पत्र में श्री खंबाटा ने साफ़ कहा है कि न तो उनका और न ही मेहली मिस्त्री, प्रमीत झावेरी तथा जहांगीर एचसी जहांगीर का ऐसा कोई इरादा था, और न ही बैठक में ऐसा कुछ किया गया या कहा गया जिससे यह अर्थ निकाला जा सके।
11 सितंबर को क्या हुआ था?
रतन टाटा के निधन के बाद टाटा ट्रस्ट्स में एक नया नियम लागू हुआ था कि 75 वर्ष से अधिक उम्र के नॉमिनी डायरेक्टरों की नियुक्ति हर साल बोर्ड से मंज़ूरी लेनी होगी। इसी नियम के तहत टाटा सन्स बोर्ड में ट्रस्ट्स के नॉमिनी डायरेक्टर विजय सिंह (77 वर्ष) की वार्षिक पुनर्नियुक्ति पर 11 सितंबर को वोटिंग हुई।
आमतौर पर ऐसे प्रस्ताव सर्वसम्मति से पास हो जाते हैं, लेकिन इस बार चार ट्रस्टी – मेहली मिस्त्री, प्रमीत झावेरी, जहांगीर जहांगीर और डैरियस खंबाटा – ने विजय सिंह की पुनर्नियुक्ति के खिलाफ वोट दिया। इसके बाद मीडिया के एक वर्ग ने इसे “तख्तापलट की कोशिश” करार दे दिया।
खंबाटा ने क्या कहा?
अपने 10 नवंबर के पत्र में खंबाटा ने लिखा:
“मुझे पिछले कुछ हफ़्तों की घटनाओं ने बहुत दुखी किया है, ख़ासकर मीडिया में बनाई गई ग़लत कहानी ने। सबसे ज़्यादा दुख इस बात का है कि 11 सितंबर की बैठक को ‘तख्तापलट’ कहा जा रहा है। यह बिल्कुल बेतुका है। न मेरा ऐसा कोई इरादा था, न किसी और का। हमने ऐसा कुछ किया भी नहीं और न कहा भी नहीं।”
उन्होंने स्पष्ट किया कि मतभेद सिर्फ़ दृष्टिकोण का था – टाटा सन्स बोर्ड में ट्रस्ट्स का प्रतिनिधित्व कितना मुखर और सक्रिय होना चाहिए, ख़ासकर टाटा सन्स के संभावित लिस्टिंग (IPO) के मुद्दे पर। खंबाटा ने कहा कि उनका एकमात्र मकसद ट्रस्ट्स के हित में टाटा सन्स बोर्ड में मज़बूत आवाज़ सुनिश्चित करना था।
विजय सिंह से कोई निजी दुश्मनी नहीं
खंबाटा ने यह भी लिखा कि विजय सिंह के खिलाफ वोट देने वालों को उनके प्रति कोई व्यक्तिगत विरोध नहीं था। वे अफ़सोस जताते हैं कि विजय सिंह उस बैठक में मौजूद नहीं थे, जिससे उन्हें अपनी स्थिति आमने-सामने समझाने का मौक़ा नहीं मिला। उन्होंने मीडिया की एकतरफ़ा कवरेज से विजय सिंह को हुई पीड़ा पर भी खेद जताया।
एकता की अपील
खंबाटा ने बताया कि 11 सितंबर के तुरत बाद और फिर रतन टाटा की पहली पुण्यतिथि से एक दिन पहले उन्होंने सभी ट्रस्टीज के हस्ताक्षर से एक संयुक्त बयान जारी करने का प्रस्ताव रखा था, जिसमें नोएल टाटा के नेतृत्व में पूर्ण विश्वास जताया जाता। दुर्भाग्य से उस पर कोई जवाब नहीं आया।
उन्होंने सभी ट्रस्टीज से व्यक्तिगत भावनाओं को किनारे रखकर टाटा ट्रस्ट्स के हित में एकजुट होकर काम करने की अपील की। मेहली मिस्त्री के 28 अक्टूबर को कार्यकाल समाप्त होने के बाद लिखे गरिमापूर्ण पत्र की भी उन्होंने सराहना की।
वर्तमान स्थिति
टाटा ट्रस्ट्स के चेयरमैन नोएल टाटा, वेणु श्रीनिवासन और विजय सिंह एक तरफ़ हैं, जबकि मेहली मिस्त्री गुट दूसरी तरफ़ माना जा रहा है। हालांकि खंबाटा ने खुद को किसी गुट से अलग रखते हुए कहा कि वे हर मुद्दे पर स्वतंत्र और ट्रस्ट्स के हित में फ़ैसला लेते हैं।
टाटा ट्रस्ट्स टाटा सन्स की मूल कंपनी है और टाटा समूह की 66% हिस्सेदारी रखती है। बोर्ड में यह तनाव भविष्य में समूह की दिशा और शासन पर असर डाल सकता है, ख़ासकर टाटा सन्स के लिस्टिंग और शपूरजी पालोनजी ग्रुप के साथ विवाद निपटारे जैसे बड़े मुद्दों पर।
फिलहाल डैरियस खंबाटा का यह पत्र बोर्ड में सुलह और एकता की नई कोशिश के रूप में देखा जा रहा है।

