बालासोर ट्रेन हादसाः लाशों के बीच से आवाज आई मैं जिंदा हूं
कहावत है कि जा को राखे सायां मार सकें न कोए, ये कहावत बिल्कुल सही साबित हो रही है। गत 2 जून को शाम 7 बजकर 10 मिनट पर ओडिशा के बालासोर में तीन ट्रेनें एक-दूसरे से टकराईं, इस हादसें में 275 लोगों की मौत हो गई। एक हजार से ज्यादा घायल हुए। हालांकि अब दो-ढाई सौ के आसपास घायलों का इलाज चल रहा है। कई सौ लोग घर जा चुके है। इस सब के बीच एक पिता का है, जिसके बेटे को मरा समझकर उसके ऊपर लाशों का ढेर लगा दिया गया। लाशों के बीच जब उसने अपना हाथ हिलाया तो लोगों को पता चला कि वह तो जिंदा है। हेलाराम मलिक नाम के इस व्यक्ति ने बताया, ‘मेरा बेटा विश्वजीत 2 जून को सांतरागाछी से कोरोमंडल ट्रेन में बेठा। वह चेन्नई जा रहा था। करीब 7ः30 बजे उसने मुझे फोन किया कि ट्रेन का हादसा हो गया है और वह बुरी तरह जख्मी हो गया है। मुझे फोन करने के बाद वह बेहोश हो गया।
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लोगों ने उसे मरा हुआ समझकर बालासोर स्कूल में बनाए मुर्दाघर में रख दिया गया। उसके ऊपर लाशें रख दी गईं। जब उसे होश आया तो उसने अपना हाथ हिलाया। लोगों ने देखा कि वह जिंदा है और उसे अस्पताल ले गए। बेटे के फोन के बाद हम उसे ढूंढने पहुंच गए थे। आखिरकार वह हमें बालासोर अस्पताल में मिला।
6 जून को ओडिशा के मुख्य सचिव ने बताया कि अभी भी 100 से ज्यादा लाशों की पहचान बाकी है। लोग अभी भी लाशों के ढेर के बीच अपनों को ढूंढ रहे हैं। घटना के 5 दिन बाद एक शख्स को अपने भतीजे का शव मिला। वह उसे ले नहीं जा सका, क्योंकि शव पर पांच और लोग दावा कर रहे हैं। अब इस बॉडी का डीएनए टेस्ट किया जाएगा। तब जाकर उसे सौंपा जाएगा।