उमुगांडा की जड़ें बुरुंडी की पारंपरिक संस्कृति में हैं, जहां ‘उमुगांडा’ शब्द का अर्थ ‘सामूहिक योगदान’ होता है। स्वतंत्रता के बाद 1960 के दशक में यह अनौपचारिक रूप से शुरू हुआ था, लेकिन पूर्व राष्ट्रपति पियरे न्कुरुंजिजा के शासनकाल (2005-2020) में इसे औपचारिक और अनिवार्य बना दिया गया। 2007 से हर शनिवार सुबह 8 से दोपहर 11 बजे तक 18 से 65 वर्ष की आयु के सभी सक्षम नागरिकों को इसमें भाग लेना पड़ता है। गर्भवती महिलाओं, बुजुर्गों और बीमारों को छूट मिलती है। दंड के रूप में जुर्माना या जेल की सजा भी हो सकती है, लेकिन अधिकांश लोग इसे स्वेच्छा से अपनाते हैं। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, हर उमुगांडा सत्र में औसतन 80-90% आबादी भाग लेती है, जो बुरुंडी की 1.2 करोड़ जनसंख्या के हिसाब से लाखों लोगों का आंकड़ा बनता है।
इस परंपरा का प्रभाव गहरा रहा है। बुरुंडी, जो लंबे समय से जातीय हिंसा और राजनीतिक अस्थिरता से जूझता रहा है, उमुगांडा के जरिए सामुदायिक एकजुटता को मजबूत कर रहा है।
सड़कों, स्कूलों और स्वास्थ्य केंद्रों की मरम्मत से बुनियादी ढांचा बेहतर हुआ है। पर्यावरण संरक्षण के तहत लाखों पेड़ लगाए गए हैं, जो जलवायु परिवर्तन से निपटने में मददगार साबित हो रहे हैं।
पूर्व राष्ट्रपति न्कुरुंजिजा ने इसे ‘राष्ट्रीय एकता का प्रतीक’ बताया था, और उनके उत्तराधिकारी इवारिस्ट न्दायिशिमिए भी इसे जारी रखे हुए हैं। 2025 में जारी एक सरकारी रिपोर्ट के मुताबिक, उमुगांडा ने देश की स्वच्छता दर को 40% से बढ़ाकर 75% कर दिया है।
हालांकि, यह परंपरा विवादों से भी घिरी रही है। कुछ आलोचकों का मानना है कि यह मजबूरी के रूप में थोपी जाती है, जो व्यक्तिगत स्वतंत्रता का उल्लंघन करती है। मानवाधिकार संगठन ह्यूमन राइट्स वॉच ने 2025 की अपनी रिपोर्ट में उल्लेख किया है कि उमुगांडा के दौरान कभी-कभी राजनीतिक दबाव का इस्तेमाल होता है, खासकर चुनावी वर्षों में। पड़ोसी रवांडा में भी इसी नाम का एक कार्यक्रम है, जो 1974 से अनिवार्य है और वहां सफल मॉडल के रूप में जाना जाता है। बुरुंडी ने रवांडा से प्रेरणा ली है, लेकिन स्थानीय चुनौतियों जैसे आर्थिक संकट (26% मुद्रास्फीति) और शरणार्थी संकट के बीच इसे लागू करना कठिन रहा है।
फिर भी, आम नागरिकों के बीच उमुगांडा की लोकप्रियता बरकरार है। बुरुंडी के युवा कार्यकर्ता डेविड फ्लेयुरी न्दुविमाना ने हाल ही में सोशल मीडिया पर लिखा, “यह न केवल सफाई है, बल्कि सामूहिक जिम्मेदारी का सबक है।” 2025 में, जब देश आर्थिक मंदी और क्षेत्रीय तनाव (जैसे कांगो से शरणार्थियों का प्रवाह) से जूझ रहा है, उमुगांडा एक उम्मीद की किरण बनी हुई है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) की रिपोर्ट के अनुसार, बुरुंडी की अर्थव्यवस्था 2025 में 4.4% बढ़ने की उम्मीद है, जिसमें सामुदायिक प्रयासों की बड़ी भूमिका है।
उमुगांडा साबित करता है कि छोटे-छोटे सामूहिक कदम बड़े बदलाव ला सकते हैं। बुरुंडी सरकार अब इसे डिजिटल प्लेटफॉर्म पर रजिस्ट्रेशन के साथ और मजबूत करने की योजना बना रही है। क्या यह परंपरा देश को और आगे ले जाएगी? समय ही बताएगा, लेकिन फिलहाल यह बुरुंडियाई लोगों की एकता का जीवंत प्रतीक बनी हुई है।

