छठ पूजा का यह महापर्व 25 अक्टूबर से शुरू हो चुका है, जिसमें नहाय-खाय (25 अक्टूबर), खरना (26 अक्टूबर), संध्या अर्घ्य (27 अक्टूबर) और उषा अर्घ्य (28 अक्टूबर) के चार दिन शामिल हैं। अक्षरा सिंह, जो भोजपुरी इंडस्ट्री की ‘क्वीन’ के नाम से मशहूर हैं, ने इस बार भी परिवार के साथ पटना में पूजा-अर्चना की। सोशल मीडिया पर उन्होंने अपनी तैयारी की झलकियां साझा कीं, जिसमें गेहूं धोना, ठेकुआ बनाना और महावर लगाना जैसे पारंपरिक रीति-रिवाज नजर आ रहे हैं।
अविवाहित होते हुए व्रत पर उठे सवाल, अक्षरा ने तोड़ी चुप्पी
परंपरागत रूप से छठ व्रत को सुहागिन महिलाओं का व्रत माना जाता है, जो परिवार की सुख-समृद्धि और संतान प्राप्ति के लिए रखा जाता है। लेकिन अक्षरा सिंह दो साल से इस व्रत को निभा रही हैं, जिस पर कई सवाल उठे। ट्रोल्स ने सोशल मीडिया पर उन्हें निशाना बनाया, तो उन्होंने मुंहतोड़ जवाब दिया। एक मीडिया इंटरव्यू में अक्षरा ने कहा, “मुझे नहीं पता कि यह व्रत रखने की भावना मुझमें कहां से आई। शायद छठी मैया ने खुद मुझे इस पर्व को मनाने के लिए बुलाया हो। यह व्रत केवल शादीशुदा महिलाओं के लिए ही नहीं है। मैं इसे साबित करना चाहती हूं कि हर कोई भक्ति से इसे निभा सकता है।”
अक्षरा ने आगे कहा, “मैंने हमेशा छठ मैया के बारे में सुना और देखा है, लेकिन इस साल पहली बार खुद व्रत रख रही हूं। ये तीन दिन बीतते हुए जैसे उड़ गए। थकान तो नहीं लगी, बल्कि मन में शांति है। छठ पूजा हर बिहारी के दिल और आत्मा में बसी है। हम बचपन से इसके गीत गाते-गुनगुनाते बड़े हुए हैं।” वे पटना के घाट पर परिवार और दोस्तों के साथ पहुंचीं, जहां उन्होंने संध्या अर्घ्य की तैयारी की। उन्होंने कहा, “मैं पूरे भारत के लिए प्रार्थना करती हूं। सबकी खुशहाली हो। व्यवस्था बहुत अच्छी है।”
छठ पर सवालों के बीच नई सोच को बढ़ावा
अक्षरा ने परंपराओं पर भी सवाल उठाए। उन्होंने सोशल मीडिया पर पूछा, “घाट पर ‘दौरा’ (प्रसाद का बांस का डंडा) केवल पुरुष क्यों ले जाते हैं? महिलाएं हर रस्म निभाती हैं, तीन दिन का कठिन व्रत रखती हैं, फिर दौरा क्यों नहीं ले जा सकतीं?” यह बयान समाज में नई सोच जगाने वाला है। फैंस ने उनकी हिम्मत की तारीफ की, जबकि ट्रोल्स को जवाब देते हुए उन्होंने कहा, “यह कहां लिखा है कि अविवाहित लड़कियां छठ व्रत नहीं रख सकतीं?”
अक्षरा ने छठ को बिहारियों का ‘बड़ा भाव’ बताया। उन्होंने कहा, “यह पर्व हमें सिखाता है कि सबको बराबर समझें, एक-दूसरे को समझें और साथ मिलकर आगे बढ़ें। साल भर हमें एकजुट रहना चाहिए, नफरत या धोखा न दें।” बिहार चुनावों पर बोलते हुए उन्होंने अपील की, “लोग अच्छे नेताओं का चुनाव करें और अपने इलाकों का विकास करें।”
छठ गीतों से सजी अक्षरा की दुनिया
भोजपुरी स्टार होने के नाते अक्षरा छठ गीतों की भी शौकीन हैं। उनके गाए ‘कांच ही बनस के बहंगिया बहंगी लचकत जाये’ जैसे गीत इस बार फिर ट्रेंड कर रहे हैं। उन्होंने एक फिल्म का ऑफर ठुकराकर परिवार के साथ छठ मनाने का फैसला किया, जो उनकी भक्ति को उजागर किया है।
छठ महापर्व पर्यावरण, शुद्धता और समानता का संदेश देता है। अक्षरा सिंह जैसे सितारे इसे नई पीढ़ी तक पहुंचा रहे हैं। जय छठी मैया! सूर्य देव की कृपा सब पर बनी रहे।

