क्या विदेशी कंपनियां चुरा रही हैं भारत का डेटा?

Artificial Intelligence/OpenAI Chat, GPT News: आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) की दुनिया में एक नया दौर शुरू हो गया है। ओपनएआई का चैटजीपीटी, गूगल का जेमिनी और पर्प्लेक्सिटी जैसे एआई टूल्स अब भारत में मुफ्त उपलब्ध हैं। टेलीकॉम कंपनियों जैसे रिलायंस जियो और एयरटेल के साथ साझेदारी में ये सर्विसेज डेटा पैक्स के साथ बंडल हो रही हैं, जिससे लाखों भारतीय यूजर्स को फायदा हो रहा है। लेकिन यह ‘फ्री लंच’ सरकार के लिए चिंता का सबब बन गया है। क्या ये विदेशी कंपनियां भारतीय यूजर्स का डेटा चुरा रही हैं? राष्ट्रीय सुरक्षा पर असर पड़ने का डर क्यों? आइए, इस मुद्दे पर गहराई से नजर डालें।

फ्री एआई का आकर्षण और बाजार की रणनीति
भारत दुनिया का सबसे बड़ा डिजिटल बाजार है, जहां 1.4 अरब आबादी में से करोड़ों युवा स्मार्टफोन यूजर्स हैं। बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक, ओपनएआई, गूगल और पर्प्लेक्सिटी जैसी कंपनियां भारत को लक्ष्य बना रही हैं क्योंकि यहां यूजर बेस बड़ा है और रेगुलेटरी माहौल लचीला। जियो और एयरटेल जैसे लोकल पार्टनर्स के जरिए फ्री एक्सेस देना इन कंपनियों की रणनीति है। उदाहरण के लिए, जियो यूजर्स को जेमिनी फ्री मिल रहा है, जबकि एयरटेल यूजर्स को पर्प्लेक्सिटी का एक्सेस।

लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि यह ‘फ्री’ वास्तव में महंगा पड़ सकता है। टेक्नोलॉजी एनालिस्ट प्रसांतो रॉय के अनुसार, “यूजर्स सुविधा के लिए डेटा आसानी से शेयर कर देते हैं, लेकिन सरकार को अब इसे रेगुलेट करने की जरूरत है।” एक्स (पूर्व ट्विटर) पर भी यूजर्स की बहस छिड़ी हुई है। एक यूजर ने लिखा, “फ्री मतलब आप ही प्रोडक्ट हैं। ओपनएआई को हमारा डेटा चाहिए ताकि उनके मॉडल ट्रेन हो सकें।”

सरकार की चिंता
केंद्र सरकार ने हाल ही में वित्त मंत्रालय के जरिए सख्त निर्देश जारी किए हैं। फरवरी 2025 में एक एडवाइजरी में कहा गया कि सरकारी कर्मचारी आधिकारिक डिवाइसेज पर चैटजीपीटी, डीपसीक जैसे एआई टूल्स का इस्तेमाल न करें, क्योंकि ये “सरकारी डेटा और दस्तावेजों की गोपनीयता के लिए जोखिम पैदा करते हैं।” जॉइंट सेक्रेटरी प्रदीप कुमार सिंह द्वारा हस्ताक्षरित इस मेमो में स्पष्ट चेतावनी दी गई है कि ये टूल्स यूजर इनपुट को विदेशी सर्वर्स पर प्रोसेस करते हैं, जहां से डेटा लीक या साइबर अटैक का खतरा रहता है।

यह चिंता बेबुनियाद नहीं है। चैटजीपीटी ओपनएआई का प्रोडक्ट है, जो अमेरिका स्थित है, जबकि डीपसीक चीनी कंपनी का। दोनों ही मामलों में भारतीय सरकार का कोई डायरेक्ट कंट्रोल नहीं। एक मीडिया की रिपोर्ट में वरिष्ठ अधिकारियों ने ‘इन्फरेंस रिस्क’ का जिक्र किया—यानी यूजर की क्वेरी, सर्च पैटर्न और व्यवहार से संवेदनशील जानकारी निकाली जा सकती है। इससे राष्ट्रीय सुरक्षा पर असर पड़ सकता है, जैसे सैन्य या आर्थिक डेटा का दुरुपयोग।

वैश्विक स्तर पर भी यही ट्रेंड है। ऑस्ट्रेलिया, इटली और नीदरलैंड ने डीपसीक पर बैन लगा दिया है, जबकि दक्षिण कोरिया ने मिलिट्री कंप्यूटर्स पर प्रतिबंध लगाया। यूरोपीय संघ के एआई नियम सख्त हैं, जहां ट्रांसपेरेंसी और डेटा गवर्नेंस अनिवार्य है। भारत में अभी डेडिकेटेड एआई लॉ नहीं है, लेकिन डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन (डीपीडीपी) एक्ट, 2023 लागू है, जो संवेदनशील डेटा को ऑफशोर करने से रोकता है। फिर भी, इसके नियम अभी अधूरे हैं।

डेटा प्राइवेसी का संकट
मॉनडाक की एक रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि चैटजीपीटी की प्राइवेसी पॉलिसी ‘लिमिटलेस’ डेटा यूज की इजाजत देती है, जो भारतीय कानूनों से मेल नहीं खाती। यूजर्स अनजाने में पर्सनल इंफॉर्मेशन शेयर कर देते हैं, जो एआई मॉडल्स को ट्रेन करने के लिए इस्तेमाल होता है। एक्स पर एक पोस्ट में कहा गया, “चीन ने चैटजीपीटी बैन किया था, भारत को भी सोचना चाहिए।”

सरकार अब स्वदेशी एआई मॉडल विकसित करने पर जोर दे रही है। आइटी मंत्री अश्वनी वैष्णव ने कहा है कि भारत अपने सर्वर्स पर एआई होस्ट करेगा, ताकि विदेशी निर्भरता कम हो। संसद में AAP सांसद राघव चड्ढा ने सवाल उठाया, “चीन के पास डीपसीक, अमेरिका के पास चैटजीपीटी—भारत कहां है?”

निष्कर्ष
फ्री एआई टूल्स नवाचार को बढ़ावा देते हैं, लेकिन डेटा चोरी का डर वाजिब है। सरकार को डीपीडीपी नियम जल्द लागू करने और स्वदेशी विकल्पों पर निवेश बढ़ाने की जरूरत है। यूजर्स के लिए सलाह सरल है: प्राइवेसी सेटिंग्स चेक करें, संवेदनशील डेटा शेयर न करें। क्या भारत एआई क्रांति का नेतृत्व करेगा या विदेशी कंपनियों का शिकार बनेगा? यह सवाल समय के साथ साफ होगा।

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