Bhima Koregaon violence news-एल्गार परिषद मामले में पूर्व डीयू प्रोफेसर हनी बाबू को जमानत, सालों से अधिक जेल में रहने के बाद राहत

Bhima Koregaon violence news: बॉम्बे हाईकोर्ट ने भीमा कोरेगांव हिंसा और एल्गार परिषद मामले में आरोपी पूर्व दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) के एसोसिएट प्रोफेसर हनी बाबू को जमानत दे दी है। जुलाई 2020 में गिरफ्तार हुए बाबू को 1,955 दिनों (लगभग पांच साल चार महीने) की लंबी हिरासत के बाद यह राहत मिली है, जबकि मुकदमे की सुनवाई अभी तक शुरू नहीं हुई है।

हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच, जिसमें जस्टिस ए.एस. गडकरी और जस्टिस रणजितसिंह राजा भोंसले शामिल थे, ने गुरुवार को यह फैसला सुनाया। अदालत ने राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) की जमानत पर रोक लगाने की गुजारिश को खारिज करते हुए कहा कि लंबी हिरासत के बिना मुकदमे के आधार पर जमानत पर विचार किया जाना चाहिए। विस्तृत आदेश बाद में जारी किया जाएगा।

हनी बाबू की ओर से पेश वकील युग मोहित चौधरी ने जमानत याचिका में मुकदमे में देरी और लंबी हिरासत को मुख्य आधार बनाया। उन्होंने बताया कि स्पेशल एनआईए कोर्ट में बाबू का डिस्चार्ज आवेदन लंबित है और एनआईए ने इसका जवाब देने में देरी की है। इसके अलावा, मामले के आठ अन्य आरोपी पहले ही सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट से जमानत प्राप्त कर चुके हैं, जो परिस्थितियों में बदलाव का संकेत देता है।

एनआईए की ओर से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल अनिल सिंह ने विरोध जताया। उन्होंने तर्क दिया कि बाबू पर गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के तहत आतंकी साजिश रचने और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर हमले की योजना बनाने जैसे गंभीर आरोप हैं। एजेंसी का दावा है कि बाबू कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (माओइस्ट) के सदस्य थे और रेवोल्यूशनरी डेमोक्रेटिक फ्रंट (आरडीएफ) से जुड़े हुए थे। उनके पास से बरामद ‘सीक्रेसी हैंडबुक’ में गिरफ्तारी के बाद कानूनी सहायता, प्रचार और विरोध प्रदर्शन करने के निर्देश मिले, जो सहयोगी प्रोफेसर जी.एन. साइबाबा की मदद के लिए इस्तेमाल होते थे। सिंह ने यह भी कहा कि बाबू की हिरासत अन्य सह-आरोपियों जैसे रोना विल्सन और सुधीर धावले की तुलना में कम है।

मामले का पृष्ठभूमि
एल्गार परिषद-भीमा कोरेगांव मामला 2017 के एल्गार परिषद कार्यक्रम से जुड़ा है, जिसे पुणे के शनिवारवाड़ा में आयोजित किया गया था। अभियोजन पक्ष का दावा है कि इस कार्यक्रम ने 1 जनवरी 2018 को भीमा कोरेगांव में दलितों और ऊपरी जातियों के बीच हिंसा भड़काई, जिसमें एक व्यक्ति की मौत हुई और कई घायल हुए। एनआईए ने इसे माओवादी साजिश करार दिया और कई बुद्धिजीवियों, कार्यकर्ताओं, वकीलों और पत्रकारों को गिरफ्तार किया, जिनमें हनी बाबू भी शामिल हैं। बाबू पर माओवादी विचारधारा का प्रचार करने और नक्सल गतिविधियों में सहयोग का आरोप है।

हनी बाबू, 59 वर्षीय, दिल्ली विश्वविद्यालय के अंग्रेजी विभाग के पूर्व प्रोफेसर हैं। वे जातिवाद विरोधी कार्यकर्ता के रूप में जाने जाते हैं और अल्पसंख्यक समुदायों, खासकर धार्मिक रूप से हाशिए पर धकेले गए लोगों के मानवाधिकारों के लिए सक्रिय रहे हैं। उनकी गिरफ्तारी को कई संगठनों ने ‘राजनीतिक प्रतिशोध’ करार दिया है। जुलाई 2025 में उन्हें पांच साल पूरे होने पर सम्मानित भी किया गया था।

जमानत की शर्तें और आगे की राह
अदालत ने बाबू को एक लाख रुपये के व्यक्तिगत बॉन्ड और जमानतदारों के साथ रिहा करने का आदेश दिया है। हालांकि, विस्तृत शर्तें बाद में स्पष्ट होंगी। इससे पहले, मामले में रोना विल्सन, सुधा भारद्वाज, पी. वरावरा राव, शोमा सेन, वर्नन गोंजाल्वेस और अरुण फरेरा जैसे सह-आरोपियों को जमानत मिल चुकी है।

यह फैसला यूएपीए के तहत लंबी हिरासत पर सवाल उठा रहा है, जहां आरोपी बिना मुकदमे के वर्षों जेल में सड़ते रहते हैं। कार्यकर्ताओं और बुद्धिजीवियों ने सोशल मीडिया पर इसकी सराहना की है, इसे न्याय की जीत बताया। हनी बाबू की पत्नी और साथी प्रोफेसर जेनी रोविना ने इसे बड़ी राहत कहा।
मामले की सुनवाई स्पेशल एनआईए कोर्ट में लंबित है, और अदालत ने पहले ही आरोप तय करने और मुकदमे को तेज करने के निर्देश दिए हैं।

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