गुजरात में बीजेपी की ‘म्यूजिकल चेयर्स’: कैबिनेट फेरबदल से सत्ता की पकड़ मजबूत करने की रणनीति की तैयारी

Gujarat News: गुजरात में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने एक बार फिर अपनी पुरानी रणनीति को अपनाते हुए मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल की सरकार में बड़ा फेरबदल किया है। शुक्रवार को गांधीनगर में हुए शपथ ग्रहण समारोह में 19 नए चेहरों को मंत्री पद की शपथ दिलाई गई, जबकि पुरानी कैबिनेट के 16 मंत्रियों ने इस्तीफा दे दिया। अब कैबिनेट की कुल संख्या 26 हो गई है, जिसमें हर्ष संघवी को उप-मुख्यमंत्री बनाया गया है। इस बदलाव को राजनीतिक विश्लेषकों ने ‘म्यूजिकल चेयर्स’ की संज्ञा दी है, जो बीजेपी की तीन दशकों से चली आ रही सत्ता बनाए रखने की आजमाई हुई रणनीति का हिस्सा है।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: तीन दशकों की सत्ता की कुंजी
गुजरात में बीजेपी का शासन 1995 से लगातार जारी है, लेकिन इसकी जड़ें 1987 के अहमदाबाद नगर निगम चुनाव में हैं, जहां पार्टी ने कांग्रेस को हराकर अपना आधार मजबूत किया। तब से, पार्टी ने सत्ता विरोधी लहर (एंटी-इंकम्बेंसी) से निपटने के लिए नेतृत्व में लगातार बदलाव किए हैं। उदाहरण के तौर पर, 2001 में भुज भूकंप के बाद पूर्व मुख्यमंत्री केशुभाई पटेल को हटाकर नरेंद्र मोदी को कमान सौंपी गई। 2014 में मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद आनंदीबेन पटेल मुख्यमंत्री बनीं, लेकिन 2015 के पाटीदार आंदोलन के दौरान हुई नाराजगी के कारण उन्हें हटाकर विजय रुपाणी को लाया गया। 2021 में कोविड प्रबंधन पर विवाद के चलते रुपाणी और उनकी पूरी कैबिनेट को बदल दिया गया, और भूपेंद्र पटेल को मुख्यमंत्री बनाया गया।

यह रणनीति सिर्फ मुख्यमंत्री स्तर पर ही नहीं, बल्कि मंत्रियों, पार्षदों और संगठनात्मक पदों पर भी लागू होती है। बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने 2022 में कहा था कि गुजरात पार्टी के लिए ‘शासन और संगठन का लैबोरेटरी’ है, और इस मॉडल को पूरे देश में अपनाया जाएगा। अन्य राज्यों जैसे राजस्थान और मध्य प्रदेश में भी हाल के वर्षों में इसी तरह के बदलाव देखे गए हैं, जहां मौजूदा नेताओं को हटाकर नए चेहरों को मौका दिया गया।

हालिया फेरबदल: नए चेहरे और जातीय संतुलन
इस बार के कैबिनेट विस्तार में मुख्यमंत्री पटेल को बरकरार रखा गया, जो एक अपवाद है, लेकिन बाकी कैबिनेट में बड़े बदलाव किए गए। नई टीम में 6 पाटीदार, 8 ओबीसी, 3 अनुसूचित जाति, 4 अनुसूचित जनजाति और 3 महिलाएं शामिल हैं। प्रमुख नामों में क्रिकेटर रवींद्र जडेजा की पत्नी रिवाबा जडेजा, पूर्व कांग्रेस नेता अरुण मोढवाड़िया और पूर्व बीजेपी अध्यक्ष जीतू वाघानी शामिल हैं। क्षेत्रीय संतुलन को ध्यान में रखते हुए सौराष्ट्र-कच्छ से मंत्रियों की संख्या 5 से बढ़ाकर 9 कर दी गई, जबकि दक्षिण गुजरात से 6, उत्तर गुजरात से 4 और मध्य गुजरात से 7 मंत्री शामिल किए गए।

हर्ष संघवी को उप-मुख्यमंत्री बनाकर युवा ऊर्जा को बढ़ावा दिया गया है। पुरानी कैबिनेट के केवल 6 सदस्यों को दोबारा जगह मिली, जबकि बाकी को बाहर का रास्ता दिखाया गया। यह बदलाव 2022 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी की रिकॉर्ड जीत के बाद पहला बड़ा फेरबदल है।

बदलाव के कारण: विरोध की लहर और चुनावी तैयारी
बीजेपी सूत्रों के अनुसार, यह फेरबदल तीन मुख्य कारणों से किया गया: सत्ता विरोधी लहर को रोकना, खराब प्रदर्शन वाले मंत्रियों को हटाना और क्षेत्रीय-जातीय असंतुलन को दूर करना। हाल के महीनों में सौराष्ट्र और उत्तर गुजरात में भ्रष्टाचार के आरोप, जैसे एमजीएनआरईजीए घोटाला (71 करोड़ रुपये का), सड़कों के गड्ढों पर विरोध प्रदर्शन और किसानों की नाराजगी ने पार्टी को चिंतित किया। मई में मंत्री बचुभाई खाबड़ के बेटे की गिरफ्तारी ने विवाद बढ़ाया।

इसके अलावा, आम आदमी पार्टी (आप) की बढ़ती चुनौती भी एक बड़ा कारक है। आप ने हाल ही में विसावदर उपचुनाव जीता और अब 40 निर्वाचन क्षेत्रों में प्रचार कर रही है। जनवरी-फरवरी 2026 में होने वाले 15 नगर निगमों, 81 नगरपालिकाओं, 31 जिला पंचायतों और 231 तालुका पंचायतों के चुनाव तथा 2027 के विधानसभा चुनाव को देखते हुए बीजेपी कोई जोखिम नहीं लेना चाहती। जेएनयू के पूर्व प्रोफेसर घनश्याम शाह ने कहा, “बीजेपी की सबसे बड़ी चुनौती अपनी ही पार्टी के भीतर की नाराजगी है। मजबूत विपक्ष न होने से आंतरिक कलह बढ़ी है, और नए चेहरों से इसे शांत किया जा सकता है।”

शासन पर प्रभाव और भविष्य की संभावनाएं
यह फेरबदल शासन में नई ऊर्जा लाने का प्रयास है। बीजेपी उपाध्यक्ष गोवर्धन झडाफिया ने कहा, “क्षेत्रीय संतुलन और नई ऊर्जा आवश्यक थी, इसलिए सभी जातियों और क्षेत्रों से नए चेहरों को शामिल किया गया।” हालांकि, विपक्षी दल इसे ‘असफलता की स्वीकारोक्ति’ बता रहे हैं। कांग्रेस ने आरोप लगाया कि यह बदलाव सरकार की विफलताओं को छिपाने का तरीका है।

बीजेपी की यह रणनीति गुजरात को ‘लैबोरेटरी’ बनाकर अन्य राज्यों में फैलाई जा रही है, लेकिन आलोचकों का कहना है कि लगातार बदलाव से स्थिरता प्रभावित होती है। आने वाले चुनाव इस रणनीति की असली परीक्षा होंगे, जहां पार्टी को अपनी पकड़ बनाए रखने के लिए जन-नाराजगी को दूर करना होगा।

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