देश में कभी चर्चा होती है तो इस बात पर हमेशा सवाल होता है कि राज्यों के पास पैसा कहा से आता है और राज्य आर्थिक संकट (Economic crisis) से कैसे जूझते हैं? हाल ही में ऐसा ही मामला हिमाचल प्रदेश (Himachal Pradesh) में देखने को मिल रहा है। जहाँ सरकारी कर्मचारियों को समय से सैलरी नहीं मिली है। दरअसल, खबरें सामने आने लगी है कि हिमाचल आर्थिक संकट से गुजर रहा है, लेकिन राजनीतिक जानकार कहते हैं कि कांग्रेस की सरकार है इसलिए केंद्र का कोई सहारा नहीं।
सबसे हिमाचल की मौजूदा स्थिति
सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू (CM Sukhwinder Singh Sukhu) ने वेतन और पेंशन की नई तारीखों का ऐलान करते हुए कहा कि यह फैसला लोन पर खर्च होने वाले ब्याज से बचने के लिए लिया गया है। इससे सालाना 36 करोड़ रुपये की बचत होगी। सीएम सुक्खू ने इसे फाइनेंशियल डिसिप्लिन नाम दिया। वहीं एक बात ये भी है कि प्रदेश पर फिलहाल 94 हजार करोड़ रुपयों का कर्ज है। पुराने लोन को चुकाने के लिए सरकार नए लोन ले रही है।
ऐसी स्थिति बिहार में लालू के मुख्यमंत्री रहते हुई थी
ठीक इसी प्राकर की स्थिति बिहार में लालू प्रसाद यादव (Lalu Prasad Yadav in Bihar) के कार्यकाल में भी दिखती रही। सरकारी कर्मचारियों को महीनों तक वेतन का इंतजार करना पड़ता था। नब्बे के दशक में उत्तर प्रदेश में भी कमोबेश ऐसा हाल देखा गया था। ये राजनैतिक और आर्थिक अस्थिरता का दौर था, जब स्टेट के सरकारी कोष में कथित तौर पर पैसे ही नहीं बचे थे।
टैक्स इसका सबसे बड़ा सोर्स है। हर राज्य के पास कई तरह के टैक्स लगाने का अधिकार होता है, इसमें जीएसटी, लैंड रेवेन्यू, स्टेट एक्साइज ड्यूटी, गाड़ियों पर कर, एंटरटेनमेंट टैक्स जैसी कई श्रेणियां हैं। राज्य के खजाने का बड़ा हिस्सा यहीं से आता है। सरकारें अपने वित्तीय संसाधनों को इनवेस्ट कर उससे भी ब्याज पाती हैं।
केन्द्र समय समय पर देता है मदद
हर राज्य की भौगोलिक स्थिति, आबादी के अनुसार से सेंटर उसे वित्तीय मदद देता है। यह सहायता अलग-अलग स्कीम्स, केंद्र की प्रोजेक्ट्स को पूरा करने और राजस्व में घाटे को पाटने के लिए दी जाती है। सेंटर जरूरत के मुताबिक राज्य को इंट्रेस्ट-फ्री लोन भी देता है, मगर हर लोन के साथ कुछ शर्तें होती हैं जैसे योजनाओं को समय पर पूरा करना। अलग-अलग तरह के फंड भी होते हैं, जैसे डिजास्टर से हुए नुकसान को भरने के लिए। ये एकमुश्त और किस्तों में भी दिए जाते हैं।
सरकारी लोगों को कैसे मिलता है वेतन
इसका बड़ा हिस्सा राजस्व से आता है। सरकारें हर साल एक बजट तैयार करती हैं, जिसमें प्रशासनिक बजट भी एक हिस्सा है। यहीं से लोगों को तनख्वाह मिलती है। इसी तरह से पेंशन के लिए भी अलग बंटवारा रहता है। केंद्र से मिले ग्रांट का भी कुछ हिस्सा इसमें लग जाता है।
ऐसे कभी भी आ जाता है आर्थिक संकट
राज्यों के पास कई स्त्रोतों से धन आता हैं। कई बार पैसों के असमान बंटवारे से भी कोष खाली होता चला जाता है। कई बार सरकारें वोट बैंक के लिए कुछ खास स्कीम पर जोर देती हैं, जिससे फायदा कम, नुकसान ज्यादा होता है। अगर राज्य ने बहुत अधिक उधार ले रखा हो और लोन भरने की क्षमता कम हो तब भी ब्याज बढ़ता चला जाता है। कई बार कुछ ऐसे हालात बन जाते हैं, जिनके बारे में किसी ने सोचा भी न हो, जैसे कोविड का दौर. ऐसे में सेंटर के अलावा राज्यों पर भी बोझ पड़ा था। बाढ़, भूकंप या सुनामी जैसी कुदरती मुसीबत भी मुश्किल बढ़ाती है, भले ही इसके लिए सेंटर से पैसे आते हैं।
बताते है कि बिहार में क्या हुआ था, क्यो आया था संकट
लालू प्रसाद यादव के मुख्यमंत्री रहने के दौरान राज्य में आर्थिक संकट का ग्राफ काफी ऊपर जा चुका था। नेताओं और अधिकारियों पर प्रशासनिक लापरवाही के आरोप लगते रहे। राजस्व घाटा बहुत ज्यादा होने पर स्टेट और कर्ज लेने लगा। इस तरह से एक चेन चल पड़ी थी। इससे उबरने के लिए तत्कालीन सरकार ने विकास पर निवेश करने की जगह अलग-अलग तरीके अपनाए। नतीजा ये हुआ कि सरकारी कर्मचारियों तक को तनख्वाह मिलने में देर होने लगी थी।