बिहार चुनाव 1952: स्वतंत्र भारत के पहले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की धमाकेदार जीत, श्रीकृष्ण सिंह बने पहले मुख्यमंत्री

Bihar Elections 1952 News: स्वतंत्र भारत के इतिहास में बिहार विधानसभा के पहले चुनाव ने एक नया अध्याय लिखा गया। 26 मार्च 1952 को हुए इस चुनाव में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (INC) ने जबरदस्त प्रदर्शन करते हुए बहुमत हासिल किया और राज्य की सत्ता पर कब्जा जमाया। कांग्रेस के दिग्गज नेता श्रीकृष्ण सिंह को बिहार का पहला निर्वाचित मुख्यमंत्री चुना गया, जबकि डॉ. अनुग्रह नारायण सिंह उप-मुख्यमंत्री बने। यह चुनाव आजादी के उत्साह और चुनौतियों से भरा हुआ था, जहां मतदाताओं ने कांग्रेस को अपना भरोसा सौंपा।

चुनाव का पृष्ठभूमि और संदर्भ
आजादी के बाद भारत में पहली बार लोकसभा और विधानसभा चुनाव 1951-52 में आयोजित किए गए। बिहार में यह चुनाव आजादी की चमक के बीच हुआ, लेकिन राज्य की 13.4% साक्षरता दर और बड़े पैमाने पर अशिक्षा ने इसे चुनौतीपूर्ण बना दिया। जमींदारी प्रथा का उन्मूलन चुनाव का सबसे बड़ा मुद्दा था, जिसने किसानों और पिछड़े वर्गों को प्रभावित किया। कांग्रेस के भीतर भी इस पर विवाद था, जहां भुमिहार, राजपूत और कायस्थ लॉबी के बीच टकराव हुआ। पार्टी के दिग्गज श्रीकृष्ण सिंह (बिहार केसरी), अनुग्रह नारायण सिंह (बिहार विभूति) और राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद के बीच मतभेद उभरे, लेकिन मौलाना अबुल कलाम आजाद की मध्यस्थता से इसे सुलझाया गया।

उस समय जाति चुनावी हथियार नहीं थी; ‘पिछड़ा’ शब्द सभी जातियों के गरीबों के लिए इस्तेमाल होता था। मुख्य विपक्ष सोशलिस्ट पार्टी (SP) थी, जिसके नेता जयप्रकाश नारायण और राम मनोहर लोहिया ने किसानों के हक की बात की और दलितों-ओबीसी का समर्थन जुटाया। मुस्लिम समुदाय ने कांग्रेस को 100% समर्थन दिया, क्योंकि विभाजन की यादें अभी ताजा थीं।

चुनाव की प्रक्रिया और मतदान
बिहार में कुल 330 सीटें थीं, जो 276 निर्वाचन क्षेत्रों में बंटी हुई थीं। इनमें से 50 दो-सीट वाले क्षेत्र थे। कुल पंजीकृत मतदाता 2 करोड़ 41 लाख से ज्यादा थे, लेकिन मतदान प्रतिशत मात्र 39.51% रहा। चुनाव आयोग ने कम साक्षरता को देखते हुए रंगीन बैलट बॉक्स और पार्टी सिंबल का इस्तेमाल किया।

महिलाओं को मतदान के लिए पर्दे वाली बैल गाड़ियों में ले जाया गया, और वे गीत गाते हुए बूथ पहुंचीं। कोई बूथ कैप्चरिंग या हिंसा नहीं हुई। प्रचार में साइकिल पर घूमकर नेता वोट मांगते थे, और कांग्रेस के बैलों की जोड़ी वाले सिंबल पर नारे गढ़े गए।

परिणाम: कांग्रेस का जलवा
कांग्रेस ने कुल 330 में से 239 सीटें जीतीं, जो 72.42% थीं। पार्टी को 41.38% वोट मिले, यानी कुल 39 लाख 51 हजार से ज्यादा। दूसरे स्थान पर झारखंड पार्टी (JKP) रही, जिसने 32 सीटें जीतीं। सोशलिस्ट पार्टी को 23, छोटा नागपुर संथाल परगना जनता पार्टी (CNSPJP) को 11, लोक सेवक संघ (LSS) को 7, निर्दलीयों को 14 और अन्य को 4 सीटें मिलीं।

श्रीकृष्ण सिंह ने खरगपुर सीट से जीत हासिल की, जबकि अनुग्रह नारायण सिंह नवीनगर से चुने गए। श्रीकृष्ण सिंह 1946 से ही मुख्यमंत्री थे, लेकिन यह पहला निर्वाचित पद था। उन्होंने कैबिनेट चयन की जिम्मेदारी अनुग्रह सिंह को सौंपी, जो दोनों के बीच सम्मान को दर्शाता है।

चुनाव की विरासत
यह चुनाव उत्सव जैसा था, जहां लोग कांग्रेस के प्रति समर्पित थे। नेहरू की लोकप्रियता और आजादी की खुशी ने कांग्रेस को मजबूत बनाया। हालांकि, बाद के वर्षों में जाति और हिंसा चुनावों का हिस्सा बने। 1952 का चुनाव बिहार की राजनीतिक नींव रखता है, जहां कांग्रेस का दबदबा लंबे समय तक कायम रहा। आज भी यह इतिहास हमें लोकतंत्र की शुरुआती चुनौतियों की याद दिलाता है।

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