Antarctica News : क्या बदलते नज़र आ रहे हैं अंतरराष्ट्रीय हालात, महाद्वीप की ओर बढ़ रही नजरें?

Antarctica News: अंटार्कटिका, पृथ्वी का सबसे ठंडा, शुष्क और दुर्गम महाद्वीप, जिसे लंबे समय से किसी भी देश की संप्रभुता से मुक्त माना गया है, अब वैश्विक शक्तियों की नजरों में आता दिख रहा है। 1959 की अंटार्कटिक संधि (Antarctic Treaty) के तहत इस महाद्वीप को वैज्ञानिक अनुसंधान और शांति के लिए संरक्षित क्षेत्र घोषित किया गया था, लेकिन हाल के अंतरराष्ट्रीय घटनाक्रमों और भू-राजनीतिक तनावों को देखते हुए यह सवाल उठ रहा है कि क्या अंटार्कटिका का भविष्य अब बदलने वाला है?
अंटार्कटिका सिर्फ बर्फ का रेगिस्तान नहीं है; यह प्राकृतिक संसाधनों का भंडार भी है। अनुमान है कि यहां तेल, गैस, कोयला और अन्य खनिजों के विशाल भंडार मौजूद हैं। साथ ही, यह महाद्वीप विश्व के 70% ताजे पानी का भंडार है, जो जलवायु परिवर्तन के दौर में और भी मूल्यवान बन गया है। इसके अलावा, अंटार्कटिक महासागर में समुद्री जैव-विविधता और मत्स्य संसाधन भी वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण हैं। हाल के वर्षों में, कुछ देशों ने इस क्षेत्र में अपनी उपस्थिति बढ़ाने के लिए शोध केंद्रों की संख्या और गतिविधियों में वृद्धि की है।
कुछ देशों की गतिविधियों ने अंटार्कटिका के भविष्य पर सवाल खड़े किए हैं। उदाहरण के लिए, चीन और रूस ने अपने शोध स्टेशनों का विस्तार किया है, जिसे कुछ विश्लेषक संसाधन दोहन की संभावित योजना के रूप में इसे देखते हैं। वहीं, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, चिली, अर्जेंटीना, नॉर्वे, फ्रांस और यूनाइटेड किंगडम जैसे देशों के क्षेत्रीय दावे पहले से ही मौजूद हैं, हालांकि ये दावे अंटार्कटिक संधि के तहत निलंबित हैं। हाल के भू-राजनीतिक तनाव, जैसे कि रूस-यूक्रेन संघर्ष और अमेरिका-चीन के बीच बढ़ती प्रतिद्वंद्विता, ने इस संधि की स्थिरता पर भी सवाल उठाए हैं।
भारत भी अंटार्कटिका में सक्रिय है और 1983 से अपने शोध केंद्रों—दक्षिण गंगोत्री, मैत्री और भारती—के जरिए वैज्ञानिक अनुसंधान में योगदान दे रहा है। भारत का ध्यान ओजोन परत, जलवायु परिवर्तन और आयनमंडलीय अध्ययनों पर रहा है। हालांकि, भारत ने कभी भी क्षेत्रीय दावे नहीं किए, लेकिन वैश्विक शक्तियों की बढ़ती गतिविधियों के बीच भारत भी अपनी रणनीतिक उपस्थिति को मजबूत करने की दिशा में सोच सकता है।
वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि अंटार्कटिका में ग्लेशियर्स का पिघलना और समुद्री धाराओं का कमजोर पड़ना वैश्विक जलवायु के लिए खतरा है। NASA की अंडरवाटर रोबोट्स जैसी परियोजनाएं समुद्री जलस्तर में बदलावों का अध्ययन कर रही हैं। ऐसे में, अंटार्कटिका पर बढ़ता भू-राजनीतिक दबाव पर्यावरणीय संरक्षण के लिए खतरा बन सकता है।
अंटार्कटिक संधि ने अब तक इस महाद्वीप को युद्ध और शोषण से बचाए रखा है, लेकिन बदलते वैश्विक हालात इसे नए विवादों की ओर धकेल सकते हैं। क्या यह महाद्वीप वैज्ञानिक सहयोग का प्रतीक बना रहेगा, या संसाधनों की होड़ में नया रणक्षेत्र बनेगा? यह सवाल वैश्विक समुदाय के लिए विचारणीय है। अंतरराष्ट्रीय सहयोग और संधि के प्रति प्रतिबद्धता ही अंटार्कटिका के शांतिपूर्ण भविष्य को सुनिश्चित कर सकती है।

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