लोकसभा चुनाव की बड़ी खबरः ऐसा क्या हुआ जो अखिलेश से दूर हो रहे उनके सहयोगी दल, जानें

लोकसभा चुनाव को लेकर उत्तर प्रदेश से बड़ी खबर आई है। यूपी में लगातार समाजवादी पार्टी से उसके सहयोगी दल दूरी बनाते जा रहे हैं। यहां दो थ्योरी पर सोचा जा सकता है। एक तो यह है कि अखिलेश अपने सहयोगी दलों को संतुष्ट करने में कामयाब नहीं हो पा रहे हैं। उनको भविष्य नही दिखा पा रहे है। सहयोगियों को न मना पाने का क्या कारण है। खुद अखिलेश सपा को कैसे मजबूत बनाएं ये सवाल उनके सामने खड़ा हो रहा है। यदि किसी दल को अहमियत देते है तो कोई उनसे आगे न निकल जाए। दूसरा कारण यह भी है कि भाजपा सहयोगी दलों के नेताओं को लालच और सत्ता का सुख दिखा कर अपनी और आर्किषत कर रही है। वैसे तो कई ओर भी वजह हो सकती है। एक वजह यह भी हो सकती है कि यह दल अपनी जमीन ना खोजें इसलिए सत्ता में रहना भी जरूरी है और सबसे बड़ी वजह यह है जो दल बात नहीं मानेगा उसे पर केंद्र की कोई भी एजेन्सी कभी भी हाथ डाल सकती है। खैर अब पीएम मोदी के साथ जंयत चैधरी, ओपी राजभर जैसे नेता भी दिखाई देंगे।

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अब बताते हैं सिलसिलेवार तरीके से

उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव के दौरान समाजवादी पार्टी ने कई छोटे-छोटे दलों को अपने साथ मिलाया। जिससे कि पार्टी नुकसान में जानें की बजाय फायदे में आ जाए। कुछ हद तक सपा को इसका फायदा भी मिला लेकिन पिछले 8 महीना में सपा को चार सहयोगी दलों ने छोड़ दिया है। सबसे पहले सुभासपा के ओपी राजभर ने इसकी शुरुआत की 15 जुलाई 2023 को उन्होंने सपा का साथ छोड़ दिया। इसके बाद उन्हें योगी सरकार में कैबिनेट मंत्री बना दिया गया है। वही राष्ट्रीय लोकदल के अध्यक्ष जयंत चैधरी ने 7 फरवरी 2024 ने सपा को अलविदा कह दिया। अपना दल कमेरावादी की नेता पल्लवी पटेल ने भी बाय-बाय किया। बताया गया कि अपना दल कमेरावादी के सिंबल पर चुनाव लड़ने पर उनकी सहमति नहीं बनी। खैर इसके बाद जनवादी सोशलिस्ट पार्टी के संजय चैहान ने 22 मार्च 2024को सपा छोड़ दी। अब आमजन में चर्चा जोरो पर है कि कही अखिलेश अंहकार के चलते सहयोगियो को दुत्कार रहे है तो सहयोगी भी अपना भविष्य देखकर अपने आप को मजबूत करने का कोई मौका गवाना नही चाहते। देखना है कि लोकसभा चुनावों में इन दलों को सपा का साथ छोड़ने से लाभ होगा या फिर वोटर सपा पर भरोसा करते हुए ऐसे नेताओं को राजनीति से बाहर का रास्ता दिखाएंगी।

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