उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार और भाजपा संगठन के बीच नजूल भूमि बिल को लेकर विवाद होता दिख रहा है। दरअसल, ये बिल मानसून सत्र में पेश किया था। जो विधानसभा में पारित हो तो हो गया मगर यूपी विधानपरिषद में जबरदस्त हंगामे के बीच ये बिल लटक गया। जिसके बाद इसे प्रवर समिति को भेज दिया गया। बता दें कि सीएम योगी को इस विधेयक पर न सिर्फ विपक्षी दलों बल्कि कई भाजपा नेताओं और सहयोगियों का भी विरोध झेलना पड़ा। यहां यूपी के नोएडा और ग्रेटर नोएडा में भी प्रोपर्टी लीज पर मिलती है जैसे नजूल भूमि। बस फर्क उतना है कि नजूल भूमि 30 साल से 99 साल तक लीज पर मिलती है और इन दोनों शहरों में प्राधिकरण 99 साल के लिए जमीन लीज पर देता हैं
नजूल की जमीन किसते कहते है?
यहा ये जान लेना जरूरी है कि नजूल भूमि क्या है। बता दें कि देश में अंग्रेजी हुकूमत के दौरान उनका विरोध करने वाले राजा-रजवाड़े या आंदोलनकारियों की जमीन को छीन लिया जाता था. इस जमीन पर ब्रिटिश हुकूमत कब्जा कर लेती थी। ऐसी जमीनों को नजूल सम्पत्ति कहा जाता है। भारत की आजादी के बाद इस जमीन और ऐसी संपत्तियों का अधिकार राज्य सरकार के पास चला गया था। जिसे सरकार लीज पर देने लगी। राज्य सरकार द्वारा नजूल की जमीन को लीज पर देने की मियाद 15 साल से 99 साल के बीच हो सकती है। इस तरह की भूमि हर देश के हर राज्य में है। यूपी सरकार इसी भूमि को लेकर ये विधेयक लाई है। इन संपत्तियों का इस्तेमाल सार्वजनिक उद्देश्यों के लिए किया जाता है, जिसमें अस्पताल, स्कूल और पंचायत शामिल है।
नजूल भूमि विधेयक क्या और विवाद क्यो है?
नजूल सम्पत्ति विधेयक में प्रावधान किया गया है कि अगर कोई नजूल सम्पत्ति का पट्टा पर लिया है और उस पट्टे का किराये का नियमित रूप से भुगतान किया जा रहा है। उसमें किसी तरह के अनुबंध का उल्लंघन नहीं हुआ है तो उसका रिन्यू कर दिया जाएगा। ऐसे लोगों को 30 साल के लिए पट्टे का रिन्यू किया जाएगा। मगर पट्टे का समय पूरा हो चुका है तो वो संपत्ति सरकार के पास आ जाएगी। वहीं अगर पट्टा अवधि के खत्म होने के बाद नजूल संपत्ति का इस्तेमाल हो राह है तो पट्टे के किराया का निर्धारण डीएम द्वारा किया जाएगा। दरअसल ऐसी जमीन की भरमार है जो अंदरखाने सभी पार्टी के नेताओं के रिश्तेदारों के पास है उनके बच्चों के पास है।
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नजूल की जमीन हो सकती है ट्रांसफर
नियमों के मुताबिक नजूल जमीन का ट्रांसफर हो सकता है, लेकिन उस जमीन का मालिकाना हक नहीं बदला जा सकता। उस पर सरकार का ही मालिकाना हक रहता है। केवल उसके उपयोग में परिवर्तन किया जा सकता है। ठीक ऐसे ही प्राधिकरण में भी ट्रांसफर होता है लेकिन नियम वही रहते है।