किताबों पर लगा प्रतिबंध, पुलिस ने किताबों की दुकानों पर की छापे मारी

Ban on books News: जम्मू-कश्मीर सरकार ने 25 पुस्तकों पर प्रतिबंध लगाने का आदेश जारी किया गया है, जिन्हें कथित तौर पर “झूठे आख्यानों और अलगाववाद” को बढ़ावा देने का आरोप लगाया गया है। यह फैसला उपराज्यपाल मनोज सिन्हा के निर्देश पर गृह विभाग द्वारा लिया गया है। इन पुस्तकों को भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) 2023 की धारा 98 के तहत जब्त करने की घोषणा की गई है, और इनके प्रकाशन, बिक्री या प्रचार पर पूर्ण रोक लगा दी गई है। उल्लंघन करने वालों के खिलाफ कठोर कानूनी कार्रवाई की चेतावनी दी गई है।
प्रतिबंध का कारण
जम्मू-कश्मीर गृह विभाग के अनुसार, इन पुस्तकों में ऐतिहासिक तथ्यों को तोड़-मरोड़कर पेश किया गया है, आतंकवादियों का महिमामंडन किया गया है, और सुरक्षा बलों के खिलाफ नफरत फैलाई गई है। सरकार का दावा है कि ये किताबें युवाओं को कट्टरता और हिंसा की ओर धकेलती हैं, जिससे भारत की एकता, अखंडता और संप्रभुता को खतरा पैदा होता है। गृह विभाग की अधिसूचना में कहा गया है कि जांच और विश्वसनीय खुफिया जानकारी के आधार पर यह पाया गया कि इन पुस्तकों का व्यवस्थित प्रसार युवाओं को आतंकवाद और अलगाववाद की ओर ले जाता है।
प्रतिबंधित पुस्तकों की सूची
प्रतिबंधित पुस्तकों में कई प्रसिद्ध लेखकों की रचनाएँ शामिल हैं, जैसे:
• अरुंधति रॉय की आज़ादी
• ए.जी. नूरानी की द कश्मीर डिस्प्यूट 1947-2012
• विक्टोरिया स्कोफील्ड की कश्मीर इन कॉन्फ्लिक्ट: इंडिया, पाकिस्तान एंड द अनएंडिंग वॉर
• सुमंत्र बोस की कश्मीर एट द क्रॉसरोड्स और कॉन्टेस्टेड लैंड्स
• मौलाना मौदादी की अल जिहादुल फिल इस्लाम
• क्रिस्टोफर स्नेडेन की इंडिपेंडेंट कश्मीर
• अनुराधा भसीन की ए डिसमेंटल्ड स्टेट
इनके अलावा, कश्मीर की आज़ादी की लड़ाई, कश्मीर में मानवाधिकारों का उल्लंघन, और कुनान पोशपोरा जैसी किताबें भी प्रतिबंधित सूची में शामिल की गई हैं।
पुलिस की कार्रवाई
प्रतिबंध के आदेश के बाद, जम्मू-कश्मीर पुलिस ने श्रीनगर और अन्य क्षेत्रों में किताबों की दुकानों और प्रकाशन गृहों पर छापेमारी शुरू कर दी है। इन छापों का उद्देश्य प्रतिबंधित पुस्तकों की प्रतियों को जब्त करना और उनके वितरण को रोकना है। गृह विभाग ने सभी जिला अधिकारियों को निर्देश दिए हैं कि इन किताबों को बाजार से पूरी तरह से हटाया जाए।
विवाद और आलोचना
इस फैसले ने साहित्यिक और बौद्धिक जगत में हलचल मचा दी है। कई लेखकों, विद्वानों और राजनीतिक नेताओं ने इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला बताया है। माकपा सांसद वी. शिवदासन ने प्रतिबंध को “बेहद दुखद” करार देते हुए इसे लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ बताया और इसका विरोध करने की मांग की। लेखिका अंगना चटर्जी ने कहा कि पुस्तकों पर प्रतिबंध लगाना अधिनायकवादी शासन की निशानी है। वहीं, पीडीपी नेता महबूबा मुफ्ती और मिरवाइज उमर फारूक ने भी इस कदम की निंदा की, कहते हुए कि “इतिहास को किताबों पर प्रतिबंध लगाकर मिटाया नहीं जा सकता।”
आधिकारिक बयान

जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने स्पष्ट किया कि यह कदम राष्ट्रीय सुरक्षा और क्षेत्र में शांति बनाए रखने के लिए उठाया गया है। गृह विभाग के प्रधान सचिव चंद्राकर भारती द्वारा हस्ताक्षरित अधिसूचना में कहा गया है कि इन पुस्तकों का कंटेंट “युवाओं को गुमराह करता है और भारत के खिलाफ हिंसा को बढ़ावा देता है।” यह फैसला 5 अगस्त, 2025 को लिया गया, जो अनुच्छेद 370 हटाए जाने की छठी वर्षगांठ के साथ मेल खाता दिखाई दे रहा है।
निष्कर्ष
जम्मू-कश्मीर सरकार का यह कदम आतंकवाद और अलगाववाद को रोकने के लिए उठाया गया है, लेकिन इसने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और साहित्यिक स्वायत्तता पर सवाल खड़े कर दिए हैं। आलोचकों का मानना है कि यह प्रतिबंध सरकार की असुरक्षा को दर्शाता है, जबकि प्रशासन इसे राष्ट्रीय हित में जरूरी बता रहा है। इस मुद्दे पर बहस जारी है, और यह देखना बाकी है कि इसका दीर्घकालिक प्रभाव क्या पड़ेगा। इस प्रतिबंध से आगे चल कर लोगो की मानसिकता में क्या बतलाव लेकर आता है।

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