जनरल डायर से लेकर आडवाणी और राहुल गांधी तक, SGPC ने ‘सरोपा’ पर कैसा रुख अपनाया अभी तक

How has the SGPC taken its stance on the ‘Saropa’? News: सिख समुदाय का सर्वोच्च सम्मान माना जाने वाला ‘सरोपा’ हाल के दिनों में विवादों में रहा है, खासकर जब यह राजनीतिक हस्तियों को प्रदान करने की बात आने लगी है तब से। शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (SGPC) ने इस सम्मान के वितरण को लेकर समय-समय पर अलग-अलग रुख अपनाया है, जो ऐतिहासिक और राजनीतिक संदर्भों से प्रभावित रहा है।

सरोपा का इतिहास और महत्व
सरोपा की परंपरा सिख इतिहास में गहरी जड़ें रखती है। यह सम्मान की एक प्रतीकात्मक पोशाक है, जिसकी शुरुआत गुरु अंगद देव द्वारा गुरु अमर दास को हर साल प्रदान करने से मानी जाती है। धार्मिक और सामाजिक संदर्भ में, सरोपा को उच्च नैतिकता, समर्पण और मानवता की सेवा के लिए दिया जाता रहा है। हालांकि, हाल के वर्षों में इसका उपयोग राजनीतिक और सामाजिक प्रभावशाली लोगों को सम्मानित करने के लिए भी देखा गया है, जिसे कई लोग इसकी मूल भावना के खिलाफ मानते हैं।

SGPC का रुख: ऐतिहासिक उदाहरण
SGPC ने सरोपा देने को लेकर सख्त नियम बनाए हैं, खासकर गुरुद्वारा के पवित्र स्थानों जैसे दर्शन हॉल में। इतिहास में, जनरल डायर जैसे विवादास्पद व्यक्तियों को भी सरोपा दिया गया था, जो जलियांवाला बाग हत्याकांड के बाद सिख समुदाय के लिए आलोचना का विषय बना। इसके विपरीत, आधुनिक समय में SGPC ने राजनीतिक हस्तियों के प्रति सतर्क रवैया अपनाया है। उदाहरण के तौर पर, 2011 में बीजेपी नेता लालकृष्ण आडवाणी को स्वर्ण मंदिर की यात्रा के दौरान सरोपा नहीं दिया गया। इसी तरह, 2002 में जब कांग्रेस नेता कैप्टन अमरिंदर सिंह मुख्यमंत्री बने, तो उनकी पहली यात्रा में उन्हें सरोपा नहीं दिया गया, हालांकि 2004 में उन्हें पवित्र स्थल के बाहर और 2017 में अंदर सरोपा प्रदान किया गया।

राहुल गांधी और हालिया विवाद
हाल ही में, 2025 की शुरुआत में, कांग्रेस नेता राहुल गांधी को पंजाब के बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों की यात्रा के दौरान गुरुद्वारा बाबा बुद्धा साहिब, अमृतसर में सरोपा प्रदान किया गया। यह घटना तब विवाद में आई जब SGPC ने नियमों का उल्लंघन मानते हुए दो कर्मचारियों को निलंबित और एक अस्थायी कर्मचारी को बर्खास्त कर दिया। SGPC का तर्क था कि सरोपा पवित्र स्थल के अंदर प्रदान करना ‘मर्यादा’ (धार्मिक आचार संहिता) का उल्लंघन है और उनकी कार्यकारी समिति ने VIP या खास व्यक्तियों को दर्शन हॉल में सरोपा देने पर रोक लगा रखी है।

SGPC सदस्य किरनजोत कौर ने इस घटना पर फेसबुक पर लिखा कि राहुल गांधी को उनकी दादी इंदिरा गांधी के कार्यों के लिए जिम्मेदार ठहराना गलत है। वहीं, कुछ लोगों का मानना है कि सरोपा का राजनीतिक हस्तियों को देना इसकी गरिमा को कम करता है, जैसा कि सिखीविकी और रेडिट जैसे मंचों पर चर्चा में देखा गया।

निष्कर्ष
SGPC का सरोपा को लेकर रुख समय और परिस्थितियों के अनुसार बदलता रहा है। जहां एक ओर यह सम्मान सिख समुदाय की धार्मिक और सामाजिक मूल्यों को दर्शाता रहा है, वहीं राजनीतिक दबाव और विवादों ने इसे जटिल बना दिया है। राहुल गांधी की घटना के बाद यह बहस फिर से जोर पकड़ रही है कि क्या सरोपा को केवल योग्यता और समर्पण के आधार पर ही दिया जाना चाहिए, या यह राजनीतिक हस्तियों के लिए एक औपचारिकता बनकर रह गया है।

यह भी पढ़ें: ब्रिटेन समेत कई देशो ने दिया फिलिस्तीन को राज्य का दर्जा, क्या अब बदलेगी गाजा की जमीनी हकीकत?

यहां से शेयर करें