भावुक विदाई: जस्टिस गवई के CJI कार्यकाल का अंत जिन पर गैलेक्सी को भी गर्व

52nd Chief Justice News: भारत के 52वें मुख्य न्यायाधीश (CJI) जस्टिस भूषण रामकृष्ण गवई का कार्यकाल आज समाप्त हो गया। सुप्रीम कोर्ट के कोर्ट नंबर 1 में आयोजित पारंपरिक समारोहिक बेंच (Ceremonial Bench) में जस्टिस गवई को भावभीनी विदाई दी गई। यह उनका आखिरी कार्य दिवस था, और 23 नवंबर को वे आधिकारिक रूप से सेवानिवृत्त हो जाएंगे। समारोह में वरिष्ठ वकीलों, कानून अधिकारियों और न्यायाधीशों ने जस्टिस गवई की सरलता, निष्पक्षता और भारतीय न्यायिक प्रणाली में उनके योगदान की खूब तारीफ की। इस दौरान अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (ASG) ऐश्वर्या भाटी ने एक मार्मिक बयान देते हुए कहा, “कुछ सितारे ऐसे होते हैं, जिन पर गैलेक्सी को भी गर्व होता है।” उन्होंने जस्टिस गवई की यात्रा को इसी तरह का बताया, जो न केवल न्यायिक जगत बल्कि पूरे समाज के लिए प्रेरणा स्रोत है।

समारोहिक बेंच में CJI गवई के साथ अगले CJI जस्टिस सूर्य कांत और जस्टिस के विनोद चंद्रन भी मौजूद थे। कोर्टरूम नंबर 1 खचाखच भरा हुआ था, जहां अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणि, सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता, सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल और SCBA अध्यक्ष विकास सिंह समेत कई प्रमुख हस्तियों ने जस्टिस गवई को श्रद्धांजलि दी। ASG भाटी ने विशेष रूप से जस्टिस गवई की महिलाओं और युवा वकीलों के प्रति संवेदनशीलता की सराहना की। उन्होंने कहा कि जस्टिस गवई ने हमेशा बार की महिला सदस्यों को महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां सौंपीं और पर्यावरण, जलवायु, अरावली, वन्यजीव जैसे मुद्दों पर सक्रिय भूमिका निभाई। “आपके ‘थैंक यू-थैंक यू’ का अंदाज युवा वकीलों के लिए अपवाद था, जहां आपने कभी लागत नहीं लगाई,” उन्होंने हल्के-फुल्के अंदाज में जोड़ा, जिससे कोर्टरूम में हंसी की लहर दौड़ गई।

जस्टिस गवई ने अपने विदाई भाषण में भावुक होकर कहा, “सभी की बातें सुनने के बाद मेरा गला रुँध गया है। 1985 में मैं कानून का छात्र बनकर आया था, और आज न्याय का छात्र बनकर जा रहा हूं।” उन्होंने अपने 40 वर्षों के सफर को संविधान की चार दीवारों- न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व- के बीच सीमित बताया। “मैंने कभी न्यायाधीश पद को सत्ता का केंद्र नहीं माना, बल्कि राष्ट्रसेवा का अवसर समझा। सभी फैसले सामूहिक रूप से लिए गए, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट केवल जजों का नहीं, बल्कि बार, रजिस्ट्री और स्टाफ का भी संस्थान है।” जस्टिस गवई ने डॉ. भीमराव अंबेडकर और अपने पिता से प्रेरणा लेने का जिक्र किया। उन्होंने कहा, “मैं बौद्ध धर्म का पालन करता हूं, लेकिन सच्चा धर्मनिरपेक्ष हूं। हिंदू, सिख, इस्लाम, ईसाई- सभी धर्मों में विश्वास करता हूं।”

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने जस्टिस गवई के कार्यकाल में फैसलों में ‘भारतीयता की ताजी हवा’ बहने की बात कही। उन्होंने हालिया राष्ट्रपति संदर्भ (Presidential Reference) मामले का उदाहरण दिया, जहां कोर्ट ने ‘स्वदेशी व्याख्या’ अपनाई और विदेशी न्यायिक निर्णयों का एक भी हवाला नहीं दिया। CJI गवई ने खुद इसकी पुष्टि की, “हमने केवल भारतीय उदाहरणों पर जोर दिया।” जस्टिस सूर्य कांत ने उन्हें ‘भाई और विश्वासपात्र’ बताते हुए कहा, “आपने धैर्य और गरिमा के साथ मामलों को संभाला।”

जस्टिस गवई का CJI कार्यकाल 14 मई 2025 से शुरू हुआ था, जो मात्र छह महीने का था। वे पहले बौद्ध समुदाय से CJI बने और अनुसूचित जाति से दूसरे CJI (पहले जस्टिस केजी बालाकृष्णन)। उनका सफर महाराष्ट्र के एक नगर पालिका स्कूल से सुप्रीम कोर्ट तक प्रेरणादायक है। सेवानिवृत्ति के बाद वे राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालयों या अन्य संस्थानों से जुड़ सकते हैं। समारोह के अंत में जस्टिस गवई ने कहा, “मैं संतुष्टि के साथ जा रहा हूं, क्योंकि मैंने राष्ट्र के लिए जो कर सका, वह किया।” यह विदाई न केवल एक व्यक्ति की, बल्कि भारतीय न्यायपालिका के सामूहिक मूल्यों की जीत का प्रतीक बनी।

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