Former IPS officer Amitabh Thakur: भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज बने पूर्व अधिकारी, योगी सरकार की गिरफ्तारी पर सवालों का दौर

Former IPS officer Amitabh Thakur: उत्तर प्रदेश के पूर्व आईपीएस अधिकारी अमिताभ ठाकुर एक बार फिर सुर्खियों में हैं। 10 दिसंबर को लखनऊ पुलिस ने उन्हें शाहजहांपुर में एक चलती ट्रेन से गिरफ्तार कर लिया। यह गिरफ्तारी 1999 के एक पुराने भूमि धोखाधड़ी मामले से जुड़ी है, जिसमें ठाकुर पर देवरिया जिले में एसपी रहते हुए फर्जी दस्तावेजों से औद्योगिक प्लॉट हासिल करने का आरोप है। कोर्ट ने उन्हें 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में भेज दिया। पेशी के दौरान ठाकुर ने पुलिस पर अमानवीय व्यवहार का आरोप लगाया और अपनी हत्या की आशंका जताई। विपक्षी दलों ने इसे राजनीतिक प्रतिशोध करार दिया है, जबकि भाजपा समर्थक इसे कानूनी कार्रवाई बता रहे हैं।
अमिताभ ठाकुर का नाम उत्तर प्रदेश की राजनीति और प्रशासनिक हलकों में भ्रष्टाचार के खिलाफ मुखर आवाज के रूप में जाना जाता है। लेकिन उनका सफर संघर्षों और विवादों से भरा रहा है। आइए, उनके जीवन और विवादित मामलों पर एक नजर डालें।

प्रारंभिक जीवन और शिक्षा: इंजीनियर से आईपीएस तक का सफर
अमिताभ ठाकुर का जन्म 16 जून 1968 को बिहार के मुजफ्फरपुर जिले में हुआ। उनके पिता तपेश्वर नारायण ठाकुर एक इलेक्ट्रिकल इंजीनियर थे, जबकि मां माधुरी बाला हिंदी व्याख्याता थी। उनका पालन-पोषण बोकारो स्टील सिटी (तत्कालीन बिहार, वर्तमान झारखंड) में हुआ। 1983 में मैट्रिक और 1985 में इंटरमीडिएट केंद्रीय विद्यालय, बोकारो से पास करने के बाद उन्होंने 1989 में आईआईटी कानपुर से मैकेनिकल इंजीनियरिंग में बीटेक किया। इसके बाद उन्होंने आईआईएम लखनऊ से फेलो प्रोग्राम इन मैनेजमेंट (FPM) पूरा किया, जो चार वर्षीय कोर्स था।

उच्च शिक्षा के बावजूद ठाकुर ने सिविल सेवा की राह चुनी। 1992 बैच के उत्तर प्रदेश कैडर के आईपीएस अधिकारी बनने के बाद वे कानपुर में प्रारंभिक प्रशिक्षण लेने पहुंचे। उनकी पहली प्रमुख पोस्टिंग गोरखपुर में हुई। करियर के दौरान वे देवरिया, ललितपुर, पिथौरागढ़, गोंडा, बस्ती, संत कबीर नगर, फिरोजाबाद, बलिया और महाराजगंज समेत 10 जिलों में एसपी रहे। इसके अलावा इंटेलिजेंस, विजिलेंस, एंटी-करप्शन और पुलिस ट्रेनिंग अकादमी में भी उनकी भूमिका रही। ठाकुर ने हमेशा पारदर्शिता, जवाबदेही और पुलिस सुधार पर जोर दिया, खासकर गरीबों की शिकायतों के निवारण और अधीनस्थ अधिकारियों के संगठनों की वकालत में।

विवादों का सिलसिला: सत्ता के खिलाफ मुखरता
ठाकुर का करियर विभिन्न सरकारों से टकरावों से भरा रहा। 2006 में फिरोजाबाद एसपी के रूप में उन्होंने मुलायम सिंह यादव के रिश्तेदार एमएलए रामवीर सिंह यादव के अवैध आदेशों का विरोध किया, जिसके बाद उन पर हमला हुआ और मनहानी का एफआईआर दर्ज कराया गया। 2008-09 में मायावती सरकार से स्टडी लीव को लेकर विवाद हुआ, जहां उन्होंने केंद्रीय प्रशासनिक ट्रिब्यूनल (सीएटी) और हाईकोर्ट में जीत हासिल की।

2014-17 के दौरान अखिलेश यादव सरकार के समय सबसे बड़े विवाद सामने आए। उनकी पत्नी डॉ. नूतन ठाकुर ने माइनिंग मंत्री पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाया, जिसके बाद ठाकुर परिवार पर झूठा बलात्कार का केस दर्ज कराया गया (बाद में खारिज)। मुलायम सिंह यादव से धमकी का ऑडियो वायरल हुआ और एसेट्स में अनियमितता का एफआईआर (बाद में खारिज)। ठाकुर ने सपा सरकार के खिलाफ खुलकर आवाज उठाई, धरने दिए और सोशल मीडिया पर आलोचना की, लेकिन अखिलेश यादव ने कभी उन्हें गिरफ्तार नहीं करवाया।

योगी आदित्यनाथ सरकार आने के बाद टकराव और तेज हो गया। 2007 के दंगों में सख्त कार्रवाई और 1999 के एक मर्डर केस की जांच जैसे पुराने मुद्दों पर विवाद। मार्च 2021 में सात साल सेवा शेष रहते ठाकुर को ‘अक्षमता’ और ‘सार्वजनिक हित के विरुद्ध’ बताकर जबरन रिटायर कर दिया गया। उन्होंने सीएटी में चुनौती दी, जो लंबित है। रिटायरमेंट के बाद वे सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ता बने। उन्होंने राष्ट्रीय आरटीआई फोरम (2005 आरटीआई एक्ट के तहत पारदर्शिता की वकालत), आईआरडीएस (ह्यूमन राइट्स संगठन) की स्थापना की। 500 से अधिक आरटीआई आवेदन और 150 से ज्यादा पीआईएल दाखिल किए, जिनमें कई पर कार्रवाई हुई। उन्होंने पत्रकार जगेंद्र सिंह की डाइंग डिक्लेरेशन रिकॉर्ड की और फेसबुक पर गांधी के खिलाफ ग्रुप पर एफआईआर कराई।

2021 में आजाद अधिकार सेना की स्थापना की, जो संवैधानिक अधिकारों और लोकतांत्रिक मूल्यों पर आधारित है। इसी साल अगस्त में योगी आदित्यनाथ के खिलाफ विधानसभा चुनाव लड़ने की घोषणा के तुरंत बाद गिरफ्तार कर लिए गए। मामला: बीएसपी सांसद अतुल राय के रेप केस से जुड़ी एक महिला की आत्महत्या में ‘उकसावे’ का। आरोप था कि ठाकुर ने राय के साथ मिलकर सोशल मीडिया पर फर्जी जानकारी फैलाई, गोपनीय रिपोर्ट लीक की और महिला को उकसाया। आईपीसी की धारा 120बी, 306 आदि के तहत एफआईआर दर्ज किया गया । मार्च 2022 में बेल मिली, लेकिन चुनाव परिणाम के बाद जेल से रिहा। पत्नी नूतन ने इसे राजनीतिक उत्पीड़न बताया।

हालिया गिरफ्तारी: 26 साल पुराना मामला, राजनीतिक साजिश का आरोप
10 दिसंबर को ठाकुर दिल्ली जा रहे थे जब शाहजहांपुर में सादी वर्दी की पुलिस ने बिना वारंट दिखाए उन्हें ट्रेन से उतार लिया। मामला 1999 का है, जब देवरिया एसपी रहते उन्होंने पत्नी नूतन के नाम पर प्लॉट बी-2 का आवंटन कराया था। दस्तावेजों में पत्नी का नाम ‘नूतन देवी’, पति का ‘अभिजात ठाकुर’ और पता बिहार के सतामढ़ी का दर्ज किया गया। बाद में प्लॉट बेच दिया गया। पंडित संजय शर्मा की शिकायत पर एफआईआर दर्ज हुई है। गिरफ्तारी के बाद कोर्ट में पेशी के दौरान पुलिस ने उन्हें धक्के मारे, जिसका वीडियो वायरल हो गया। ठाकुर ने कहा, “मुझे मारना है तो मार दीजिए, लेकिन हत्या की साजिश न रचें।” उनकी पत्नी का एक्स अकाउंट सस्पेंड हो गया।

विपक्षी नेता इसे ‘डरपोक सरकार’ की निशानी बता रहे हैं। सपा के एक नेता ने कहा, “सपा शासन में ठाकुर खुलकर बोलते थे, धरने देते थे, लेकिन कभी गिरफ्तार नहीं हुए। योगी सरकार ने दो बार जेल भेजा—यह सत्ता का डर दिखाता है।” आजाद अधिकार सेना ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। भाजपा समर्थक इसे ‘कानूनी कार्रवाई’ बता रहे, पुराने ‘अपराधों’ का हिसाब।
ठाकुर का जीवन ईमानदारी और संघर्ष की मिसाल है, लेकिन विवादों ने उन्हें सत्ता का निशाना बना दिया। क्या यह गिरफ्तारी न्याय है या दमन? समय ही बताएगा।

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