सदियों पुरानी परंपरा
बनारसी साड़ियाँ मुगल काल से चली आ रही हैं। सोने-चांदी की जरी (ज़री) बनाना एक जटिल कला है। सबसे पहले शुद्ध सोना या चांदी को पतली शीट में पीटा जाता है, फिर बारीक तार बनाए जाते हैं। इन्हें रेशम के धागे पर लपेटा जाता है। पीली रेशम पर गोल्ड जरी और सफेद पर सिल्वर जरी बनती है। यह प्रक्रिया इतनी मेहनती है कि एक साड़ी में हजारों घंटे लग जाते हैं।
आज की हकीकत
बनारस के कन्हैया लोहिया, क्यूआर टेक्सटाइल्स और वंदना साड़ी जैसे दुकानदार सर्टिफाइड गोल्ड-सिल्वर वर्क वाली साड़ियाँ बेच रहे हैं। एक सतरंगी बनारसी साड़ी (रंगकटाई स्टाइल) की कीमत 1 लाख 85 हजार रुपये से शुरू होती है। दो कारीगर मिलकर 6.5 महीने लगाते हैं। नीता अंबानी जैसी हस्तियाँ इन्हें खूब पसंद करती हैं। हैंडलूम एक्सपो में इनकी डिमांड आसमान छू रही है।
निवेश का नया रूप
सोने-चांदी के भाव बढ़ने से पुरानी जरी साड़ियाँ अब इन्वेस्टमेंट बन गई हैं। 98% प्योर सिल्वर को गोल्ड प्लेटिंग से बनाई जरी की वैल्यू मार्केट रेट से जुड़ी है। प्लेटफॉर्म्स जैसे OLDZARI.COM इनकी वैल्यूएशन करते हैं।
चुनौतियाँ और भविष्य:
पावरलूम का बोलबाला है, लेकिन हैंडलूम कारीगर परंपरा को संभाल रहे हैं। जीआई टैग वाली ये साड़ियाँ वैश्विक बाजार में छाई हैं। कारीगरों का कहना है, “हमारी साड़ियाँ सिर्फ कपड़ा नहीं, इतिहास हैं।”
बनारस आइए, इन चमकती साड़ियों को करीब से देखिए। आज भी यह कला जीवंत है, अमर है!

