America News: डोनाल्ड ट्रम्प के प्रशासन ने व्यापार घाटे को कम करने और अमेरिकी उद्योगों की रक्षा के उद्देश्य से कई देशों, विशेष रूप से चीन पर महत्वपूर्ण टैरिफ लगाए थे। इन टैरिफ में अक्सर कुछ समय के लिए विराम दिया जाता था, जिससे बातचीत या आर्थिक समायोजन का अवसर मिलता। 90 दिनों का विराम ऐसा ही एक उदाहरण था, जिसका उद्देश्य व्यापारिक तनाव को कम करना या भविष्य की नीतियों पर विचार करना था।
आमतौर पर, टैरिफ या व्यापार युद्ध की धमकियां वैश्विक बाजारों में अनिश्चितता का दौर पैदा करती हैं, जिससे स्टॉक की कीमतों में गिरावट, कमोडिटी की कीमतों में उतार-चढ़ाव और निवेशक भावना में बदलाव आता है। हालाँकि, इस विशेष मामले में, ऐसा प्रतीत होता है कि वैश्विक निवेशक व्यापक टैरिफ बढ़ोतरी की धमकियों से अछूते रहे ।
“भेड़िये की कहानी” प्रभाव (Cry Wolf Effect), निवेशकों ने अतीत में कई बार टैरिफ की धमकियों को देखा है, जिनमें से सभी पूरी तरह से लागू नहीं हुईं या उनका अपेक्षित प्रभाव नहीं पड़ा। इससे एक प्रकार की थकान या संशयवाद पैदा हो सकता है, जहां धमकियों को उतनी गंभीरता से नहीं लिया जाता जितनी पहले लिया जाता था।
निवेशक यह मान सकते हैं कि यदि नए टैरिफ लगाए भी जाते हैं, तो उनका प्रभाव उतना गंभीर नहीं होगा जितना पहले के दौर में था, या वे केवल विशिष्ट क्षेत्रों को प्रभावित करेंगे।
कुछ धमकियों को केवल राजनीतिक बयानबाजी के रूप में ही देखा जाता है, जिसका उद्देश्य घरेलू या अंतर्राष्ट्रीय जानता जनार्दन को संदेश देना है, न कि ठोस नीतिगत बदलावों का संकेत।
टैरिफ का प्रभाव सभी कंपनियों या क्षेत्रों पर समान रूप से नहीं पड़ता है। कुछ उद्योग जो आयात या निर्यात पर अधिक निर्भर करते हैं, वे दूसरों की तुलना में अधिक प्रभावित हो सकते हैं।
यदि टैरिफ की तीव्रता या दायरा काफी बढ़ जाता है, तो बाजार अंततः प्रतिक्रिया दे सकते हैं। वर्तमान बेफिक्री इस धारणा पर आधारित हो सकती है कि कोई भी नया टैरिफ सीमित होगा।
जबकि वैश्विक निवेशक वर्तमान में टैरिफ की धमकियों से अप्रभावित दिख रहे हैं, यह जरूरी नहीं कि इसका मतलब यह हो कि टैरिफ पूरी तरह से अप्रासंगिक हो गए हैं। बाजार की प्रतिक्रिया कई कारकों का परिणाम है, और टैरिफ अभी भी कुछ उद्योगों और दीर्घकालिक आर्थिक रुझानों के लिए महत्वपूर्ण प्रभाव डाल सकते हैं।

