असम में 3000 बीघा जमीन का विवाद, गुवाहाटी हाईकोर्ट ने जताई हैरानी, आदिवासियों और पर्यावरण की चिंता बढ़ी

Assam News: असम के दीमा हसाओ जिले में महाबल सीमेंट फैक्ट्री को 3000 बीघा जमीन आवंटित करने के असम सरकार के फैसले ने बड़ा विवाद खड़ा कर दिया है। गुवाहाटी हाईकोर्ट ने इस मामले पर सुनवाई के दौरान कड़ा रुख अपनाते हुए सरकार की आलोचना की और इस आवंटन को “असाधारण” और “मजाक” जैसा करार दिया। कोर्ट ने यह भी सवाल उठाया कि क्या सरकार पूरा जिला ही एक निजी कंपनी को कैसे सौंप देना चाहती है।
मामले की पृष्ठभूमि
दीमा हसाओ जिला, जो संविधान की छठवीं अनुसूची के तहत आता है, आदिवासी बहुल क्षेत्र है जहां स्थानीय जनजातीय समुदायों के अधिकारों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। इस जिले के उमरांगसो क्षेत्र में, जो पर्यावरणीय दृष्टि से संवेदनशील है, महाबल सीमेंट्स को सीमेंट संयंत्र के लिए 3000 बीघा (लगभग 991.73 एकड़) जमीन आवंटित की गई है। इस क्षेत्र में गर्म पानी के झरने, प्रवासी पक्षियों का ठहराव स्थल और समृद्ध वन्यजीव मौजूद हैं, जो इसे पर्यावरणीय हॉटस्पॉट बनाते हैं।
स्थानीय आदिवासी समुदायों ने इस फैसले का कड़ा विरोध किया है। उनका आरोप है कि सरकार कॉरपोरेट हितों को बढ़ावा देने के लिए उनकी जमीन से उन्हें बेदखल कर रही है। 22 लोगों ने असम सरकार और उत्तरी कछार पर्वतीय जिला स्वायत्त परिषद (एनसीएचडीएसी) के खिलाफ याचिका दायर की, जिसमें दावा किया गया कि उनकी वैध रूप से कब्जे वाली जमीन छीनी जा रही है। दूसरी ओर, महाबल सीमेंट्स ने भी कोर्ट में याचिका दायर की है।
हाईकोर्ट का सख्त रुख
सोमेश होजाई की याचिका पर सुनवाई करते हुए जस्टिस संजय कुमार मेधी ने कहा कि 3000 बीघा जमीन का आवंटन अपने आप में असाधारण है और यह पूरे जिले के क्षेत्र के बराबर प्रतीत होता है। उन्होंने टिप्पणी की, “क्या यह कोई मजाक है? क्या आप पूरा जिला दे रहे हैं?” कोर्ट ने एनसीएचडीएसी के वकील को निर्देश दिया कि वह इस विशाल भूमि आवंटन की नीति से संबंधित रिकॉर्ड पेश करें। जज ने यह भी स्पष्ट किया कि दोनों याचिकाएं आपस में जुड़ी हैं और इनकी एक साथ सुनवाई होगी। अगली सुनवाई 1 सितंबर को निर्धारित की गई है।
पर्यावरण और आदिवासी अधिकारों पर सवाल
उमरांगसो क्षेत्र की जैव-विविधता और पर्यावरणीय महत्व को देखते हुए कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि खनन और औद्योगिक गतिविधियां स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र को गंभीर नुकसान पहुंचा सकती हैं। कोर्ट ने यह भी कहा कि छठवीं अनुसूची के तहत आदिवासी समुदायों के हितों को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जानी चाहिए। स्थानीय आदिवासी संगठनों ने सरकार पर “क्रोनी कैपिटलिज्म” का आरोप लगाते हुए दावा किया है कि यह फैसला जनता की जमीन को कॉरपोरेट्स को सौंपने का प्रयास किया जा रहा है।
अडानी ग्रुप से संबंधों का खंडन
सोशल मीडिया और कुछ समाचार रिपोर्ट्स में इस मामले को अडानी ग्रुप से जोड़ा गया, लेकिन अडानी समूह ने 18 अगस्त 2025 को एक बयान जारी कर इन दावों को खारिज किया। समूह ने स्पष्ट किया कि महाबल सीमेंट्स का उनसे कोई संबंध नहीं है और ऐसी खबरें “निराधार, झूठी और भ्रामक” हैं। उन्होंने मीडिया और जनता से तथ्यों की जांच करने की अपील भी की।
विपक्ष का हमला
विपक्षी दलों, विशेष रूप से कांग्रेस ने इस मुद्दे पर असम की भाजपा सरकार को घेरा है। कांग्रेस ने इसे आदिवासी अधिकारों का उल्लंघन और पर्यावरण के प्रति लापरवाही का उदाहरण बताया।
आगे की राह
गुवाहाटी हाईकोर्ट ने इस मामले में सरकार को जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है। कोर्ट यह जांच करेगा कि इतनी बड़ी मात्रा में जमीन आवंटन का फैसला किन कानूनी आधारों पर लिया गया। स्थानीय आदिवासियों और पर्यावरणविदों की नजर अब 1 सितंबर की सुनवाई पर टिकी है, जहां इस विवादास्पद फैसले की गहन जांच होने की उम्मीद है।
यह मामला न केवल आदिवासी अधिकारों और पर्यावरण संरक्षण के मुद्दों को उठा रहा है, बल्कि कॉरपोरेट और जनहित के बीच संतुलन की बहस को भी तेज करता है।

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