मामले की सुनवाई के दौरान जिला जज प्रीतम सिंह की अदालत में नखुआ के नए वकील जगदीश त्रिवेदी ने वकालतनामा रिकॉर्ड कराने के लिए स्थगन की मांग की। हालांकि, राठी के वकील सीनियर एडवोकेट सत्विक वर्मा और एडवोकेट नकुल गांधी ने इसका कड़ा विरोध किया। उन्होंने नखुआ के रवैये को अदालती प्रक्रिया का अपमान बताते हुए मुकदमे को खारिज करने की मांग की। वर्मा ने कहा, “यह मामला लगभग दो साल से चल रहा है। सातवीं गलती हो चुकी है। आज कौन सा वकील बिना वकालतनामा के आया है? अदालत की प्रक्रिया को हल्के में लिया जा रहा है।”
अदालत ने स्थगन देते हुए कहा, “नोटरी को नोटिस जारी किया जा रहा है। वादी को अंतिम मौका दिया जा रहा है, लेकिन 5 हजार रुपये के जुर्माने के अधीन।” अदालत अब ऑर्डर 7 रूल 11 के तहत बहस सुनेगी, जो मुकदमे को खारिज करने से संबंधित है।
मामले का पृष्ठभूमि
यह विवाद जुलाई 2024 में तब शुरू हुआ जब नखुआ ने राठी के खिलाफ 20 लाख रुपये के हर्जाने के साथ मानहानि का मुकदमा दायर किया। नखुआ का आरोप था कि राठी ने 7 जुलाई 2024 को अपलोड किए गए अपने यूट्यूब वीडियो ‘माय रिप्लाई टू गॉदी यूट्यूबर्स | एल्विश यादव | ध्रुव राठी’ में उन्हें “हिंसक और अपमानजनक ट्रोल्स” से जोड़ा, जो बिना आधार के था। इससे उनकी प्रतिष्ठा को ठेस पहुंची और सोशल मीडिया पर उनकी निंदा हुई।
कोर्ट ने जुलाई 2024 में ही राठी को समन जारी किया था। लेकिन उसके बाद नखुआ के हलफनामे में कई दोष पाए गए। सितंबर 2024 में अदालत ने दोषपूर्ण हलफनामे पर नखुआ से जवाब मांगा। फिर संशोधित हलफनामा दाखिल किया गया, लेकिन उसमें भी गड़बड़ी होने पर अगस्त 2025 में नोटरी को समन किया गया। नोटरी ने हड्डी टूटने का हवाला देकर पेश नहीं किया गया था।
पिछली सुनवाई में नखुआ के पुराने वकील मुकेश शर्मा ने 3 नवंबर 2025 को अपना वकालतनामा वापस ले लिया था, जिससे मामले में और देरी हुई। राठी के वकीलों ने वीडियो सबूत के साथ भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 63 के तहत आवेदन न देने का भी हवाला दिया।
प्रतिक्रियाएं
सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स (पूर्व ट्विटर) पर इस फैसले को लेकर प्रतिक्रियाएं तेज हैं। खबर साझा करते हुए लिखा, “ध्रुव राठी के खिलाफ मानहानि मामले में दिल्ली कोर्ट ने बीजेपी के सुरेश नखुआ पर 5k का जुर्माना लगाया।” कई यूजर्स ने इसे राठी के पक्ष में देखा, जबकि कुछ ने नखुआ के प्रयासों की सराहना की।
यह मामला अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और मानहानि के बीच संतुलन का प्रतीक बन चुका है। विशेषज्ञों का मानना है कि बार-बार प्रक्रियागत लापरवाही से मुकदमे की विश्वसनीयता प्रभावित हो रही है। अगली सुनवाई में अदालत मुकदमे को खारिज करने पर फैसला ले सकती है।

