Berlin News: यूरोपीय संघ (ईयू) और चीन के बीच व्यापारिक रिश्तों में तनाव बढ़ता हुआ नजर आ रहा है, जिसका मुख्य कारण है 400 अरब यूरो का विशाल व्यापार घाटा, जो ईयू को चीन के साथ व्यापार में झेलना पड़ रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि चीन की अनुचित व्यापार नीतियां इस घाटे की प्रमुख वजह हैं, और अब सवाल उठ रहा है कि क्या ईयू को इस असंतुलन को कम करने के लिए और सख्त कदम उठाने चाहिए।
चीन की औद्योगिक नीतियों के तहत वहां के घरेलू उत्पादकों को प्राथमिकता दी जाती रही है। उन्हें सरकारी सब्सिडी, सरकारी ठेके और अनुकूल नियमों का लाभ मिलता है, जिसके कारण ईयू के उत्पादकों को चीनी बाजार में प्रवेश करने में कई तरह की बाधाओं का सामना करना पड़ता है। इस असमान व्यापारिक माहौल ने ईयू को नाराज कर दिया है, और वह इस स्थिति को सुधारने के लिए दबाव बनाने की कोशिश कर रहा है।
जुलाई 2025 में बर्लिन में चीनी विदेश मंत्री वांग यी ने अपनी बात रखते हुए कहा कि ईयू को अपनी सोच बदलनी चाहिए। चीन सरकार ने इन आलोचनाओं को खारिज करते हुए दावा किया है कि उनकी नीतियां वैश्विक व्यापार नियमों के अनुरूप हैं। दूसरी ओर, ईयू के व्यापार आयुक्त मारोस सेफकोविक ने जून में बातचीत के जरिए रेयर अर्थ खनिजों के निर्यात पर लगी कुछ पाबंदियों को हटवाने में सफलता हासिल की थी। फिर भी, व्यापार घाटे का यह मुद्दा अभी भी अनसुलझा है।
विशेषज्ञों का कहना है कि अगले सप्ताह होने वाला ईयू-चीन शिखर सम्मेलन इस तनाव को कम करने का एक अवसर हो सकता है। कुछ विश्लेषकों का मानना है कि अमेरिका के साथ व्यापार युद्ध के बाद चीन को अब यूरोप के साथ सहयोग की जरूरत है, जिसका फायदा उठाकर ईयू दबाव बना सकता है। हालांकि, कुछ अन्य विशेषज्ञ, जैसे कि विश्लेषक बचुल्स्का, इस बात से सहमत नहीं हैं। उनका कहना है कि चीन को लगता है कि समय उनके पक्ष में है, और वह बातचीत में सख्त रुख अपनाएगा।
ईयू के सामने अब यह सवाल है कि क्या उसे चीनी इलेक्ट्रिक वाहनों पर टैरिफ जैसे कदमों को और सख्त करना चाहिए, जैसा कि हाल ही में जर्मनी के विरोध के बावजूद पारित हुआ था। जर्मनी, जो अपनी ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री के लिए चीन पर निर्भर है, इस तरह के कदमों से बचना चाहता है। लेकिन कई अन्य सदस्य देशों का मानना है कि चीन की सब्सिडी वाली नीतियों का जवाब देने के लिए कठोर नीतियां जरूरी हैं।
क्या ईयू इस व्यापार घाटे को कम करने के लिए और सख्त रुख अपनाएगा, या फिर बातचीत के जरिए कोई समाधान निकाला जाएगा? यह सवाल वैश्विक व्यापार की दिशा तय कर सकता है। आगामी शिखर सम्मेलन में इस मुद्दे पर सभी की नजरें टिकी हैं।

