सुप्रीम कोर्ट ने आज दिल्ली में लोक सेवको के ट्रांसफर और तैनाती के अधिकार पर ऐतिहासिक फैसला सुनाया। सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ फैसला पढ़कर सुना रहे हैं। सीजेआई ने कहा कि हम सभी जज इस बात से सहमत हैं कि ऐसा आगे कभी ना हो। उन्होंने कहा कि हम जस्टिस भूषण के 2019 के फैसले से सहमत नहीं हैं, जिसमें कहा गया था कि दिल्ली सरकार के पास ज्वाइंट सेक्रेटरी स्तर से ऊपर के अफसरों पर कोई अधिकार नहीं है। भले ही एनसीटीडी पूर्ण राज्य ना हो, लेकिन इसके पास भी ऐसे अधिकार हैं कि वह कानून बना सकता है। केंद्र और राज्य दोनों के पास कानून बनाने का अधिकार है, लेकिन इस बात का ध्यान रखा जाए कि केंद्र का इतना ज्यादा दखल ना हो कि वह राज्य सरकार का काम अपने हाथ में ले ले। इससे संघीय ढांचा प्रभावित होगा।
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अगर किसी अफसर को ऐसा लगता है कि उन पर सरकार नियंत्रण नहीं कर सकती है, तो उनकी जिम्मेदारी घटेगी और कामकाज पर इसका असर पड़ेगा। उप-राज्यपाल को दिल्ली सरकार की सलाह पर ही काम करना होगा। दरअसल, ट्रांसफर और पोस्टिंग के अधिकारों को लेकर दिल्ली सरकार और एलजी के बीच टकराव चल रहा था। दिल्ली सरकार का कहना है कि इस मामले में एलजी उपराज्यपाल हस्तक्षेप ना करें। और इसी बात को लेकर दिल्ली सरकार ने याचिका लगाई थी। सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की संविधान पीठ- सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस एमआर शाह, जस्टिस कृष्ण मुरारी, जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस पीएस नरसिम्हा ने फैसला सुनाया। इससे पहले कोर्ट ने 18 जनवरी को फैसला सुरक्षित रख लिया था। पांच जजों की संवैधानिक बेंच को यह मामला 6 मई 2022 को रेफर किया गया था।
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जनवरी में सुनवाई के दौरान केंद्र ने मामले को बड़ी बेंच के सामने भेजने की मांग की थी। केंद्र की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा- मामला देश की राजधानी का है। इसलिए इसे बड़ी बेंच को भेजा जाए। इतिहास शायद हमें याद न रहे कि हमने देश की राजधानी को पूर्ण अराजकता के हवाले कर दिया था, इसलिए सुप्रीम कोर्ट की ओर से फैसले में देरी को मानदंड नहीं बनाना चाहिए।
सीजेआई ने कहा कि जब सुनवाई पूरी होने वाली है, ऐसी मांग कैसे कर सकते हैं? केंद्र ने इस पर पहले बहस क्यों नहीं की? इसके बाद कोर्ट ने उनकी मांग ठुकरा दी। केंद्र की मांग पर आपत्ति जताते हुए दिल्ली सरकार के वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि यहां ऐसी तस्वीर पेश की जा रही है कि राष्ट्रीय राजधानी को हाईजैक किया जा रहा है। संसद कोई भी कानून बना सकती है, लेकिन यहां अधिकारियों को लेकर नोटिफिकेशन का मामला है। यह मामले में देरी का एक तरीका है, जो केंद्र सरकार अपना रही है। अब दिल्ली सरकार का रास्ता साफ हो गया कि वो ही अपने हिसाब से अफसरों की तैनाती करेगी।