जोधराम की कहानी संघर्षों की एक अनकही दास्तान है। उनके पिता एक छोटे से किसान हैं, जो परिवार का पालन-पोषण करने के लिए दिन-रात खेतों में मेहनत करते हैं। 2012 में कक्षा 12वीं में मात्र 60-65 प्रतिशत अंक लाने पर जोधराम को लगा कि उनका सपना टूट गया। पिता ने सख्त लहजे में कहा, “या तो 70 प्रतिशत से ऊपर स्कोर करो और कोई स्थिर नौकरी पकड़ो, वरना मुंबई जाकर मजदूरी करो।” परिवार की आर्थिक तंगी ऐसी थी कि निजी कॉलेजों की फीस भी चुकाना नामुमकिन था।
रिश्तेदारों और पड़ोसियों ने सलाह दी कि छोटे-मोटे काम करो या खेती में हाथ बंटाओ। यहां तक कि मां ने भी कहा कि घर की आर्थिक मदद करो। लेकिन जोधराम के दिल में डॉक्टर बनने का जुनून था।
“लोग कहते थे कि मैं समय बर्बाद कर रहा हूं, लेकिन मेरा भाई मेवाराम ही एकमात्र ऐसा व्यक्ति था जो मुझ पर भरोसा करता था,” जोधराम ने एक इंटरव्यू में बताया। जोधराम ने हार नहीं मानी। जोधपुर के के.आर. पब्लिक सीनियर सेकेंडरी स्कूल में दाखिला लिया और प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी शुरू की।
पहले चार प्रयासों में NEET में असफल रहे—पहले प्रयास में AIR 1,50,000 तक पहुंचे, लेकिन सरकारी कॉलेज की कटऑफ से बाहर रहे। हर असफलता के बाद दबाव बढ़ता गया, लेकिन उन्होंने पांच साल तक लगातार मेहनत की। पांचवें प्रयास में 2019 में NEET के साथ-साथ AIIMS परीक्षा में भी रैंक 5,391 हासिल की। यह सफलता गांव के लिए मील का पत्थर साबित हुई—2004 के बाद पहली बार किसी ने मेडिकल प्रवेश परीक्षा क्रैक की।
NEET सफल होने के बाद जोधराम को जोधपुर के सम्पूर्णानंद मेडिकल कॉलेज में MBBS की सीट मिली। आज वे अपनी पढ़ाई पूरी कर चुके हैं और इंटर्नशिप के दौरान ग्रामीण स्वास्थ्य सेवाओं पर फोकस कर रहे हैं। “मैं सुपर 30 के आनंद कुमार की तरह गरीब लेकिन मेधावी छात्रों को मुफ्त कोचिंग देकर उनकी मदद करना चाहता हूं,” जोधराम कहते हैं। उनकी यह प्रेरणा आज भी उन युवाओं के लिए रोशनी की किरण है, जो आर्थिक या सामाजिक बाधाओं से जूझ रहे हैं।
जोधराम की कहानी साबित करती है कि असफलताएं अंत नहीं, बल्कि नई शुरुआत हैं। अगर सपनों पर यकीन हो, तो कोई भी मंजिल दूर नहीं। गांव के युवा आज जोधराम को अपना रोल मॉडल मानते हैं, और उम्मीद है कि उनकी यह यात्रा और भी कई जोधराम पैदा करेगी।

