बॉम्बे हाईकोर्ट ने मराठा आरक्षण के खिलाफ याचिकाओं पर अस्थायी राहत देने से किया इनकार

Bombay High Court/Maratha Reservation News: महाराष्ट्र सरकार के विवादास्पद फैसले पर सुप्रीम कोर्ट का एक और झटका लगा है। बॉम्बे हाईकोर्ट ने मराठा समुदाय को कुणबी जाति प्रमाण-पत्र जारी करने के सरकारी आदेश को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अस्थायी राहत देने से साफ मना कर दिया है। यह फैसला OBC समुदायों के संगठनों द्वारा दायर याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान आया, जो सरकार के इस कदम को असंवैधानिक और राजनीतिक साजिश बता रहे हैं।

महाराष्ट्र सरकार ने अगस्त-सितंबर 2025 में एक सरकारी संकल्प (जीआर) जारी किया था, जिसमें मराठा समुदाय के उन सदस्यों को कुणबी जाति प्रमाण-पत्र देने का प्रावधान किया गया, जो ऐतिहासिक दस्तावेजों से अपनी कुणबी उत्पत्ति साबित कर सकें। कुणबी समुदाय को महाराष्ट्र में OBC श्रेणी में शामिल किया गया है, इसलिए यह प्रमाण-पत्र मराठा समुदाय को शिक्षा और नौकरियों में OBC कोटे का लाभ दिलाने का रास्ता खोल देगा। यह कदम आरक्षण कार्यकर्ता मनोज जरांगे के अनशन के बाद लिया गया था, जिन्होंने 29 अगस्त से मुंबई के आजाद मैदान पर पांच दिनों तक भूख हड़ताल की थी। सरकार ने हैदराबाद गजेटियर के आधार पर एक समिति भी गठित की है, जो इस प्रक्रिया की निगरानी करेगी।

OBC संगठनों ने इस फैसले के खिलाफ बॉम्बे हाईकोर्ट में कई याचिकाएं दायर की हैं। इनमें कुणबी सेना, महाराष्ट्र माली समाज महासंघ, अहीर सुवर्णकार समाज संस्था, सदानंद मंडलिक और महाराष्ट्र नाभिक महामंडल जैसे संगठन शामिल हैं। याचिकाकर्ताओं का आरोप है कि यह जीआर कुणबी, कुणबी मराठा और मराठा कुणबी जैसी तीन जातियों के प्रमाण-पत्र जारी करने के आधार और मानदंडों को बदल देता है। इसे अस्पष्ट, असंवैधानिक और पूर्ण अव्यवस्था पैदा करने वाला बताया गया है। याचिकाओं में कहा गया कि यह मराठा समुदाय को OBC में ‘पीछे के दरवाजे’ से शामिल करने की सर्किटस विधि है, जो पहले विधायी प्रयासों के असफल होने के बाद अपनाई गई है। याचिकाकर्ता सरकार पर OBC कोटे को कमजोर करने और मराठा वोट बैंक को खुश करने का आरोप लगा रहे हैं।

22 सितंबर 2025 को सुनवाई के दौरान, जस्टिस रेवती मोहिते डेरे और जस्टिस संदेश पाटिल की बेंच ने इन याचिकाओं को सुनने से खुद को अलग कर लिया। बेंच ने कोई स्पष्ट कारण नहीं बताया, लेकिन मामला अब चीफ जस्टिस श्री चंद्रशेखर और जस्टिस गौतम अंखड़ की बेंच के समक्ष रखा जाएगा। इससे पहले 18 सितंबर को एक पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन (पीआईएल) को कोर्ट ने खारिज कर दिया था, क्योंकि याचिकाकर्ता को ‘प्रभावित पक्ष’ नहीं माना गया। कोर्ट ने कहा कि जहां प्रभावित व्यक्ति पहले ही कोर्ट पहुंच चुके हैं, वहां पीआईएल दाखिल करना उचित नहीं है, क्योंकि इससे मुकदमों की बहुलता बढ़ती है।

यह विवाद महाराष्ट्र की आरक्षण राजनीति का हिस्सा है, जहां मराठा समुदाय 10-12% आबादी होने के बावजूद सामान्य श्रेणी में आता है और OBC कोटे में शामिल होने की मांग कर रहा है। OBC संगठन चिंतित हैं कि मराठा समुदाय के बड़े पैमाने पर शामिल होने से उनके 19% कोटे का हिस्सा घट जाएगा। अब याचिकाकर्ता चीफ जस्टिस की बेंच से शीघ्र सुनवाई और अस्थायी रोक की मांग करेंगे।

यह मामला महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों से पहले और तनाव पैदा कर सकता है, जहां जातिगत समीकरण अहम भूमिका निभाते हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि सुप्रीम कोर्ट तक यह लड़ाई लंबी खिंच सकती है।

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