भांग के रेशों से बने पर्यावरण अनुकूल घर ने उत्तराखंड को दे रही नई पहचान

Dehradun News: उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में एक अनोखी मिसाल कायम हो रही है, जहां भांग (हेम्प) के रेशों से बनी ईंटें न केवल घरों को मजबूत बना रही हैं, बल्कि पर्यावरण संरक्षण की दिशा में भी क्रांति ला रही हैं। पौड़ी गढ़वाल जिले के फलदाकोट मल्ला गांव में आर्किटेक्ट दंपति नम्रता कंडवाल और गौरव दीक्षित ने दो साल की कड़ी मेहनत से ‘हिमालयन हेम्प इको-स्टे’ नामक एक ऐसा घर बनाया है, जो पूरी तरह से स्थानीय संसाधनों पर आधारित है और टिकाऊ जीवनशैली का प्रतीक बन चुका है।

यह घर ऋषिकेश से मात्र 35 किलोमीटर दूर स्थित है और भांग के रेशों, चूने तथा फ्लाई ऐश के मिश्रण से तैयार ‘हेम्पक्रीट’ सामग्री से निर्मित है। पारंपरिक सीमेंट और कंक्रीट से हटकर बनी ये ईंटें न केवल हल्की और मजबूत हैं, बल्कि भूकंप, बाढ़ और आग जैसी प्राकृतिक आपदाओं का भी सामना करने में सक्षम हैं। एक परीक्षण के दौरान इन ईंटों ने 40 मिनट तक आग के संपर्क में रहने के बावजूद खुद को संभाला, जो उनकी अग्निरोधी क्षमता को दिखाया है। गर्मियों में ठंडक और सर्दियों में गर्माहट प्रदान करने वाली यह सामग्री घर को प्राकृतिक रूप से आरामदायक बनाती है।

नम्रता और गौरव ने स्थानीय किसानों से भांग के पौधे खरीदे, जिन्हें फसल के बाद आमतौर पर फेंक दिया जाता था। उन्होंने एक विशेष मशीन विकसित की, जो बिना पानी के उपयोग के रेशों को तैयार करती है, जिससे कचरा मुक्त और किफायती मॉडल तैयार हुआ। घर की बिजली 3 किलोवाट के सोलर पैनलों से आती है, जबकि 4,000 लीटर क्षमता वाले टैंक में वर्षा जल संग्रहित किया जाता है। यहां तक कि उपयोगित पानी को भी पौधों की सिंचाई के लिए पुनर्चक्रण किया जाता है। यह प्रोजेक्ट ‘गोहेम्प एग्रोवेंचर्स’ नामक उनके स्टार्टअप का हिस्सा है, जिसने ‘ग्लोबल हाउसिंग टेक्नोलॉजी चैलेंज’ में शीर्ष पांच स्थान हासिल किया और नेपाल के ‘एशियन हेम्प समिट’ में सर्वश्रेष्ठ उद्यमी पुरस्कार जीता।

DD नेशनल के लोकप्रिय कार्यक्रम ‘गांव से with नीलेश मिश्रा’ में इस अनोखी पहल को विशेष रूप से दिखाया गया है, जो सोमवार से शुक्रवार शाम 6 बजे प्रसारित होता है। नीलेश मिश्रा ने इसे “परंपरा और तकनीक का अनोखा संगम” बताते हुए कहा कि यह घर न केवल पर्यटन को बढ़ावा देगा, बल्कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करने में भी मददगार साबित होगा।

उत्तराखंड सरकार और पर्यटन विभाग ने भी इस मॉडल की सराहना की है, इसे सतत विकास के लिए प्रेरणादायक मानते हुए। विशेषज्ञों का मानना है कि भांग जैसे स्थानीय संसाधनों का उपयोग बढ़ने से न केवल पर्यावरण संरक्षित होगा, बल्कि किसानों की आय में भी वृद्धि होगी। यह पहल पूरे देश के लिए एक मिसाल है, जहां पारंपरिक फसलें आधुनिक निर्माण का आधार बन रही हैं।

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