राउज एवेन्यू कोर्ट के विशेष न्यायाधीश धीरज मोर ने 31 अक्टूबर के आदेश में कहा, “अनियमितताएं बिना किसी स्थापित दुष्ट इरादे या बेईमानी के इरादे के आपराधिकता का रूप नहीं ले सकतीं।” यह कोयला आवंटन घोटाले से जुड़ा चौथा हालिया मामला है जिसमें सार्वजनिक सेवकों को राहत मिली है। इससे पहले दिसंबर 2024, जून 2025 और अप्रैल 2025 में तीन अन्य मामलों में उन्हें बरी या डिस्चार्ज किया जा चुका है।
मामले की पृष्ठभूमि
• आवंटन प्रक्रिया: नवंबर 2006 में कोयला मंत्रालय ने 38 कोल ब्लॉकों के लिए आवेदन आमंत्रित किए थे। आरकेएम पावरजेन ने छत्तीसगढ़ के फतेहपुर ईस्ट ब्लॉक के लिए 1,200 मेगावाट थर्मल पावर प्लांट के प्रस्ताव के साथ आवेदन किया।
• सीबीआई का आरोप: अगस्त 2014 में सीबीआई ने एफआईआर दर्ज की। आरोप था कि कंपनी ने अपनी नेटवर्थ को गलत तरीके से पेश किया। पात्रता के लिए न्यूनतम नेटवर्थ 500 करोड़ रुपये थी, लेकिन कंपनी की नेटवर्थ सिर्फ 21.51 करोड़ रुपये बताई गई। सार्वजनिक सेवकों पर दिशानिर्देशों का उल्लंघन कर कंपनी को अनुचित लाभ पहुंचाने का आरोप लगा।
• सार्वजनिक सेवकों पर: सीबीआई ने साजिश या रिश्वतखोरी का आरोप नहीं लगाया, सिर्फ आपराधिक कदाचार का। कोर्ट ने कहा कि आरोपी अधिकारियों को कंपनी की कथित गलत जानकारी की कोई पूर्व जानकारी नहीं थी। अधूरे आवेदनों की प्रोसेसिंग अंडर सेक्रेटरी स्तर पर हुई, न कि गुप्ता या क्रोफा के निर्देश पर। स्क्रीनिंग कमिटी का फैसला सामूहिक था, इसलिए सिर्फ दो अधिकारियों को बलि का बकरा नहीं बनाया जा सकता। भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 13(1)(d) के तहत कोई अपराध साबित नहीं हुआ।
अन्य राहतें
• दिसंबर 2024: दो मामलों में बरी।
• जून 2025: एक मामले में बरी।
• अप्रैल 2025: एक मामले में डिस्चार्ज। अधिकारियों का प्रतिनिधित्व अधिवक्ता राहुल त्यागी और मैथ्यू एम फिलिप ने किया।
यह फैसला कोयला घोटाले के कई मामलों में अधिकारियों के खिलाफ सबूतों की कमी को उजागर करता है। सीबीआई अब अपील पर विचार कर सकती है।

