Curbing protests in India?: लोकतंत्र का एक अभिन्न हिस्सा माने जाने वाले विरोध प्रदर्शनों पर केंद्र सरकार ने सख्त रुख अपनाने का संकेत दिया है। स्टडीआईक्यू आईएएस चैनल के एक हालिया वीडियो में दावा किया गया है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) अजीत डोभाल के नेतृत्व में एक गुप्त ‘मास्टरप्लान’ तैयार किया जा रहा है, जिसका उद्देश्य शांतिपूर्ण प्रदर्शनों को तो बरकरार रखना है, लेकिन हिंसक या विदेशी प्रभाव वाले आंदोलनों को कुचलना। यह खुलासा ऐसे समय पर आया है जब देश में बेरोजगारी, असमानता और आर्थिक चुनौतियों के बीच प्रदर्शन तेज हो रहे हैं।
वीडियो में विस्तार से बताया गया कि अमित शाह ने हाल ही में एक उच्च स्तरीय बैठक बुलाई, जिसमें जांच एजेंसियों को निर्देश दिए गए कि वे प्रदर्शनों के पीछे फंडिंग के स्रोतों की गहन जांच करें। शाह ने कथित तौर पर कहा कि शेल कंपनियों, विदेशी देशों या एनजीओ के जरिए आने वाले पैसे का पता लगाया जाए। इसमें प्रवर्तन निदेशालय (ईडी), वित्तीय खुफिया इकाई (एफआईयू) और सेंट्रल बोर्ड ऑफ डायरेक्ट टैक्सेस (सीबीडीटी) जैसी एजेंसियों की भूमिका को महत्वपूर्ण बताया गया। एनएसए अजीत डोभाल की राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति सम्मेलन में भी प्रदर्शन प्रबंधन पर चर्चा हुई, जहां इंटेलिजेंस ब्यूरो (आईबी) ने पूर्व-खुफिया जानकारी जुटाने पर जोर दिया।
ऐतिहासिक सबक और वर्तमान खतरा
वीडियो में 1974 के जेपी आंदोलन का जिक्र करते हुए चेतावनी दी गई कि ऐसे प्रदर्शन राजनीतिक अस्थिरता पैदा कर सकते हैं, जिससे नई पार्टियां उभरती हैं और सरकारें गिर जाती हैं। नेपाल, बांग्लादेश और श्रीलंका के उदाहरण देकर कहा गया कि अनियंत्रित विरोध आंदोलनों से लोकतंत्र का पतन हो सकता है। भारत में सीएए विरोध और किसान आंदोलन जैसे हालिया मामलों को सरकार की सतर्कता का प्रमाण माना गया, जहां विदेशी साजिशों का आरोप लगाया गया। विशेषज्ञों के अनुसार, यह रणनीति आर्थिक विकास और जनसांख्यिकीय लाभ को बचाने के लिए जरूरी है, क्योंकि बेरोजगारी जैसी समस्याएं प्रदर्शनों को भड़का सकती हैं।
संवैधानिक संतुलन का सवाल
वीडियो में संविधान के अनुच्छेद 19 (अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता) का हवाला देते हुए कहा गया कि प्रतिबंध ‘उचित, आवश्यक और आनुपातिक’ होने चाहिए, जैसा पुट्टास्वामी मामले में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया। सरकार का दावा है कि शांतिपूर्ण प्रदर्शन लोकतंत्र की ताकत हैं, लेकिन भीड़ प्रबंधन प्रोटोकॉल और मीडिया रणनीति से जनता का समर्थन राज्य के साथ बना रहेगा। हालांकि, आलोचक इसे अभिव्यक्ति पर अंकुश लगाने की साजिश बता रहे हैं।
सोशल मीडिया पर बहस
एक्स (पूर्व ट्विटर) पर इस मुद्दे पर बहस छिड़ी हुई है। कुछ यूजर्स इसे ‘लोकतंत्र की रक्षा’ बता रहे हैं, तो कुछ ‘दमनकारी नीति’। एक पोस्ट में जंतर-मंतर पर हुए प्रदर्शनों का जिक्र करते हुए कहा गया कि ऐसी घटनाओं पर सुप्रीम कोर्ट का रुख भी सरकार के पक्ष में रहा।
केंद्र सरकार की यह रणनीति देश की राजनीतिक स्थिरता को मजबूत करने का प्रयास लगता है, लेकिन क्या यह लोकतांत्रिक अधिकारों का हनन करेगी? यह सवाल अभी अनुत्तरित है। स्टडीआईक्यू आईएएस जैसे प्लेटफॉर्म्स पर यूएपीएससी उम्मीदवारों के बीच यह चर्चा तेज हो रही है।
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