यह विवाद 25 नवंबर से तेज हुआ, जब एक्स ने अकाउंट्स की उत्पत्ति देश की जानकारी दिखानी शुरू की। बीजेपी आईटी सेल प्रमुख अमित मालवीय ने एक्स पर पोस्ट कर कहा, “एक्स की नई लोकेशन सुविधा के बाद एक रोचक पैटर्न उभरा है। प्रो-कांग्रेस, एंटी-हिंदू और जाति-आधारित विभाजनकारी हैंडल्स का बड़ा हिस्सा भारत से संचालित ही नहीं हो रहा। कई पाकिस्तान, बांग्लादेश और एशिया के अन्य हिस्सों से चल रहे हैं। ये यूजरनेम बदलकर अपनी पहचान छिपाते रहे हैं।” मालवीय ने इसे “भारत के खिलाफ साजिश” बताया, जो मिसइनफॉर्मेशन फैलाने और आंतरिक विभाजन पैदा करने का प्रयास है।
बीजेपी प्रवक्ता संबित पात्रा ने गुरुवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस में कई उदाहरण पेश किए। उन्होंने कांग्रेस नेता पवन खेड़ा का अकाउंट अमेरिका से, महाराष्ट्र कांग्रेस हैंडल को आयरलैंड से और कई अन्य को पाकिस्तान-बांग्लादेश से जोड़ा। पात्रा ने कहा, “ये हैंडल्स ‘वोट चोरी’, ‘ऑपरेशन सिंदूर’ जैसे मुद्दों पर झूठी नैरेटिव सेट कर रहे हैं। राहुल गांधी और लेफ्ट इकोसिस्टम के विदेशी सहयोगी भारत को बदनाम करने पर उतारू हैं।” बीजेपी ने दावा किया कि ये अकाउंट्स चुनाव आयोग, आरएसएस और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर हमले कर रहे हैं, जो 2014 से चली आ रही साजिश का हिस्सा है।
इस बीच, कांग्रेस ने बीजेपी के आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया। पार्टी की सोशल मीडिया प्रमुख सुप्रिया श्रीनाते ने कहा, “एक्स ने खुद इस फीचर में ग्लिच स्वीकार किया है। मेरे पास भी गुजरात बीजेपी, स्टार्टअप इंडिया और डीडी न्यूज जैसे हैंडल्स के विदेशी लोकेशन के नाम हैं। क्या ये सब एंटी-इंडिया नैरेटिव चला रहे हैं?” कांग्रेस नेता पवन खेड़ा ने इसे “सरकार का डायवर्जन टैक्टिक” बताया, जो बेरोजगारी, महंगाई और शासन की नाकामियों से ध्यान भटकाने का प्रयास है। पार्टी ने जोर देकर कहा कि वोटर लिस्ट में गड़बड़ी और 26 बीएलओ की मौत जैसे मुद्दों पर सवाल उठाना जरूरी है, न कि “कांस्पिरेसी थ्योरी” गढ़ना।
एक्स की इस सुविधा ने पहले भी अमेरिका में ट्रंप समर्थक अकाउंट्स को उजागर किया था, लेकिन भारत में यह राजनीतिक रंग ले चुका है। बीजेपी नेता राजीव चंद्रशेखर ने इसे “राज्य-प्रायोजित मिसइनफॉर्मेशन” के खिलाफ लड़ाई बताया, जबकि विपक्ष का कहना है कि लोकेशन डेटा वीपीएन या तकनीकी खामियों से प्रभावित हो सकता है। एक्स पर हाल के पोस्ट्स से साफ है कि यह बहस तेज हो रही है, जहां यूजर्स विदेशी ट्रोल फार्म्स की आलोचना कर रहे हैं।
यह विवाद सोशल मीडिया पर राजनीतिक नैरेटिव सेटिंग की विश्वसनीयता पर सवाल उठा रहा है। क्या यह वाकई विदेशी हस्तक्षेप है या तकनीकी भूल? आने वाले दिनों में और खुलासे हो सकते हैं, लेकिन फिलहाल यह बीजेपी-कांग्रेस के बीच डिजिटल जंग का नया मैदान बन चुका है।

