसिद्ध ‘कुत्ते वाला मंदिर’ भी प्रशासनिक उपेक्षा की मार झेल रहे हैं।
एडवोकेट सुरेंद्र सिंह ने कहा कि जब भी यहां के निवासी किसी विभाग में शिकायत लेकर जाते हैं, तो जवाब मिलता है यह इलाका हमारे अधिकार क्षेत्र में नहीं आता। ऐसे में यह सवाल खड़ा होता है कि आखिर इस क्षेत्र की समस्याओं का जिम्मेदार कौन है? स्थानीय लोगों और समाजसेवियों की मांग है कि चिपियाना बुजुर्ग को तत्काल किसी प्रशासनिक इकाई—चाहे वह नगर निगम हो, ग्राम पंचायत या ग्रेटर नोएडा अथॉरिटी—के अंतर्गत लाया जाए, ताकि यहां के लोगों को भी बुनियादी सुविधाएं मिल सकें। जब तक हर नागरिक को समान अधिकार और सुविधाएं नहीं मिलेंगी, तब तक “विकास” केवल एक दिखावा ही रहेगा।

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