यूनिवर्सिटी के खिलाफ कोर्ट पहुंची आयशा, उत्पीड़न का आरोप

Amity University/Supreme Court News: एक छात्रा के नाम बदलने के साधारण से मुद्दे ने पूरे देश के निजी और डीम्ड यूनिवर्सिटीज को हिला दिया है। 23 वर्षीय आयशा जैन ने अमिटी यूनिवर्सिटी, नोएडा के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की, जिसमें नाम परिवर्तन के बाद विश्वविद्यालय द्वारा उत्पीड़न और शैक्षणिक नुकसान का आरोप लगाया गया। अदालत ने इस मामले को जनहित याचिका (PIL) में बदल दिया और केंद्र, सभी राज्यों, केंद्र शासित प्रदेशों तथा UGC को निजी संस्थानों की स्थापना, शासन व्यवस्था और विनियमन पर हलफनामा दाखिल करने का आदेश दिया। यह फैसला निजी उच्च शिक्षा क्षेत्र में पारदर्शिता और जवाबदेही की नई बहस छेड़ सकता है।

मामला 2021 से शुरू होता है, जब आयशा जैन ने अपना नाम ‘खुशी जैन’ से ‘आयशा जैन’ में बदल लिया और इसे भारत गजट में प्रकाशित कराया। 2023 में उन्होंने अमिटी फिनिशिंग स्कूल से एक प्रमाणपत्र कोर्स पूरा किया, जहां नया नाम स्वीकार किया गया। लेकिन 2024 में जब वे अमिटी बिजनेस स्कूल में एमबीए (उद्यमिता) कोर्स में दाखिला लेने पहुंचीं, तो विश्वविद्यालय ने उनके रिकॉर्ड में नाम अपडेट करने से इनकार कर दिया।

याचिका में दावा किया गया कि सभी कानूनी दस्तावेज जमा करने के बावजूद अमिटी ने पुराने नाम पर अड़े रहने का रुख अपनाया, जिससे आयशा को कक्षाओं में उपस्थिति और परीक्षाओं में बैठने से रोका गया। नतीजा? एक शैक्षणिक वर्ष बर्बाद हो गया।

आयशा ने याचिका में अमिटी के अधिकारियों पर उत्पीड़न का भी आरोप लगाया। उन्होंने बताया कि स्टाफ ने उनके नए नाम—जो एक मुस्लिम नाम माना जाता है—पर ताने कसे और भेदभाव किया। कई शिकायतों के बावजूद UGC और शिक्षा मंत्रालय से कोई कार्रवाई नहीं हुई। लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट ने शुरुआत में अमिटी के चेयरमैन (रितनंद बलवेद एजुकेशन फाउंडेशन के प्रेसिडेंट) और वाइस चांसलर को व्यक्तिगत रूप से पेश होने का आदेश दिया। 9 अक्टूबर को सुनवाई के दौरान अदालत ने उन्हें जिम्मेदारी तय करने को कहा। विश्वविद्यालय ने 1 लाख रुपये का चेक पेश कर मुआवजा देने की कोशिश की, लेकिन जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और जस्टिस एन.वी. अंजरिया की बेंच ने इसे “अदालत की भावनाओं का अपमान” करार दिया।

20 नवंबर की सुनवाई में मामला एक कदम आगे बढ़ा। अमिटी के अधिकारियों ने हलफनामा दाखिल किया, लेकिन बेंच ने इसे व्यापक मुद्दे का हिस्सा मानते हुए PIL में तब्दील कर दिया। अदालत ने कहा कि यह केवल एक छात्रा की समस्या नहीं, बल्कि निजी यूनिवर्सिटीज की कार्यप्रणाली पर सवाल है। टाइम्स ऑफ इंडिया के अनुसार, बेंच ने नोट किया कि नाम बदलने जैसी साधारण प्रक्रिया में भी प्रशासनिक अड़चनें और भेदभाव कैसे हो सकता है। अदालत ने केंद्र, राज्यों, UTs और UGC को

निम्नलिखित जानकारी मांगी है:
• स्थापना का विवरण: प्रत्येक निजी/डीम्ड यूनिवर्सिटी कैसे बनी? कौन से कानून, अधिसूचना या प्रावधानों के तहत?
• शासन व्यवस्था: गवर्निंग बॉडी में कौन-कौन है? नियुक्ति कैसे होती है? वास्तविक नियंत्रण किसके हाथ में?
• सरकारी लाभ: जमीन आवंटन, छूट, प्राथमिकता—कौन से फायदे दिए गए?
• नॉट-फॉर-प्रॉफिट सिद्धांत: क्या ये संस्थान वाकई लाभ-रहित हैं? वित्तीय पारदर्शिता का खुलासा।
• ग्रिवांस रिड्रेसल: छात्रों-कर्मचारियों के लिए शिकायत निवारण तंत्र कितना प्रभावी? फैकल्टी को न्यूनतम वेतन मिल रहा है या नहीं?
हलफनामे कैबिनेट सेक्रेटरी, चीफ सेक्रेटरी और UGC चेयरमैन द्वारा व्यक्तिगत रूप से सत्यापित होने चाहिए। अदालत ने चेतावनी दी कि कोई तथ्य छिपाने या गलत जानकारी देने पर सख्त कार्रवाई होगी। अगली सुनवाई 8 जनवरी 2026 को होगी।

यह फैसला भारत की निजी शिक्षा व्यवस्था के लिए मील का पत्थर साबित हो सकता है। फाइनेंशियल एक्सप्रेस की रिपोर्ट बताती है कि देश में सैकड़ों निजी यूनिवर्सिटीज हैं, जिनकी स्थापना राज्य कानूनों के तहत हुई। लेकिन अतीत में सुप्रीम कोर्ट ने कई बार हस्तक्षेप किया है—2005 में छत्तीसगढ़ प्राइवेट यूनिवर्सिटी एक्ट रद्द किया, 2009 में 44 डीम्ड यूनिवर्सिटीज को अयोग्य ठहराया, और 2017 में अनधिकृत डिस्टेंस कोर्सों पर रोक लगाई। मनीकंट्रोल के अनुसार, यह ऑडिट UGC की निगरानी पर भी सवाल उठाएगा, जो अक्सर ढीली पड़ जाती है।
शिक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि आयशा का केस नाम बदलने के अधिकार (अनुच्छेद 21 के तहत) को मजबूत करता है। बार एंड बेंच ने लिखा कि यह भेदभावपूर्ण प्रशासन को उजागर करता है। आयशा का प्रतिनिधित्व एडवोकेट मोहम्मद फुजैल खान ने किया, जबकि अमिटी की ओर से अमितेश कुमार जैसे वकील पेश हुए।

निजी कॉलेजों के लिए यह चेतावनी है: छात्रों के अधिकारों की अनदेखी महंगी पड़ सकती है। आयशा की जीत से न केवल उनका शैक्षणिक सफर पटरी पर लौटेगा, बल्कि पूरे सेक्टर में सुधार की उम्मीद जागी है। जैसा कि अदालत ने कहा, “निजी यूनिवर्सिटीज को छात्रों और कानून के प्रति जवाबदेह होना होगा।” क्या यह ऑडिट काले धब्बों को साफ करेगा? समय बताएगा।

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