घटना सुबह करीब 10 बजे शुरू हुई, जब ग्रामीण खदान क्षेत्र में पहुंचे और खनन कार्य को रोकने का प्रयास करने लगे। स्थानीय निवासियों का कहना है कि 2016 में हुई भूमि सर्वेक्षण के बावजूद उचित मुआवजा और भूमि अधिग्रहण प्रक्रिया के बिना विस्तार कार्य आगे बढ़ रहा है। कई ग्रामीणों ने मुआवजे को ठुकरा दिया है, क्योंकि वे अपनी पैतृक भूमि खोने को तैयार नहीं हैं। खदान विस्तार से प्रभावित होने वाले 14 गांवों के निवासी, खासकर महिलाएं, पर्यावरणीय क्षति और आदिवासी अधिकारों का हवाला देकर विरोध जता रहे हैं। अमरा खदान से अनुमानित 655 मिलियन मीट्रिक टन कोयला उत्पादन होने की संभावना है, लेकिन ग्रामीण इसे अपनी आजीविका के लिए खतरा मानते हैं।
सरगुजा के अपर कलेक्टर सुनील कुमार नायक ने घटना पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा, “पारसोड़ी कलां के निवासियों ने SECL अमरा पर इकट्ठा होकर कहा कि वे आगे कोयला खनन की अनुमति नहीं देंगे। हमने उनसे बात की तो पता चला कि 2016 में भूमि सर्वेक्षण पूरा हो चुका था और कुछ ग्रामीणों को मुआवजा मिल चुका है। कई अभी भी मुआवजे से इनकार कर रहे हैं और खनन बाधित कर रहे हैं। यहां पथराव हुआ, जिसमें कई पुलिसकर्मी गंभीर रूप से घायल हो गए।” नायक ने शांति बहाल करने के लिए अतिरिक्त बल तैनात करने की बात कही।
ग्रामीणों का पक्ष रखते हुए एक स्थानीय महिला कार्यकर्ता ने कहा, “हमारी जमीनें हमारी मां हैं। बिना सहमति के खनन से न केवल हमारी फसलें नष्ट होंगी, बल्कि जंगल और नदियां भी प्रदूषित हो जाएंगी। सरकार आत्मनिर्भर भारत की बात करती है, लेकिन हमारी आवाज कब सुनेगी?” प्रदर्शनकारियों ने मांग की है कि खनन कार्य तत्काल रोका जाए और प्रभावित परिवारों को नौकरी व पर्याप्त मुआवजा सुनिश्चित किया जाए।
यह घटना छत्तीसगढ़ के कोयला क्षेत्र में बढ़ते विरोध का हिस्सा है, जहां आदिवासी समुदाय भूमि अधिकार, पर्यावरण क्षति और अपर्याप्त पुनर्वास की शिकायतें करते रहे हैं। कोल मंत्रालय ने हाल ही में 26 नवंबर को 18 निजी एजेंसियों को मान्यता दी है, ताकि खनन अन्वेषण में छह महीने का समय बचाया जा सके और उत्पादन बढ़ाया जा सके। लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसी तेजी से विकास बिना स्थानीय सहमति के सामाजिक तनाव बढ़ा सकता है। फिलहाल, स्थिति नियंत्रण में है, लेकिन ग्रामीणों ने आंदोलन जारी रखने का ऐलान किया है। प्रशासन वार्ता के जरिए समाधान निकालने की कोशिश कर रहा है।

