गोरखपुर: आस्था का प्रसाद बना मौत का प्रसाद, रेबीज संक्रमण का डर

Gorakhpur District Ramdih Village News: उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले के रामडीह गांव में एक हैरतअंगेज़ घटना ने पूरे इलाके को दहशत की चपेट में ले लिया है। धार्मिक अनुष्ठानों में पवित्र मानकर ग्रहण किया गया चरणामृत प्रसाद, जो गाय के कच्चे दूध से तैयार किया गया था, अब ‘मौत के डर’ का प्रतीक बन चुका है। वजह? वह गाय रेबीज (कुत्ते के काटने से होने वाली घातक बीमारी) से संक्रमित थी।

लगभग 200 ग्रामीणों ने यह प्रसाद पिया था, और अब वे रेबीज वैक्सीन लगवाने के लिए अस्पतालों की होड़ में हैं। डॉक्टरों का कहना है कि कच्चे दूध से संक्रमण का खतरा रहता है, लेकिन समय रहते टीका लगवाने से जान बचाई जा सकती है।

घटना की शुरुआत
रामडीह गांव, जो गोरखपुर से करीब 30 किलोमीटर दूर स्थित है, की आबादी लगभग 3,000 है। दो महीने पहले यहां एक आवारा कुत्ते ने एक गाय को काट लिया था। गाय के मालिक ने इसे मामूली चोट समझकर नजरअंदाज कर दिया। गाय कुछ दिनों तक सामान्य रही और उसका दूध निकाला जाता रहा। इसी दूध का इस्तेमाल गांव में आयोजित शिवचर्चा, भागवत कथा और अन्य धार्मिक अनुष्ठानों में चरणामृत (पंचामृत) बनाने के लिए किया गया। आस्था के चलते करीब 200 लोगों ने इसे प्रसाद के रूप में ग्रहण किया। कुछ रिपोर्ट्स में 70 से 100 लोगों का जिक्र है, लेकिन स्थानीय स्वास्थ्य केंद्र के रिकॉर्ड के मुताबिक संख्या इससे कहीं ज्यादा है।

हालांकि, चार दिन पहले (15 नवंबर को) गाय की अचानक मौत हो गई। मौत से पहले गाय का बर्ताव अजीब हो गया था—लार टपकना, आक्रामकता और चलने में असमर्थता जैसे लक्षण दिखे। पशु चिकित्सकों ने पोस्टमॉर्टम में रेबीज की पुष्टि की।

यह खबर गांव में आग की तरह फैल गई। जिन्होंने प्रसाद पिया था, वे सबसे ज्यादा घबरा गए। कईयों ने बताया कि वे 3 से 6 महीने पहले भी इस गाय का दूध पी चुके थे। डर इतना बढ़ गया कि रविवार सुबह से ही प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (पीएचसी) पर भीड़ लग गई।

अस्पतालों में हड़बड़ी
पीएचसी रामडीह पर रविवार को सैकड़ों ग्रामीण पहुंचे। महिलाएं, बच्चे और बुजुर्ग—सभी एंटी-रेबीज वैक्सीन (एआरवी) लगवाने को बेताब थे। डॉक्टर जय प्रकाश तिवारी, जो पीएचसी के मेडिकल ऑफिसर हैं, ने बताया, “लोग डर के मारे आ रहे हैं, लेकिन किसी में अभी कोई लक्षण नहीं दिखे हैं। हमने 170 से ज्यादा को पहला डोज दे दिया है। रेबीज एक घातक बीमारी है, लेकिन एक्सपोजर के बाद 14 दिनों के अंदर टीके की पूरी कोर्स लेने से खतरा टल जाता है।” जिला प्रशासन ने भी अलर्ट जारी कर दिया है और अतिरिक्त वैक्सीन स्टॉक कर लिया है।

इंडियन वेटरिनरी एसोसिएशन के विशेषज्ञों के अनुसार, रेबीज वायरस मुख्य रूप से लार के जरिए फैलता है, लेकिन संक्रमित गाय का कच्चा दूध भी खतरा पैदा कर सकता है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) की एक पुरानी रिपोर्ट में साफ कहा गया है कि बिना उबाले संक्रमित दूध से वायरस शरीर में पहुंच सकता है। हालांकि, प्रसाद उबाला नहीं जाता, इसलिए गांववालों का डर जायज है। एक बुजुर्ग महिला ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, “भगवान का प्रसाद था, लेकिन अब लगता है मौत का पैगाम बन गया।”

विशेषज्ञों की सलाह
डॉक्टरों ने स्पष्ट चेतावनी दी है कि रेबीज के शुरुआती लक्षण—जैसे सिरदर्द, बुखार, चक्कर आना और बाद में पानी से डर (हाइड्रोफोबिया)—दिखने पर इलाज मुश्किल हो जाता है। एक बार वायरस मस्तिष्क तक पहुंच जाए, तो 100% मामलों में मौत निश्चित है। इसलिए, जो भी संदेह हो, तुरंत वैक्सीन लें। ग्रेटर नोएडा में अप्रैल 2025 में एक इसी तरह की घटना हुई थी, जहां संक्रमित गाय का दूध पीने से एक महिला की रेबीज से मौत हो गई थी। वह टीका नहीं लगवा पाई थी।

गांव के सरपंच रामप्रकाश यादव ने कहा, “हमने पशु चिकित्सकों से संपर्क किया है। अब आगे से दूध की जांच जरूरी होगी। लेकिन आस्था को ठेस न पहुंचे, इसके लिए जागरूकता अभियान चलाएंगे।” जिला मजिस्ट्रेट ने भी गांव का दौरा कर स्थिति का जायजा लिया और स्वास्थ्य टीम तैनात की।

सबक
यह घटना न सिर्फ रामडीह गांव, बल्कि पूरे देश के लिए एक सबक है। गाय का दूध अमृत तुल्य माना जाता है, लेकिन वैज्ञानिक सावधानियां न अपनाने से यह जहर बन सकता है।

विशेषज्ञों का कहना है कि दूध हमेशा उबालें, पशुओं की जांच कराएं और रेबीज जैसे रोगों पर जागरूक रहें। फिलहाल, गांव में दहशत कम हो रही है, लेकिन सतर्कता बरकरार है। क्या यह ‘चरणामृत’ की कहानी आस्था की जीत बनेगी या चेतावनी? समय बताएगा।

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