बिहार में हुआ दलित बजट घोटाला, विकास के नाम पर नीतीश सरकार ने किया सामाजिक अन्याय

Bihar News: बिहार में सामाजिक न्याय का नारा लंबे समय से गूंज रहा है, लेकिन दलित और आदिवासी समुदायों के लिए बनाए गए बजट और योजनाओं का दुरुपयोग इस नारे की हकीकत को उजागर कर रहा है। दलित टाइम्स की विशेष रिपोर्ट के अनुसार, अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) के लिए निर्धारित बजट का बड़ा हिस्सा उनके कल्याण के बजाय अन्य योजनाओं में खर्च हो रहा है। यह न केवल वित्तीय अनियमितता है, बल्कि संवैधानिक अधिकारों का हनन और सामाजिक अन्याय का प्रतीक है। आइए, इस मुद्दे की गहराई से पड़ताल करते है।
बजट का दुरुपयोग
रिपोर्ट के अनुसार, दलित उपयोजना के तहत बिहार में पिछले तीन वर्षों में करीब 40,000 करोड़ रुपये का दुरुपयोग हुआ है:
• 2021-22: 16,777 करोड़ रुपये का प्रावधान था, जिसमें से 10,800 करोड़ रुपये सड़कों, पुलों और बिजली कंपनियों जैसी अन्य योजनाओं में खर्च किए गए।
• 2022-23: 19,688 करोड़ रुपये का प्रावधान था, जिसमें से 18,450 करोड़ रुपये गैर-दलित योजनाओं में चले गए।
• 2023-24: 16,939 करोड़ रुपये का प्रावधान था, जिसमें से 11,800 करोड़ रुपये का दुरुपयोग हुआ।
यह राशि दलित समुदायों की शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार और बुनियादी सुविधाओं के लिए थी, लेकिन इसका बड़ा हिस्सा उन तक पहुँचा ही नहीं। यह सवाल उठता है कि जब बिहार की SC आबादी लगभग 19.7% (लगभग 2 करोड़ 60 लाख) है, तब उनके लिए निर्धारित राशि का इतना बड़ा हिस्सा क्यों और कैसे दूसरी योजनाओं में स्थानांतरित हो रहा है?

दलित समुदाय की दयनीय स्थिति
रिपोर्ट बिहार में दलित समुदाय की बदहाल स्थिति को उजागर करती है:
• आवास: 55% दलित परिवारों के पास पक्का मकान नहीं है।
• स्वच्छता: 54% घरों में शौचालय की सुविधा नहीं है।
• आर्थिक स्थिति: 42% दलित परिवार 200 रुपये से कम दैनिक आय पर गुजारा करते हैं।
• भूमिहीनता: 60% से अधिक दलित परिवार भूमिहीन हैं।
• शिक्षा: दलितों की साक्षरता दर 48% से कम है, और उच्च शिक्षा में उनकी भागीदारी 5% से भी कम है।
• रोजगार: अधिकांश दलित अब भी दिहाड़ी मजदूरी पर निर्भर हैं, और सरकारी नौकरियों में उनकी हिस्सेदारी नगण्य है।
इन आंकड़ों से साफ है कि दलित समुदाय सामाजिक और आर्थिक रूप से हाशिए पर है। फिर भी, उनके लिए बनाए गए बजट का दुरुपयोग उनकी प्रगति को और बाधित कर रहा है।

नीतीश सरकार और भाजपा की भूमिका
रिपोर्ट में नीतीश कुमार और उनकी सहयोगी पार्टी भाजपा पर गंभीर सवाल उठाए गए हैं। नीतीश कुमार ने “पढ़ाई और रोजगार” का नारा देकर दलित समुदाय को मुख्यधारा में लाने का वादा किया था। लेकिन हकीकत यह है कि:
• छात्रवृत्ति योजनाएं: दलित छात्रों के लिए छात्रवृत्ति योजनाएं ठप हैं, जिससे उनकी शिक्षा प्रभावित हो रही है।
• जातिगत सर्वे: नीतीश सरकार द्वारा कराए गए जातिगत सर्वे में दलितों की बदहाल स्थिति सामने आई, लेकिन इसके आधार पर कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए।
• बजट का गलत उपयोग: दलित उपयोजना का पैसा सड़कों, बिजली कंपनियों और अन्य परियोजनाओं में खर्च हो रहा है, जो दलित समुदाय की जरूरतों से असंबंधित हैं।

भाजपा, जो नीतीश कुमार की साझेदार रही है, इस मुद्दे पर चुप्पी साधे हुए है। दलित टाइम्स के अनुसार, भाजपा विधायकों ने दलित बजट घोटाले पर निगरानी कानून की मांग नहीं उठाई, और उनके दलित नेता भी इस मुद्दे पर खामोश रहे। यह सवाल उठता है कि क्या भाजपा भी इस अनियमितता में सहभागी है?

आयोगों का दुरुपयोग
रिपोर्ट में यह भी आरोप है कि नीतीश सरकार ने SC आयोग, महिला आयोग और सवर्ण आयोग का पुनर्गठन कर इन्हें राजनीतिक हथियार बनाया है। इन आयोगों में सत्ताधारी दलों के करीबी लोगों को नियुक्त किया गया, जिससे इनकी निष्पक्षता पर सवाल उठ रहे हैं। यह आयोग दलित समुदाय की समस्याओं को उठाने के बजाय सरकार की छवि चमकाने का काम कर रहे हैं।
सामाजिक अन्याय का सबूत
दलित उपयोजना का दुरुपयोग सिर्फ वित्तीय अनियमितता नहीं, बल्कि संवैधानिक अधिकारों की अनदेखी है। संविधान ने अनुसूचित जातियों के लिए विशेष प्रावधान दिए थे ताकि वे सामाजिक और आर्थिक रूप से सशक्त हो सकें। लेकिन बिहार में यह पैसा उनके हक से छिनकर अन्य परियोजनाओं में खर्च हो रहा है। यह सामाजिक अन्याय का स्पष्ट उदाहरण है, जो दलित समुदाय को और पीछे धकेल रहा है।

2025 बजट और भविष्य
हाल के 2025-26 बिहार बजट में शिक्षा, स्वास्थ्य और ग्रामीण विकास पर जोर दिया गया है। वित्त मंत्री सम्राट चौधरी ने 3.17 लाख करोड़ रुपये का बजट पेश किया, जिसमें शिक्षा के लिए 60,964 करोड़ रुपये और स्वास्थ्य के लिए 20,000 करोड़ रुपये का प्रावधान है।। लेकिन दलित उपयोजना के लिए विशेष प्रावधानों का जिक्र स्पष्ट नहीं है। यह देखना होगा कि क्या इस बार दलित समुदाय के लिए आवंटित राशि वास्तव में उनके कल्याण पर खर्च होगी, या फिर पहले की तरह अन्य योजनाओं में डायवर्ट हो जाएगी।

जनता से हिसाब की मांग
बिहार का दलित बजट घोटाला केवल आर्थिक अनियमितता नहीं, बल्कि सामाजिक न्याय के वादों का मजाक है। नीतीश कुमार और भाजपा की गठबंधन सरकार ने दलित समुदाय के लिए आवंटित 40,000 करोड़ रुपये को गलत योजनाओं में खर्च कर उनके संवैधानिक अधिकारों का हनन किया है। यह एक ऐसा मुद्दा है जो बिहार की जनता को 2025 के विधानसभा चुनाव में गंभीरता से सोचने पर मजबूर करता है।
सवाल यह है कि क्या जनता नीतीश कुमार और भाजपा से इस धोखाधड़ी का हिसाब मांगेगी? दलित समुदाय को उनका हक दिलाने के लिए न केवल सख्त निगरानी कानून की जरूरत है, बल्कि सरकार की जवाबदेही भी सुनिश्चित करनी होगी। यह समय है कि बिहार की जनता अपने वोट की ताकत से सामाजिक न्याय की लड़ाई को मजबूत करे।

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