Financial Crisis: भारत में फटने वाला है लोन पर ली प्रोपर्टी का बुलबुला, गहरा रहा संकट

Financial Crisis: भारत में सबप्राइम लोन का बुलबुला लगातार फुलता जा रहा है। अब लाखों परिवार कर्ज के जाल में फंसा चुके है। दूसरे शब्दों में सबप्राइम लोन का संकट गहराता जा रहा है। इसका सीधा असर प्रोपर्टी बाजार पर पड़ेगा। यह बात न्यूज एजेंसी ब्लूमबर्ग ने कई सर्वे का हवाला देकर यह बात कही है। रिपोर्ट में कहा है कि लगभग 68 प्रतिशत लोगों को लोन चुकाने में दिक्कत हो रही है। इस वजह से इस क्षेत्र में पैसा लगाने वाले निवेशकों को नुकसान हो सकता है। यह उद्योग लगभग 45 अरब डॉलर का है। विशेषज्ञों का मानना है कि भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) को इस पर और कड़ी निगरानी रखनी चाहिए। कहा जा रहा है कि फाइनेंशियल इन्क्लूजन का मतलब सिर्फ लोन देना नहीं है, बल्कि यह भी सुनिश्चित करना है कि लोग उसे समय से चुका सकें। सबप्राइम कर्ज वे लोन होते हैं जो उन बॉरोअर को दिए जाते हैं जिनकी क्रेडिट हिस्ट्री अच्छी नहीं होती है। पहले, माइक्रोफाइनेंस कंपनियां कुछ लोगों के समूह को लोन देती थीं। समूह के सभी सदस्यों की जिम्मेदारी होती थी कि वे समय पर लोन चुकाएं। बताया जाता है कि इससे लोन की वसूली आसानी से हो जाती थी।

कोरोना का पड़ा असर
बता दें कि कोरोना महामारी के दौरान सामाजिक दूरी के नियमों के कारण समूह में बैठकें बंद हो गईं। चेन्नई स्थित एक पॉलिसी रिसर्च संस्था द्वारा रिसर्चश् ने पिछले महीने एक रिपोर्ट में कहा, सके बाद माइक्रोफाइनेंस संस्थानों के लिए समूह एकजुटता के उसी स्तर को बनाए रखना मुश्किल हो गया है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि ग्राहकों को अब पता है कि समूह में शामिल होने के सामाजिक दबाव से बचना संभव है, जो संयुक्त देयता का मुख्य आधार था।

 

Financial Crisis:
बढ रही लोन चुकाने की समस्या
लोन चुकाने में देरी की समस्या बढ़ रही है। 91 से 180 दिनों के बीच लोन की किस्त जमा न होने का फीसदी बढ़कर 3.3% हो गया है। जबकि जून 2023 में यह आंकड़ा सिर्फ 0.8% था। इसका मतलब है कि स्थिति और खराब हो सकती है। बहुत से लोग पुराने लोन चुकाने के लिए नए लोन ले रहे हैं। कुछ लोग तो इतने परेशान हैं कि उन्हें अपने बच्चों को स्कूल से निकालना पड़ रहा है। इससे पता चलता है कि आने वाले दिनों में लोन डिफॉल्ट और बढ़ सकते हैं।
ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट में कहा गया है कि यहां जिन सबप्राइम लोन की बात है, वे 2007-2008 के वैश्विक वित्तीय संकट के दौरान अमेरिका में दिए गए लोन से अलग हैं। ये छोटे लोन हैं, जिन्हें माइक्रोफाइनेंस कहा जाता है। ये लोन उन लोगों को दिए जाते हैं जिनके पास नियमित नौकरी नहीं है या जो अपना छोटा-मोटा काम करते हैं। भारत में ऐसे लोन की बहुत मांग है। कारण है कि यहां 10 में से 9 लोगों के पास कोई औपचारिक नौकरी नहीं है। इन लोगों को बैंकों से लोन मिलना मुश्किल होता है।

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