घटना मेरठ के जागृति विहार एक्सटेंशन स्थित मेपल्स हाइट कॉलोनी की है। बच्चे के पिता, फाइनेंसर सरदार जसपिंदर सिंह ने बताया कि 19 नवंबर की शाम को उनका बेटा घर में खेलते हुए टेबल के कोने से टकरा गया। चोट इतनी गहरी थी कि आंख के ऊपर की त्वचा फट गई। घबराए परिजन तुरंत बच्चे को पास के भाग्यश्री अस्पताल ले गए। वहां डॉक्टर की अनुपस्थिति में स्टाफ ने कथित तौर पर परिजनों से ही 5 नंबर वाली फेवीक्विक मंगवाई और घाव को चिपकाकर पट्टी बांध दी। डॉक्टर ने दावा किया कि यह ‘तात्कालिक उपाय’ है और दर्द कम हो जाएगा।
लेकिन रातभर बच्चे का दर्द शांत नहीं हुआ। वह कराहता रहा और नींद नहीं आई। सुबह होते ही परिजन दूसरे निजी अस्पताल पहुंचे, जहां डॉक्टरों की टीम ने घाव खोलकर देखा तो हैरान रह गई। फेवीक्विक इतना मजबूती से चिपक चुका था कि उसे हटाने में पूरे 3 घंटे की मशक्कत करनी पड़ी। अंततः घाव को साफ कर 4 टांके लगाए गए। बच्चे के पिता ने आरोप लगाया, “यह लापरवाही नहीं, अपराध है। अस्पताल ने इलाज के नाम पर खिलवाड़ किया। अगर समय पर कार्रवाई न हुई तो हम कोर्ट का रुख करेंगे।”
परिजनों ने घटना के तुरंत बाद मेरठ के मुख्य चिकित्सा अधिकारी (सीएमओ) डॉ. अशोक कटारिया से शिकायत दर्ज कराई। सीएमओ ने मामले की गंभीरता को देखते हुए जांच समिति गठित करने के आदेश दिए। लेकिन आज 3 दिन बाद भी न तो अस्पताल प्रबंधन पर कोई एक्शन लिया गया और न ही आरोपी स्टाफ के खिलाफ कोई कदम उठाया गया। सोशल मीडिया पर यह मामला वायरल हो चुका है, जहां लोग स्वास्थ्य विभाग पर ‘खानापूर्ति’ का आरोप लगा रहे हैं। एक यूजर ने लिखा, “मेरठ स्वास्थ्य विभाग सो रहा है? बच्चे की जिंदगी दांव पर लगी है!” पूर्व में भी भाग्यश्री अस्पताल पर लापरवाही के गंभीर आरोप लग चुके हैं, जिससे सवाल उठ रहा है कि क्या लाइसेंस रद्द करने जैसी सख्ती कभी होगी?
चिकित्सा विशेषज्ञों का कहना है कि फेवीक्विक जैसे गोंद का इस्तेमाल कभी घाव भरने के लिए नहीं किया जाता। यह त्वचा को नुकसान पहुंचा सकता है और संक्रमण का खतरा बढ़ा देता है। मेरठ जिला प्रशासन और पुलिस ने अभी तक कोई बयान नहीं दिया है, लेकिन परिजनों ने डीएम और सीएम कार्यालय को भी पत्र लिखा है। यह घटना निजी अस्पतालों में बढ़ती लापरवाही को उजागर करती है, जहां मरीजों की जान जोखिम में डाल दी जाती है। स्वास्थ्य विभाग को अब तुरंत कार्रवाई करनी होगी, वरना ऐसी घटनाएं आम हो जाएंगी।

