Bihar News: पटना। पटना हाईकोर्ट ने गुरुवार को राज्य सरकार को बड़ा झटका देते हुए आरक्षण कानून में किए गए हालिया संशोधन की संवैधानिक वैधता को खारिज कर दिया है। वहीं सरकार के कानून को चुनौती देने वाली रिट याचिकाओं को स्वीकृति दे दी है। पटना हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में बिहार सरकार के एससी, एसटी, ईबीसी और ओबीसी को सरकारी नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में 65% आरक्षण देने के कानून को रद्द कर दिया है. चीफ जस्टिस के.वी. चंद्रन की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने गौरव कुमार और अन्य की याचिकाओं पर सुनवाई के बाद यह निर्णय सुनाया. याचिकाकर्ताओं ने 9 नवंबर, 2023 को पारित इस कानून को चुनौती दी थी, जिस पर 11 मार्च, 2024 को फैसला सुरक्षित रखा गया था.
Bihar News:
क्या था कानून
याचिका में राज्य सरकार द्वारा 21नवंबर,2023 को पारित कानून को चुनौती दी गई थी, जिसमें एससी, एसटी,ईबीसी व अन्य पिछड़े वर्गों को 65 फीसदी आरक्षण दिया गया है,जबकि सामान्य श्रेणी के अभ्यर्थियों के लिए मात्र 35 फीसदी ही पदों पर सरकारी सेवा में दिया जा सकता है जिसमें ईडब्लूएस के लिए 10 फ़ीसदी आरक्षण भी शामिल है।
हाईकोर्ट का फैसला
इसके अलावा आपको बता दें कि हाईकोर्ट ने गौरव कुमार और अन्य की याचिकाओं पर लंबी सुनवाई के बाद यह फैसला सुनाया. अदालत ने कहा कि राज्य सरकार का 65% आरक्षण का निर्णय संविधान के अनुच्छेद 14 और 15(6)(b) के खिलाफ है. कोर्ट ने यह भी कहा कि सुप्रीम कोर्ट के इंदिरा स्वाहनी मामले में 50% आरक्षण की सीमा निर्धारित की गई है, जिसे बढ़ाकर 65% करना असंवैधानिक है.
संविधान की धारा और सुप्रीम कोर्ट का निर्णय
सुप्रीम कोर्ट ने इंदिरा स्वाहनी मामले में आरक्षण की सीमा पर 50% का प्रतिबंध लगाया था. इस संदर्भ में जातिगत सर्वेक्षण का मामला अभी सुप्रीम कोर्ट में लंबित है, जिसमें राज्य सरकार के इस निर्णय को चुनौती दी गई है. कोर्ट ने यह भी कहा कि अनुपातिक आधार पर आरक्षण देना संविधान के अनुच्छेद 14 और 15(6)(b) का उल्लंघन है.
बहरहाल, पटना हाईकोर्ट के इस फैसले ने एक बार फिर स्पष्ट किया है कि आरक्षण की सीमा को 50% से अधिक नहीं किया जा सकता. यह निर्णय बिहार सरकार के लिए एक बड़ा झटका है, लेकिन यह संविधान और न्यायपालिका के प्रति सम्मान को भी दर्शाता है. राज्य सरकार को अब इस फैसले के बाद नई रणनीति बनानी होगी ताकि सामाजिक न्याय और समता सुनिश्चित हो सके.
Bihar News: