चित्रकूट में जगद्गुरु रामभद्राचार्य के बयान पर विवाद, प्रेमानंद महाराज के समर्थन में उतरे ब्रज के संत

Chitrakoot/Uttar Pradesh News: जगद्गुरु रामभद्राचार्य के एक बयान ने धार्मिक और सामाजिक हलकों में नई बहस छेड़ दी है। रामभद्राचार्य ने हाल ही में कहा था कि प्रेमानंद महाराज संस्कृत का एक अक्षर बोलकर दिखाएं, जिसे लेकर ब्रज क्षेत्र के कई संतों ने कड़ा ऐतराज जताया है। संतों का कहना है कि भक्ति का भाषा से कोई लेना-देना नहीं है और रामभद्राचार्य का यह बयान उनके अहंकारी स्वरूप को दिखता है।

इस बयान के बाद रामभद्राचार्य ने चित्रकूट में स्पष्टीकरण देते हुए कहा, “मैंने प्रेमानंद महाराज के प्रति किसी भी तरह की अपमानजनक टिप्पणी नहीं की है। वे मेरे पुत्र समान हैं। मैं सभी से कहता हूं कि उन्हें संस्कृत का अध्ययन करना चाहिए। आज ऐसे लोग भाषण दे रहे हैं जिन्हें संस्कृत का एक अक्षर भी नहीं आता। मैंने अपने शिष्यों से भी कहा है कि प्रत्येक हिंदू को संस्कृत सीखनी चाहिए ताकि भारतीय संस्कृति को संरक्षित किया जा सके।”

रामभद्राचार्य ने आगे कहा, “मैं 18 घंटे प्रतिदिन अध्ययन करता हूं और जीवनभर करता रहूंगा। प्रेमानंद जब भी मुझसे मिलेंगे, मैं उनका गर्मजोशी से स्वागत करूंगा। मैं उनके दीर्घायु होने की कामना करता हूं। मेरा केवल इतना कहना है कि हमें सनातन धर्म की रक्षा के लिए एकजुट होना चाहिए।”

हालांकि, ब्रज क्षेत्र के कुछ संतों और प्रेमानंद महाराज के अनुयायियों ने रामभद्राचार्य के बयान को अनावश्यक और अपमानजनक बताया। एक अनुयायी ने कहा, “प्रेमानंद जी सरल भाषा में सनातन धर्म का प्रचार करते हैं, जिससे युवा पीढ़ी इसे समझ सके। संस्कृत का ज्ञान न होना भक्ति में कमी नहीं दर्शाता।” एक अन्य संत ने कहा, “रामभद्राचार्य जी को अपने अहंकार को त्यागना चाहिए। भक्ति का मूल भाव है, न कि भाषा का प्रदर्शन।”

सोशल मीडिया पर भी इस मुद्दे को लेकर बहस तेज है। कुछ लोग रामभद्राचार्य के संस्कृत सीखने के आह्वान का समर्थन कर रहे हैं, तो कुछ प्रेमानंद महाराज के पक्ष में खड़े हैं, जिन्हें सरल और सहज प्रवचनों के लिए जाना जाता है।

यह विवाद भारतीय संस्कृति और धर्म के प्रचार-प्रसार में भाषा की भूमिका पर एक नई चर्चा को जन्म दे रहा है। जहां एक ओर संस्कृत को भारतीय संस्कृति का आधार माना जाता है, वहीं दूसरी ओर संतों का कहना है कि भक्ति और धर्म का प्रचार किसी भी भाषा में हो सकता है, बशर्ते वह लोगों के दिल तक पहुंचे।
फिलहाल, रामभद्राचार्य और प्रेमानंद महाराज के अनुयायियों के बीच यह मुद्दा चर्चा का विषय बना हुआ है। दोनों पक्षों की ओर से एकजुटता और सनातन धर्म के प्रचार की बात कही जा रही है, लेकिन इस बयान ने संत समाज में एक नई बहस को जन्म दे दिया है।

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