80 एकड़ में 30 फीट मलबे ने दफन किया बाजार, सड़कें और स्कूल, 11 जवान लापता

Catastrophic devastation in Dharali News: उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में बसे धराली गांव में 5 अगस्त 2025 को आई प्राकृतिक आपदा ने ऐसी तबाही मचाई कि पूरा गांव मलबे के ढेर में तब्दील हो गया। इस भयावह लैंडस्लाइड और फ्लैश फ्लड ने बाजार, सड़कें, स्कूल, घर, और होटल सब कुछ अपने साथ बहा लिया। करीब 80 एकड़ क्षेत्र में 20 से 60 फीट ऊंचा मलबा जमा हो गया, जिसने धराली का भूगोल ही बदल दिया। इस त्रासदी में कम से कम चार लोगों की मौत हो चुकी है, जबकि 50 से 100 लोग अब भी लापता बताए जा रहे हैं।

तीन बार आया मलबे का सैलाब
जानकारी के मुताबिक, यह आपदा एक बार नहीं, बल्कि तीन बार आए मलबे के सैलाब का परिणाम थी। पहली लहर में पास की झील का बांध टूटने से पानी और मलबा तेजी से धराली में घुसा। दूसरी और तीसरी लहर ने स्थिति को और भयावह बना दिया, जिसमें पूरा बाजार, सड़कें, और पुल दलदल में समा गए। स्थानीय लोगों के अनुसार, यह सब कुछ महज 30 से 35 सेकेंड में हुआ। एक प्रत्यक्षदर्शी ने बताया, “हम सीटियां बजा रहे थे, चिल्ला रहे थे कि लोग भाग जाएं, लेकिन मलबे की रफ्तार इतनी तेज थी कि कुछ समझ ही नहीं आया।”

भौगोलिक संवेदनशीलता और ग्लेशियर ब्लास्ट की आशंका
वैज्ञानिकों का कहना है कि यह आपदा केवल बादल फटने का परिणाम नहीं हो सकती। वरिष्ठ ग्लेशियोलॉजिस्ट डॉ. डीपी डोभाल के अनुसार, धराली के पास मौजूद दो हैंगिंग ग्लेशियर्स और संकरी घाटी की भौगोलिक बनावट के कारण ग्लेशियर ब्लॉक या एवलांच की वजह से पानी रुका और फिर एकाएक नीचे गिरा। भारतीय मौसम विभाग (IMD) के रिकॉर्ड में उस दिन 100 मिमी से अधिक बारिश दर्ज नहीं हुई, जिससे यह संदेह और गहरा हो जाता है कि यह ग्लेशियर ब्लास्ट हो सकता है।

रेस्क्यू ऑपरेशन में चुनौतियां
सेना, एनडीआरएफ, एसडीआरएफ, और आईटीबीपी की टीमें राहत और बचाव कार्य में जुटी हैं, लेकिन टूटी सड़कों और लगातार बारिश ने ऑपरेशन को मुश्किल बना दिया है। गंगोत्री हाईवे कई जगहों पर क्षतिग्रस्त हो चुका है, और भटवाड़ी से हर्षिल तक तीन बड़े भूस्खलन हुए हैं। एक 30 मीटर लंबा पुल भी टूट गया, जिससे हाईटेक मशीनें और उपकरण धराली तक नहीं पहुंच पा रहे। बॉर्डर रोड ऑर्गनाइजेशन (BRO) के अनुसार, सड़कों को बहाल करने में कम से कम 3-4 दिन और लग सकते हैं।

हर्षिल के पास सेना का एक कैंप भी इस आपदा की चपेट में आया, जिसमें 11 जवान लापता हैं। अब तक 130 से अधिक लोगों को सुरक्षित निकाला जा चुका है, और 195 नागरिकों को हेलिकॉप्टर के जरिए प्रभावित क्षेत्रों से निकाला गया है। ड्रोन, स्निफर डॉग, और रीको रडार जैसी तकनीकों का इस्तेमाल मलबे में फंसे लोगों को ढूंढने के लिए किया जा रहा है।

सामाजिक और पर्यावरणीय प्रभाव
धराली, जो गंगोत्री धाम से 18 किलोमीटर दूर तीर्थयात्रियों का प्रमुख पड़ाव है, अब खंडहर में तब्दील हो चुका है। पर्यटन, खेती, और सेब के बगीचे, जो इस क्षेत्र की आर्थिक रीढ़ थे, पूरी तरह तबाह हो गए। स्थानीय लोग अपने घरों और परिजनों की तलाश में भटक रहे हैं। मौसम विभाग ने 10 अगस्त तक उत्तराखंड में भारी बारिश का रेड अलर्ट जारी किया है, जिससे स्थिति और जटिल हो सकती है।

सिस्टम की नाकामी पर सवाल
यह त्रासदी न केवल प्राकृतिक आपदा का परिणाम है, बल्कि सिस्टम की खामियों को भी उजागर करती है। विशेषज्ञों का कहना है कि धराली जैसे हाई-रिस्क जोन में निगरानी और अलर्ट सिस्टम की कमी इस तबाही को और घातक बना रही है। ग्लेशियर मूवमेंट की ट्रैकिंग और स्थानीय स्तर पर आपदा प्रबंधन की कमी ने रेस्क्यू ऑपरेशन को जटिल बना दिया।

आगे की राह
धराली की इस त्रासदी ने हिमालयी क्षेत्रों में टिकाऊ विकास और पर्यावरण संरक्षण की जरूरत को एक बार फिर रेखांकित किया है। वनों की कटाई, अव्यवस्थित शहरीकरण, और जलवायु परिवर्तन ने ऐसी आपदाओं की आवृत्ति बढ़ा दी है। विशेषज्ञों का सुझाव है कि डॉपलर रडार, रियल-टाइम रेन गेज, और मजबूत ड्रेनेज सिस्टम जैसे उपायों को अपनाकर भविष्य में ऐसी त्रासदियों को कम किया जा सकता है।

धराली अब केवल एक गांव नहीं, बल्कि प्रकृति और मानव की लापरवाही के बीच की चेतावनी का प्रतीक बन चुका है। सरकार और समाज को मिलकर ऐसी आपदाओं से निपटने के लिए ठोस कदम उठाने होंगे, ताकि भविष्य में ऐसी त्रासदी दोबारा न हो।

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