दिल्ली का सीलमपुर: अपराध का जाल, गरीबी का दर्द और इंसानियत की जंग से जूझता

Delhi’s Seelampur News: दिल्ली के उत्तरी-पूर्वी इलाके में बसा सीलमपुर, जो कभी बस एक सामान्य मोहल्ला था, आज अपराध, गरीबी और सामाजिक संघर्ष की अनकही कहानी बन चुका है। यहां की तंग गलियों में हर कदम पर डर का साया मंडराता है, जहां हिंदू-मुस्लिम की दीवारें कंक्रीट की तरह सख्त हो चुकी हैं। यह इलाका न सिर्फ ई-वेस्ट प्रोसेसिंग का केंद्र है, जहां रोजाना 30,000 टन कचरा साफ होता है और करीब 50,000 मजदूर पेट पालते हैं, बल्कि संगठित अपराध का गढ़ भी बन चुका है। हाल की घटनाएं बता रही हैं कि कैसे एक छोटा-सा विवाद जानलेवा हो जाता है, और कैसे गरीबी युवाओं को गैंगवार की ओर धकेल रही है।

सीलमपुर का इतिहास दर्द भरा है। 1992 में बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद यहां सांप्रदायिक हिंसा ने जन्म लिया, जिसमें 23 लोग मारे गए। तब से यह इलाका हिंदू-मुस्लिम तनाव का प्रतीक बन गया। गरीबी, बेरोजगारी और संसाधनों की होड़ ने नफरत को और गहरा कर दिया। यहां की गलियां न सिर्फ आस्था की सीमाएं हैं, बल्कि सामाजिक वर्गों की भी। दलित, मुस्लिम और प्रवासी मजदूर एक-दूसरे से टकराते हैं, और परिणामस्वरूप हिंसा फूट पड़ती है। एक रिपोर्ट के मुताबिक, दिल्ली के 70% गंभीर अपराध उत्तर-पूर्व जिले में ही होते हैं, जहां सीलमपुर जैसे इलाके गरीबी, शराबखोरी और घर से बाहर रहने वाले बच्चों की वजह से अपराध के लिए उपजाऊ भूमि बने हुए हैं।

पिछले कुछ महीनों में सीलमपुर ने एक के बाद एक सनसनीखेज वारदातें देखी हैं। 30 अक्टूबर की रात जाफराबाद की गली नंबर 7 में 22 वर्षीय मिस्बाह नामक शार्प शूटर को अज्ञात बाइक सवारों ने 15 गोलियां मार दीं। मिस्बाह छेनू गैंग से हटकर हाशिम बाबा गैंग में शामिल हो गया था, और उसके खिलाफ हत्या, डकैती जैसे सात मामले दर्ज थे। पुलिस ने शव को जीटीबी अस्पताल भेजा और आरोपी तलाशने के लिए टीमें गठित कीं।

इससे पहले, अप्रैल में 17 वर्षीय कुणाल की चाकू मारकर हत्या कर दी गई। यह बदला लेने का मामला था, जिसमें ‘लेडी डॉन’ जिक्रा को गिरफ्तार किया गया। जिक्रा हाशिम बाबा की पत्नी के लिए बाउंसर थी और सोशल मीडिया पर पिस्टल लहराने के लिए पहले भी जेल चुकी थी। कुणाल की मौत पर स्थानीय लोगों ने सड़कों पर उतरकर प्रदर्शन किया, और राजनीतिक दलों ने कानून-व्यवस्था पर सवाल उठाए।

सितंबर में एक और दिल दहला देने वाली घटना घटी, जब 15 वर्षीय करण को 13 वर्षीय नाबालिग ने चाकू से पेट में गोद दिया। विवाद महज मामूली था, लेकिन नतीजा खूनी। घटना स्थानीय मोटरसाइकिल मैकेनिक दुकान के पास हुई, और करण को जग प्रवेश चंद्र अस्पताल ले जाते समय मौत हो गई।

सीसीटीवी फुटेज में साफ दिखा कि आरोपी ने बिना रुके वार किया, जबकि पुलिस चौकी महज 10 कदम दूर थी। हिंदू संगठनों ने इसका विरोध जताया, और इलाके में तनाव फैल गया। जून में भी एक किशोर को रिश्तेदारों ने चाकू मारकर मार डाला।

ये घटनाएं बता रही हैं कि सीलमपुर कैसे अपराध के जाल में फंस गया। यहां गैंगवार हावी हैं – हाशिम बाबा, काला जथेड़ी जैसे गिरोह 400 से ज्यादा मामलों में फंसे हैं। युवा बॉलीवुड गैंगस्टर फिल्मों से प्रेरित होकर अपराध की दुनिया में कूद पड़ते हैं। सोशल मीडिया पर ‘रील टू रियल’ का चलन बढ़ा है, जहां कानूनी कमजोरियां का फायदा उठाकर नाबालिग अपराधी बन जाते हैं। गरीबी इसका बड़ा कारण है। ई-वेस्ट मजदूरों की कमाई से मुश्किल से गुजारा चलता है, बेरोजगारी युवाओं को शॉर्टकट की ओर ले जाती है। दिल्ली का अपराध दर राष्ट्रीय औसत से चार गुना ज्यादा है, और 82% चोरी के मामले इसी तरह के इलाकों से जुड़े हैं।

लेकिन सीलमपुर सिर्फ अपराध की कहानी नहीं। यहां इंसानियत की जंग भी लड़ी जा रही है। मजदूर परिवारों के बच्चे स्कूल से बाहर रहकर घर संभालते हैं, महिलाएं शोषण का शिकार होती हैं, और सामुदायिक तनाव के बीच भी पड़ोसी एक-दूसरे का साथ देते हैं। दिल्ली पुलिस ने युवाओं के लिए वोकेशनल ट्रेनिंग शुरू की है – ड्राइविंग, कुकिंग सिखाकर उन्हें अपराध से दूर रखने की कोशिश। सरकार MCOCA जैसे कानूनों से संगठित अपराध पर नकेल कस रही है, लेकिन विशेषज्ञ कहते हैं कि गरीबी उन्मूलन ही असली हल है।

सीलमपुर के लोग रोज जूझ रहे हैं – कानून और जुर्म की पतली लकीर पर। क्या यह इलाका कभी शांति की सांस ले पाएगा? सवाल वही है, जवाब समाज और सरकार के हाथ में। यह कहानी अपराध की नहीं, उन आवाजों की है जो चुपचाप संघर्ष कर रही हैं।

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