सरकारी पक्ष: अतिक्रमण हटाओ अभियान
अधिकारियों के अनुसार, यह कार्रवाई बेंगलुरु सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट लिमिटेड (BSWML) की जमीन पर अवैध अतिक्रमण हटाने के लिए की गई थी। यह जमीन (सर्वे नंबर 99, कोगिलु गांव) करीब 5 एकड़ की है, जिसकी बाजार कीमत लगभग 80 करोड़ रुपये बताई जा रही है। यहां कचरा डंपिंग साइट थी और जिसके कारण स्वास्थ्य के लिए खतरा पैदा हो रहा था। भविष्य में यहां बायो-मिथेनेशन प्लांट, जानवरों के अवशेष प्रोसेसिंग यूनिट समेत अन्य सुविधाएं बनाई जानी हैं। बेंगलुरु महानगर पालिका (BBMP), राजस्व विभाग और पुलिस की मौजूदगी में यह कार्रवाई हुई।
कर्नाटक के उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार ने इसकी रक्षा करते हुए कहा कि सरकार ने मानवीय आधार पर काम किया है। अतिक्रमणकारियों को वैकल्पिक जगह पर जाने का मौका दिया गया था। उन्होंने स्पष्ट किया कि यह किसी समुदाय विशेष को निशाना बनाने की कार्रवाई नहीं है, बल्कि भूमाफिया द्वारा स्लम बनाने की कोशिश को रोकने का प्रयास है। योग्य गरीब परिवारों को राजीव गांधी आवास योजना के तहत मकान दिए जाएंगे।
‘बुलडोजर राज’ और अल्पसंख्यक विरोधी नीति
केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन ने इस कार्रवाई की कड़ी निंदा की है। उन्होंने इसे ‘बुलडोजर राज’ करार देते हुए कहा कि कांग्रेस सरकार में भी संघ परिवार की अल्पसंख्यक विरोधी राजनीति लागू हो रही है। सुबह 4 बजे बुलडोजर चलाकर लोगों को बेघर करना संवैधानिक मूल्यों और मानवीय गरिमा का उल्लंघन है। सीपीआई(एम) ने भी इसे अमानवीय बताया और प्रभावितों के लिए राहत की मांग की।
प्रभावित निवासियों का कहना है कि उन्हें पर्याप्त नोटिस नहीं दिया गया, बिजली पहले काट दी गई थी और कार्रवाई के दौरान सामान व दस्तावेज निकालने तक का समय नहीं मिला। कई परिवार 25-30 साल से यहां रह रहे थे और उनके पास आधार कार्ड, वोटर आईडी जैसे वैध दस्तावेज थे। फिलहाल वे पास के सरकारी स्कूल के मैदान में खुले आसमान के नीचे रह रहे हैं। कुछ संगठनों ने भोजन की व्यवस्था की है, लेकिन स्थायी राहत की कोई आधिकारिक घोषणा नहीं हुई है।
राजनीतिक बयानबाजी तेज
आज उपमुख्यमंत्री शिवकुमार ने केरल सीएम के बयान को ‘अनावश्यक हस्तक्षेप’ और ‘केरल चुनावों को देखते हुए स्टंट’ बताया। उन्होंने कहा, “वरिष्ठ नेताओं को बिना तथ्यों के टिप्पणी नहीं करनी चाहिए। हम अपनी शहर की समस्याओं को अच्छे से जानते हैं।”
यह मामला अब राजनीतिक विवाद का रूप ले चुका है, जहां एक तरफ अतिक्रमण हटाने की कानूनी कार्रवाई बताई जा रही है, तो दूसरी तरफ इसे गरीबों और अल्पसंख्यकों पर अत्याचार करार दिया जा रहा है। प्रभावित परिवारों की राहत और पुनर्वास को लेकर मांगें अब जोड़ पकड़ रही हैं।

