Patna News: बिहार, जो कभी आर्थिक रूप से पिछड़ेपन की छवि का शिकार था, अब शेयर बाजार की दुनिया में तेजी से उभर रहा है। वित्तीय वर्ष 2020 से अगस्त 2025 तक के पांच वर्षों में राज्य में शेयर बाजार में भागीदारी 715 प्रतिशत बढ़ गई है। निवेशकों की संख्या 6.7 लाख से उछलकर 54.6 लाख हो चुकी है, जो चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (सीएजीआर) 52.8 प्रतिशत को दर्शाती है। यह वृद्धि इतनी तेज है कि बिहार अब राष्ट्रीय शेयर बाजार (एनएसई) की सूची में दसवें स्थान पर काबिज हो गया है, जबकि राज्य की प्रति व्यक्ति आय महज 60,000 रुपये सालाना है।
यह क्रांति पटना की चमचमाती सड़कों से लेकर आरा के पारंपरिक बाजारों तक फैल चुकी है। पारंपरिक निवेश के साधनों जैसे फिक्स्ड डिपॉजिट (एफडी) और एलआईसी पॉलिसी को छोड़कर लोग अब फ्यूचर्स ट्रेडिंग और इक्विटी योजनाओं की ओर रुख कर रहे हैं। एसोसिएशन ऑफ म्यूचुअल फंड्स इन इंडिया (एएमएफआई) के आंकड़ों के मुताबिक, बिहार के 89 प्रतिशत म्यूचुअल फंड एसेट्स इक्विटी स्कीमों में निवेशित हैं, जो दिल्ली और पंजाब जैसे धनी राज्यों से भी आगे है।
तकनीक और जागरूकता ने बदला परिदृश्य
इस बदलाव का मुख्य कारण तकनीक का जादू है। स्मार्टफोन, यूपीआई और मोबाइल ऐप्स जैसे जीरोधा, एंजेल वन, अपस्टॉक्स और ग्रो जैसे प्लेटफॉर्म ने छोटे शहरों और गांवों तक निवेश की पहुंच आसान बना दी है। यूट्यूब चैनल्स, इंस्टाग्राम रील्स और फिनफ्लुएंसर्स ने वित्तीय साक्षरता को बढ़ावा दिया है। युवा पीढ़ी ‘जीरो टू हीरो ट्रेड’ के रोमांच में फंस गई है, जहां त्वरित मुनाफे से जीवनशैली को फंड किया जा रहा है। चंद्रगुप्त इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट, पटना के डॉ. राणा सिंह बताते हैं, “तकनीक ने शेयर बाजार में प्रवेश को सरल बना दिया है, जिससे बिहार जैसे कम आय वाले राज्य में भी भागीदारी बढ़ी है।”
एनएसई की जुलाई 2025 रिपोर्ट के अनुसार, बिहार में इक्विटी निवेशकों की संख्या में 678.8 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, जो फाइनेंशियल ईयर 2019-20 से मई 2025 तक 7 लाख से 52 लाख तक पहुंच गई। यह राज्य को भारत के शीर्ष 10 निवेशक राज्यों में शामिल कर दिया, जहां उत्तर भारत का योगदान कुल 20 प्रतिशत सालाना वृद्धि में अग्रणी है।
आरा और पटना की सड़कों पर ट्रेडिंग का बुखार
आरा के बाबू बाजार में पुराने जमींदार हवेली में बसी मोतीलाल ओसवाल की फ्रेंचाइजी इसका जीता-जागता उदाहरण है। 2023 से यहां 100 से अधिक निवेशक जुड़े हैं, जिनमें सरकारी क्लर्क, नकली जेवर बेचने वाले, क्वैक डॉक्टर, फैक्ट्री सुपरवाइजर और मिठाई दुकान मालिक शामिल हैं। 23 वर्षीय राहुल कुमार और प्रियांशु कुमार, जो बीएससी मैथ्स ग्रेजुएट हैं, इस फ्रेंचाइजी को चला रहे हैं। यूट्यूब चैनल्स जैसे ‘पावर ऑफ स्टॉक्स’ से प्रशिक्षित ये युवा मासिक 1 लाख रुपये कमीशन से कमा रहे हैं। राहुल कहते हैं, “लोग एफडी के 6-7 प्रतिशत रिटर्न से ऊब चुके हैं। फ्यूचर्स ट्रेडिंग में 20-30 प्रतिशत की संभावना उन्हें आकर्षित कर रही है।”
पटना में आईआईएफएल की गांधी मैदान फ्रेंचाइजी के प्रमुख जितेंद्र कुमार के पास 1,200 से अधिक क्लाइंट हैं। ज्यादातर बुजुर्ग एफडी और एलआईसी से शिफ्ट हो रहे हैं, जबकि युवा कई डीमैट अकाउंट्स चला रहे हैं। सुमन कुमारी, पटना सचिवालय में एएसओ, ने 2023 में 10,000 रुपये का एसआईपी शुरू किया। वहीं, 50 वर्षीय सुमन रुंगटा, जो महिलाओं के गारमेंट्स की दुकान चलाती हैं, स्वयं 10 लाख का पोर्टफोलियो मैनेज करती हैं। कंप्यूटर साइंस डिप्लोमा धारक सुमन चार्ट्स का अध्ययन कर जोखिम से बचती हैं। आरा के 18 वर्षीय ओम प्रकाश और मोहित जैसे युवा पॉकेट मनी से 7,000 और 2,000 रुपये के एसआईपी चला रहे हैं।
जोखिमों की अनदेखी न करें
हालांकि यह उछाल उत्साहजनक है, लेकिन विशेषज्ञ चेतावनी दे रहे हैं। आईआईटी पटना के असिस्टेंट प्रोफेसर राजेंद्र एन. परमानिक कहते हैं, “यह वृद्धि उपभोग-प्रेरित है, न कि पूंजी-प्रेरित। यदि इसे रचनात्मक दिशा न दी गई, तो 20 वर्षों में यह बोझ बन सकता है।” फ्यूचर्स ट्रेडिंग के उच्च जोखिम, जैसे तेज नुकसान, युवाओं को आकर्षित कर रहे हैं, लेकिन कई शुरुआती निवेशक पैसे गंवा चुके हैं। एजुकेशन और सर्टिफिकेशन जैसे एनआईएसएम परीक्षाओं की भूमिका बढ़ रही है, ताकि अंधाधुंध ट्रेडिंग रोकी जा सके।
बिहार की यह शेयर बाजार क्रांति न केवल आर्थिक परिवर्तन का संकेत है, बल्कि युवाओं की महत्वाकांक्षा और डिजिटल भारत की ताकत को भी रेखांकित करती है। लेकिन सतर्कता के बिना यह उछाल जोखिम भरा साबित हो सकता है। राज्य सरकार और वित्तीय संस्थाओं को अब जागरूकता अभियानों पर जोर देना होगा, ताकि यह क्रांति स्थायी बने।
यह भी पढ़ें: शातिर तरीके से करतें थे ठगी, 128 एटीएम, 20 मोबाइल और मिले बैंकों के अहम दस्तावेज

