Diwali special : वनटांगिया का योगी ने सुधारा जीवन, गोरखपुर-महराजगंज में हैं 23 गांव

Diwali special : गोरखपुर। ब्रिटिश हुकूमत में जब रेल पटरियां बिछाई जा रही थीं तो स्लीपर के लिए बड़े पैमाने पर जंगलों से साखू के पेड़ों की कटान हुई। इसकी भरपाई के लिए बर्तानिया सरकार ने साखू के नए पौधों के रोपण और उनकी देखरेख के लिए गरीब भूमिहीनों, मजदूरों को जंगल मे बसाया। साखू के जंगल बसाने के लिए वर्मा देश की “टांगिया विधि” का इस्तेमाल किया गया। इसलिए वन में रहकर यह कार्य करने वाले वनटांगिया कहलाए। वर्ष 1918 में बसी इन बस्तियों के लोगों के नारकीय जीवन को योगी आदित्यनाथ ने सुधारा।

Diwali special :

गोरखपुर जिले के कुसम्ही जंगल के पांच इलाकों में जंगल तिकोनिया नम्बर तीन, रजही खाले टोला, रजही नर्सरी, आमबाग नर्सरी व चिलबिलवा में इनकी पांच बस्तियां वर्ष 1918 में बसीं। इसी के आसपास महराजगंज के जंगलों में अलग-अलग स्थानों पर इनके 18 गांव बसे। 1947 में देश भले आजाद हुआ लेकिन वनटांगियों का जीवन गुलामी काल जैसा ही बना रहा। जंगल बसाने वाले इस समुदाय के पास देश की नागरिकता तक नहीं थी। नागरिक के रूप में मिलने वाली सुविधाएं तो दूर की कौड़ी थीं। जंगल में झोपड़ी के अलावा किसी निर्माण की इजाजत नहीं थी। पेड़ के पत्तों को तोड़कर बेचने और मजदूरी के अलावा जीवन-यापन का कोई अन्य साधन भी नहीं। समय-समय पर वन विभाग की तरफ से वनों से बेदखली की कार्रवाई का भय अलग से।

जंगल में बने रहने को बलि चढ़े दो वनटांगिया
साखू के पेड़ों से जंगल संतृप्त हो गया तो वन विभाग ने अस्सी के दशक में वनटांगियों को जंगल से बेदखल करने की कार्रवाई शुरू कर दी। तिकोनिया नम्बर तीन के बुजुर्ग चंद्रजीत बताते हैं कि इसी सिलसिले में वन विभाग की टीम 06 जुलाई 1985 को जंगल तिनकोनिया नम्बर तीन में पहुंची। न कहीं और घर, न जमीन, आखिर वनटांगिया लोग जाते कहां। उन्होंने जंगल से निकलने को मना कर दिया जिस वन विभाग की तरफ से फायरिंग कर दी गई। इस घटना में परदेशी और पांचू नाम के वनटांगियों को जान गंवानी पड़ी जबकि 28 लोग घायल ही गए। इसके बाद भी वन विभाग सख्ती करता रहा। यह सख्ती तब शिथिल हुई जब सांसद बनने के बाद 1998 से योगी आदित्यनाथ ने वनटांगियों की सुध ली।

अहिल्या सरीखे वनटांगियों के लिए राम बने योगी
सांसद रवि किशन शुक्ला के मुताबिक वर्ष 1998 में योगी आदित्यनाथ पहली बार गोरखपुर के सांसद बने। उनके संज्ञान में यह बात आई कि वनटांगिया बस्तियों में नक्सली अपनी गतिविधियों को रफ्तार देने की कोशिश में हैं। नक्सली गतिविधियों पर लगाम के लिए उन्होंने सबसे पहले शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं को इन बस्तियों तक पहुंचाने की ठानी। इस काम में लगाया गया उनके नेतृत्व वाली महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद की संस्थाओं एमपी कृषक इंटर कालेज व एमपीपीजी कालेज जंगल धूसड़ और गोरखनाथ मंदिर की तरफ से संचालित गुरु श्री गोरक्षनाथ अस्पताल की मोबाइल मेडिकल सेवा को। जंगल तिकोनिया नम्बर तीन वनटांगिया गांव में 2003 से शुरू ये प्रयास 2007 तक आते-आते मूर्त रूप लेने लगे। इस गांव के कोटेदार रामगणेश कहते हैं कि वनटांगिया तो अहिल्या थे, महराज जी, यहां राम बनकर उद्धार करने आए।

वनटांगियों के लिए मुकदमा भी झेला
गालीबंद अभियान के संयोजक मनीष चौबे बताते हैं कि वनटांगिया लोगों को शिक्षा के जरिये समाज की मुख्य धारा से जोड़ने के लिए योगी आदित्यनाथ ने मुकदमा तक झेला है। बकौल रामगणेश, 2009 में जंगल तिकोनिया नम्बर तीन में योगी के सहयोगी वनटांगिया बच्चों के लिए एस्बेस्टस शीट डाल एक अस्थायी स्कूल का निर्माण कर रहे थे। वन विभाग ने इस कार्य को अवैध बताकर एफआईआर दर्ज कर दी। योगी ने अपने तर्कों से विभाग को निरुत्तर किया और अस्थायी स्कूल बन सका। हिन्दू विद्यापीठ नाम से यह विद्यालय आज भी योगी के संघर्षों का साक्षी है।

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