177 पेज के इस हलफनामे में दिल्ली पुलिस ने 2020 के दंगों को ‘संगठित सत्ता परिवर्तन की साजिश’ करार दिया है। इसमें कहा गया है कि उमर खालिद ने ‘चक्का जाम’ की योजना बनाकर दंगे भड़काने का प्रयास किया, जबकि शरजील इमाम ने उमर खालिद के इशारे पर दिसंबर 2019 में ही विरोध प्रदर्शनों को हिंसक रूप देने की शुरुआत की। हलफनामे के अनुसार, जब जाफराबाद में अपेक्षित हिंसा नहीं हुई, तो खालिद ने जानबूझकर बांग्लादेशी महिलाओं को जाहांगीरपुरी से बुलाकर प्रदर्शन में शामिल कराया। पुलिस ने आरोप लगाया कि आरोपी फर्जी आवेदनों और समन्वित असहयोग से निचली अदालत में आरोप तय करने और ट्रायल शुरू होने से रोक रहे हैं।
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने 27 अक्टूबर को सुनवाई के दौरान दिल्ली पुलिस की आलोचना की थी। जस्टिस अरविंद कुमार और जस्टिस एन.वी. अंजरिया की बेंच ने पुलिस को काउंटर हलफनामा दाखिल करने के लिए दो सप्ताह का समय देने से इंकार कर दिया। बेंच ने तल्खी से कहा, “पांच साल बीत चुके हैं!
आप और समय क्यों मांग रहे हैं?” वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने उमर खालिद की ओर से कहा कि याचिकाकर्ता पांच साल से अधिक समय से जेल में हैं, जबकि ट्रायल में कोई प्रगति नहीं हुई। कोर्ट ने सुनवाई 31 अक्टूबर तक टाल दी थी, जिसके बाद पुलिस ने यह हलफनामा दाखिल किया।
याद रहे, दिल्ली हाईकोर्ट ने 2 सितंबर 2025 को इन आरोपियों की जमानत याचिकाएं खारिज कर दी थीं। हाईकोर्ट ने कहा था कि उमर खालिद और शरजील इमाम की भूमिका ‘गंभीर’ है, जिन्होंने सांप्रदायिक भाषणों से मुस्लिम समुदाय को भड़काया।
यूएपीए के तहत दर्ज एफआईआर 59 में पुलिस का दावा है कि दंगे सहज नहीं थे, बल्कि ‘पूर्व नियोजित साजिश’ का नतीजा थे।
कुछ सह-आरोपी जैसे देवांगना कालिता, नताशा नरवाल और आसिफ इकबाल तन्हा को पहले ही जमानत मिल चुकी है।
उमर खालिद ने हाल ही में दिल्ली कोर्ट में दावा किया था कि उनके खिलाफ कोई ‘भौतिक साक्ष्य’ नहीं है, केवल विलंबित गवाह बयान हैं। उन्होंने कहा कि पुलिस ने उन्हें ‘चुनिंदा तरीके से निशाना’ बनाया, जबकि योगेंद्र यादव जैसे अन्य लोग, जो उसी मीटिंग में थे, पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। पुलिस ने हलफनामे में इन दावों को खारिज करते हुए कहा कि देरी का लाभ उठाने की कोशिश हो रही है।
यह मामला नागरिक स्वतंत्रता समर्थकों के बीच विवादास्पद बना हुआ है। एक ओर पुलिस साजिश के सबूत पेश कर रही है, वहीं मानवाधिकार संगठन लंबी हिरासत को ‘सजा के बिना सजा’ बता रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट की अगली सुनवाई 31 अक्टूबर को होगी, जहां यह तय होगा कि क्या लंबी जेल अवधि के आधार पर जमानत दी जा सकती है।

